उन भाजपा सहित सही दलों ने लोक सभा चुनाव की जोरदार तैयारी शुरू कर दी है। एक बड़ा प्रश्न लोगों के मन में है कि क्या इन चुनाव परिणामों से नरेंद्र मोदी की पुनः वापसी का रास्ता साफ होगा या फिर सत्ता परिवर्तन होगा। वैसे चुनावी राजनीति के बारे में कोई भविष्यवाणी न की जाएं तो ही अच्छा है। पर दो बात स्पष्ट रूप से कही जा सकती है। एक यह कि भाजपा के लिए राह आसान नहीं है दूसरी यह बात कि विपक्ष की धुरी कांग्रेस पार्टी ही बन सकती है।
पाचं प्रदेश के चुनाव नतीजों ने भाजपा और उसके सहयोगियों के हौसले बुलंद कर दिए है लेकिन अंदरूनी तौर पर वे जानते है कि जीत के बावजूद भी दिल्ली का रास्ता उतना आसान नहीं है, जितना समझा जा रहा है। वैसे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने तो कह रहे है कि भाजपा के लिए 2024 का रास्ता साफ हो गया है लेकिन वास्तव में भाजपा को पता है कि उसे केन्द्र में वापसी के लिए बहुत कुछ करना होगा।
वस्तव में इस भाजपा नेतृत्व की एक खास बात है, जो अन्य पार्टियों में दिखाई नहीं देती है। वह यह है कि भाजपा के नेता हर चुनाव से सीखते हैं और अपनी गलतियों को सुधारते हुए तुरंत अगले चुनाव की तैयारी शुरू कर देते है। भाजपा को पता है कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ की जीत मात्र से 2024 के लिए केन्द्र की सत्ता का रास्ता नहीं खुलने वाला और उसको काफी जोड़ तोड़ करने की आवश्यकता है। भाजपा इसमें सलग्न है ।
पिछले लोकसभा चुनाव के बाद से विपक्ष भी काफी सजग और मजबूत हुआ है। इंडिया गठबंधन इसी का परिणाम है। लोकसभा के चुनाव के लिए विपक्षी दलों ने ईमानदारी से अपनी सहयोगी पार्टियों से गठबंधन पर सहमत बनाई और एक जुट होकर लड़ने का मन बनाया। उन आपसी मतभेद के मुद्दे भुला कर गठबंधन पार्टियों के मिले-जुले कैडर खड़ा करने की आवश्यकता है। अखिलेश यादव तमाम सामाजिक मंचों को मजबूत करके सपा को इंडिया गठबंधन का एक जिम्मेदार अग बनाते हैं तो यह उत्तर प्रदेश और देश की राजनीति के लिए बहुत अच्छा होगा।
विभिन्न प्रदेशों से एक ट्रेंड सामने आया है और वो यह है कि राज्यों के चुनावों में जनता बाइपोलर वोटिंग कर रही है। मतलब यह है कि भाजपा के विरोध में लोग केवल मुख्य विपक्षी पार्टी को ही वोट दे रहे है और इस कारण अन्य छोटी पार्टियों का जनाधार कम होता जा रहा है। बंगाल में तृणमूल भाजपा विरोधी वोट ले गई और उत्तर प्रदेश में अखिलेश। इसलिए अन्य भाजपा विरोधी दल पूरी तरह से पिट गए। लेकिन यह कहना ठीक नहीं होगा। कि उन दलों का महत्व कम हो गया है,
चुनाव जितने की लिए कांग्रेस को बहुत अधिक प्रयत्न करना पड़ेगा। इसके साथ साथ उसे इंडिया गठबंधन के सहयोगियों के साथ मिलकर चलना पड़ेगा । राहुल गांधी ने कांग्रेस में कुछ महत्वपूर्ण प्रयोग किए और इनमें सबसे बड़ा था सांप्रदायिक और आर्थिक प्रश्नों पर पार्टी के ढुलमुल रवैये से हट कर एक साफगोई के साथ उसकी विचारधारा को जनता के समक्ष रखना। कोई यह आरोप नहीं लगा सकता कि राहुल गांधी ने देश के प्रमुख मुद्दों पर कुछ नहीं बोला लेकिन कांग्रेस के कुछ नेता और कार्यकर्ता अभी भी राहुल गांधी से सहमत नहीं हैं और ‘बिना’ ‘विचारधारा’ के लड़ना चाहते हैं, जिससे विपक्ष को नुकसान होगा। कांग्रेस स्वाधीनता आंदोलन की धर्मनिरपेक्ष विरासत की चर्चा करे और अपने सांस्कृतिक सामाजिक मंचों को मजबूत करे तब ही 2024 की लड़ाई वास्तव में लड़ाई होगी। प्रश्न भाजपा के सांस्कृतिक विमर्श और राम मंदिर जैसे मुद्दों का उत्तर देना भी है।
आने वाले चुनावो की चर्चा करते समय यह प्रश्न भी आता है की वास्तव में भाजपा कितनी शक्तिशाली है। भाजपा के नेता और कार्यकर्त्ता, कई चुनाव विश्लेषक, हताश बुद्धिजीवी तथा पत्रकार ऐसा बताते है की मोदी-शाह के नेतत्व में भाजपा अजेय है। इस बात का मूल्यांकन करके के लिए निम्न बिन्दुओ पर विचार करना आवश्यक है।
वास्तव में भाजपा उतनी शक्तिशाली नहीं है जितना पार्टी की प्रचार मशीन और मुख्य मीडिया हमें विश्वास दिलाते हैं। हम चारों ओर से भाजपा विरोध की मजबूत आवाजों को भी नहीं समझ पा रहे हैं। यह स्वर आगामी चुनावों में भाजपा को सत्ता को उखाड़ फेंक सकते हैं।
भाजपा के वास्तविक जनाधार को समझते समय हमे कुछ बिदुओ को ध्यान में रखना आवश्यक है।
यह बिंदु है :
साथ साथ यह बात भी महत्पूर्ण है कि हाल ही में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में हालांकि बीजेपी ने तीन राज्यों में जीत हासिल की, लेकिन कांग्रेस को मिले वोटों की कुल संख्या बीजेपी के वोटो से ज्यादा थी।
साथ ही साथ यह बात भी महत्पूर्ण है की 2019 के लोकसभा चुनावों में अपनी शक्ति के चरम पर बीजेपी का अखिल भारतीय वोट शेयर कुल वोटों के 38% से कम था।
ब्रिटेन के एक भुतपुर्व प्रधान मंत्री ने खा था की राजनीती में एक सप्ताह भी बहुत बड़ा समय होता है। चुनाव के अभी तीन महीने से प्रधिक का समय है। चुनावो के क्या परिणाम होंगे भविष्य ही बतायेगा।
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