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नई दिल्ली, 29 मई 2024

 

अपनी ढपली, अपना राग!

 

 

जड़ भरतो  के राज्य में,अपने हुए विदेह,

घर मे भीतर भी रहें,तो भी होता संदेह .

          

 

अपनों से ही जूझते, हैं सत्ता के लोग,

जब  पा सकें सामने, लड़ने का संयोग।                                 

 

रजनीति और तस्करी, दोनों मद में चूर,

राह घाट में तुल गए,कल तक थे जो नूर।                   

 

जितना बड़ा गिरोह है,उतनी गहरी खोह,

छिपे छिपे ही छाप लो,इतनी तगड़ी गोह.

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व्हेदर काक सम्वाद/

 

 

ई वी एम में खोजिये,

व्हेदर काक संवाद.

दिल्ली में कैसी हवा,

बतलायें बस आप.

 

खामोशी से कीजिये,.

,बस यही एक शुभ काम

जब लौं होते हैं नहीं

सिद्ध विधाता वाम.

 

कोशिश वैसे बहुत है ,।

नहीं बैठता   डौल.

लाबी सिंह सपूत की,

बनती मात्र मखौल.

-अनूप श्रीवास्तव

 

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