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आज का संस्करण

नई दिल्ली, 13 मई 2024

प्रशांत कुमार गौतम

 

माँ की ममता

 

गिनती नहीं आती मेरी माँ को यारों

मैं एक रोटी मांगू वह दो ही लाती हैं

जन्नत के हर लम्हे का दीदार किया था

जब माँ ने गोद में उठा कर प्यार किया था

सब बोल रहे है आज माँ का दिन है

ऐसा कौनसा दिन है जो माँ के  बिन है

मौत के लिए तो कई सारे रास्ते है

मगर जन्म के लिए केवल एक

माँ के लिए क्या लिखू

माँ ने खुद मुझे लिखा है

दवा असर न करे तो वह नज़र उतारती है

माँ है जनाब माँ

वह कहाँ हार मानती है l

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