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जो एक सच्चे समाज सुधारक थे

आकांक्षा माथुर

A person wearing glasses and a red sweater

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सिडनी, ऑस्ट्रेलिया | शुक्रवार | 15 नवंबर 2024

जिस युग में गुरु नानक का जन्म हुआ, उस समय भारतीय समाज गहन पतन की अवस्था में था। वह जाति-पाति की जकड़ में फंसा हुआ था और धीरे-धीरे अपनी समाप्ति की ओर बढ़ रहा था। इसके अतिरिक्त, उस समय की राजनीतिक दशा भी निराशाजनक थी। देश के बड़े हिस्सों पर विदेशी आक्रमणकारियों का शासन था, जो अपने हितों के लिए लोगों का शोषण कर रहे थे। समाज में फूट थी, और लोग अत्याचारों के बोझ तले कराह रहे थे। ऐसे समय में गुरु नानक ने समाज में नई आशा और उत्साह का संचार किया।

गुरु नानक का व्यक्तित्व बहुआयामी था—वह एक रहस्यवादी, संत, कवि और सुधारक थे। यहां हम उनके समाज सुधारक रूप पर विचार कर रहे हैं। उन्होंने धार्मिक कर्मकांडों को त्यागा और प्रेम व शांति का संदेश फैलाया। उन्होंने विभिन्न स्थानों की यात्रा की और इस सत्य का प्रचार किया कि "ईश्वर एक है," सभी मनुष्य एक समान हैं और उन्हें प्रेम और सहनशीलता से रहना चाहिए। उनका मानना था कि मनुष्य को संसार में रहते हुए भी अपने विचार और आचरण को पवित्र रखना चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे कमल का फूल कीचड़ में रहकर भी अछूता रहता है। गुरु नानक ने ईश्वर का नाम जपने और उसकी इच्छा के अनुसार चलने पर बल दिया और साथ ही सद्व्यवहार का महत्व भी बताया। उन्होंने कहा:

सभी उच्च हैं, सभी से ऊपर तो केवल आचार है।



लेख एक नज़र में

गुरु नानक का जन्म ऐसे समय में हुआ जब भारतीय समाज जाति-पाति, सामाजिक भेदभाव और विदेशी आक्रमणकारियों के अत्याचारों से जूझ रहा था। समाज में फैलती निराशा और असमानता को दूर करने के लिए उन्होंने प्रेम, शांति, और समानता का संदेश दिया।

गुरु नानक ने सभी को एक ईश्वर की संतान मानते हुए जाति-पाति और छुआछूत का विरोध किया। उन्होंने सभी मनुष्यों को समान समझने पर जोर दिया और उनके लिए "गुरु लंगर" की परंपरा शुरू की, जिससे एकता और भाईचारे की भावना मजबूत हुई।

 उनके अनुसार, मनुष्य को ईश्वर का नाम जपते हुए, सदाचार का पालन करना चाहिए। गुरु नानक ने समाज में व्याप्त कट्टरता, भेदभाव और असमानता को खत्म करने का आह्वान किया। आज भी उनके आदर्श और उपदेश हमें सामाजिक एकता और समरसता की प्रेरणा देते हैं।



गुरु नानक सभी मनुष्यों को एक ईश्वर की संतान मानते थे और यह भावना फैलाना चाहते थे कि सब आपस में भाई हैं। समाज में समानता की भावना विकसित करने के लिए उन्होंने दृढ़ नींव रखी।

गुरु नानक कट्टरपंथी नहीं थे; उन्होंने किसी से भी धर्म छोड़ने को नहीं कहा। उनकी दृष्टि में हिंदू-मुसलमान के भेद का कोई स्थान नहीं था, वे सभी को एक समान मानते थे। उनमें विनम्रता कूट-कूट कर भरी थी, और वे विनम्रता को भलाई का प्रमुख गुण मानते थे।

जाति-पाति और छुआछूत का विरोध करते हुए गुरु नानक ने कहा कि केवल शुभ कर्मों से कोई ऊंचा होता है, जन्म से नहीं। उन्होंने इस भेदभाव को खत्म करने के लिए "गुरु लंगर" की प्रथा शुरू की, जिसमें सभी एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन करते थे।

गुरु नानक में असाधारण नैतिक साहस और स्वतंत्रता थी। उनके उपदेशों ने जनता को आकर्षित किया और उन्हें एकजुट किया। वे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एक पुल के समान थे, और लोग उन्हें समान रूप से प्यार करते थे। उनके जीवन और उपदेशों से यह सिद्ध होता है कि उन्होंने सामाजिक बुराइयों और विभाजनकारी शक्तियों के खिलाफ कैसे संघर्ष किया। वे आध्यात्मिक और सामाजिक सुधार के एक महान आंदोलन के सफल नेता थे।

भारत में आज भी जाति-पाति, नस्ल, धर्म, प्रदेश, और भाषा के आधार पर मतभेद मौजूद हैं, बावजूद इसके कि कई महापुरुषों के उपदेश, संविधान के नियम, और अनेक महान आंदोलनों ने इस दिशा में प्रयास किए हैं। हमें निराश नहीं होना चाहिए। गुरु नानक के प्रेम और भाईचारे के संदेश को अपनाकर, हमें उनके आदर्शों पर चलना चाहिए।

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