देश में बुलडोज़र की राजनीति ने अपने ही नियम-क़ानून की सीमाओं को पार कर लिया है, और अब इसे रोकने का समय आ गया है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न राज्यों में चल रही बुलडोज़र कार्रवाई पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि केवल अभियुक्त होने के आधार पर किसी का घर गिराना ग़लत है। यहाँ तक कि अगर कोई व्यक्ति अपराधी साबित हो जाए, तब भी उसकी संपत्ति को ध्वस्त नहीं किया जा सकता। इस पर सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी सहमति जताई कि अपराध साबित होने के बाद भी मकान गिराना सही नहीं है।
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुलडोज़र की राजनीति को इतना बढ़ावा दिया कि उन्हें 'बुलडोज़र बाबा' की उपाधि दी गई। 2017 में योगी ने घोषणा की थी कि उनकी सरकार महिलाओं और समाज के कमजोर वर्गों के खिलाफ अपराध करने वालों की संपत्तियों को बुलडोज़र से ढहा देगी। लेकिन अदालत की चेतावनियों को नजरअंदाज करते हुए, यह बुलडोज़र कार्रवाई असंतुलित रूप से मुसलमानों के खिलाफ की जाने लगी।
एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी यूपी के योगी से प्रेरणा लेकर चुनावी फायदा उठाने के लिए दंगों के बाद खरगोन में बुलडोज़र चलाया। राज्य के गृह मंत्री ने घोषणा की कि जिन घरों से पत्थर आए, वे गिरा दिए जाएंगे। इस कार्रवाई में कई ऐसे घर भी तोड़े गए जो घटनास्थल से मीलों दूर थे। जब मामला अदालत में गया, तो सरकार ने अपना रंग बदलते हुए कहा कि केवल अवैध मकानों को तोड़ा गया है, जबकि उनमें से कुछ मकान प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बने थे।
हालांकि बुलडोज़र की इस राजनीति ने कई नेताओं को असफल बना दिया। शिवराज चौहान को मुख्यमंत्री बनने का मौका नहीं मिला, और गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा खुद चुनाव हार गए। उनकी राजनीति पर बुलडोज़र चल गया। यह राजनीति केवल सत्ता और स्वार्थ की भूख को दिखाती है, जहां ग़रीबों और अल्पसंख्यकों के घरों को बुलडोज़र का निशाना बनाया जाता है।
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाकर बुलडोज़र की इस कार्रवाई ने यह अनिवार्य बना दिया कि न्याय के लिए अदालत में अपील की जाए। यूपी में 12 वर्षीय बच्ची के बलात्कार के आरोपी मुईद खान की बेकरी को ध्वस्त कर दिया गया क्योंकि वह मुस्लिम और समाजवादी पार्टी से जुड़े थे। वहीं, बीजेपी कार्यकर्ता, जिन पर बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में बलात्कार का आरोप था, उन्हें ज़मानत पर छोड़ दिया गया और उनका स्वागत भी किया गया।
बुलडोज़र के नीचे सबसे ज़्यादा पीड़ा मुसलमानों और पिछड़े वर्गों को सहनी पड़ती है। बलात्कार के आरोपी बीजेपी कार्यकर्ताओं को विशेष प्राथमिकता दी गई, जबकि मुसलमानों और गरीबों के घरों को बिना कोई नोटिस दिए ढहा दिया गया।
‘आउटलुक’ के मुताबिक, पिछले दो वर्षों में बुलडोज़र के नाम पर 1,50,000 से ज्यादा घर तोड़े गए और 7,38,000 लोगों को बेघर कर दिया गया। यह एक तरह से सरकारी आतंकवाद है, जहां सत्ता का दुरुपयोग किया जा रहा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस गोविंद माथुर ने भी इसे गैर-कानूनी करार दिया था, लेकिन इसके बावजूद, बुलडोज़र की यह राजनीति जारी है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी भी गैर-कानूनी ढांचे, चाहे वह मंदिर हो या अन्य, को संरक्षण नहीं दिया जाएगा। साथ ही, अदालत ने देशभर के लिए संपत्तियों को ध्वस्त करने के लिए उचित दिशा निर्देश जारी करने के बारे में भी बात की है।
राहुल गांधी ने भी बुलडोज़र की राजनीति पर कड़ा विरोध जताया। उन्होंने कहा कि “बुलडोज़र के नीचे इंसानियत और न्याय को कुचलने वाली बीजेपी का संविधान विरोधी चेहरा अब देश के सामने बे-नकाब हो चुका है।” राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर यह भी लिखा कि "यह बुलडोज़र राजनीति दरअसल गरीबों और पिछड़ों के खिलाफ है, और हमें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इसके खिलाफ कड़े निर्देश जारी करेगा।"
राहुल गांधी के अनुसार, "देश बाबा साहेब के संविधान से चलेगा, न कि सत्ता के चाबुक से।" यह स्पष्ट हो चुका है कि बुलडोज़र की राजनीति सिर्फ नागरिक नियोजन या कानून का उल्लंघन नहीं है, बल्कि यह अल्पसंख्यक समुदाय और गरीबों को सबक सिखाने का एक माध्यम बन गया है।
बीजेपी की सरकार हर मोर्चे पर नाकाम रही है, और इस नाकामी को छिपाने के लिए वह अपने मतदाताओं को खुश करने के लिए ऐसे उपाय अपनाती है। लेकिन इस सबके बावजूद, यह राजनीति कई लोगों के घरों को तबाह कर रही है। लोगों को अपने घर बनाने में वर्षों लग जाते हैं, लेकिन बुलडोज़र की एक चाल से वे बर्बाद हो जाते हैं।
समय आ गया है कि इस बुलडोज़र की राजनीति पर लगाम लगे और न्याय की आवाज़ को बुलंद किया जाए।
---------------
We must explain to you how all seds this mistakens idea off denouncing pleasures and praising pain was born and I will give you a completed accounts..
Contact Us