image

आज का संस्करण

नई दिल्ली, 8 दिसंबर 2023

अनूप  श्रीवास्तव 

स कदर बिगड़े हैं 
तेवर नगर के,
जलरहा घर,
चुपचापहैं,
लोगघर के.

नगर के सभ्रांत जन सब,
मंत्रणा  में लीन,
आग यह किसने लगाई ?
यह प्रश्न केवल विचाराधीन.

घर बुझाने के लिए,
तत्पर  न कोई.
जब कि घर के पास ही,
बहते कई नाले नहर के.

है गनीमत हवा है,
अभी हल्की .
पर बन सकती,
बवंडर कभी भी.

फिर भला रह पाएगी,
सीमा कहाँ तक?
द्वार की घर की,
मोहल्ले की नगर की,
या पड़े रह जायेंगे,
कांटे डगर के.

  • Share: