इस कदर बिगड़े हैं
तेवर नगर के,
जलरहा घर,
चुपचापहैं,
लोगघर के.
नगर के सभ्रांत जन सब,
मंत्रणा में लीन,
आग यह किसने लगाई ?
यह प्रश्न केवल विचाराधीन.
घर बुझाने के लिए,
तत्पर न कोई.
जब कि घर के पास ही,
बहते कई नाले नहर के.
है गनीमत हवा है,
अभी हल्की .
पर बन सकती,
बवंडर कभी भी.
फिर भला रह पाएगी,
सीमा कहाँ तक?
द्वार की घर की,
मोहल्ले की नगर की,
या पड़े रह जायेंगे,
कांटे डगर के.
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