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नई दिल्ली, 25 अक्टूबर 2023

अनूप श्रीवास्तव

रावण का पुतला लगता है उदास
बाहर से दर्शनीय
अंदर से जलने की प्यास
ज्यों ज्यों हम प्रगति करते जा रहे हैं
रावण का आकार छोटा होता जारहा है
वैसे तो रावण मैदान में खड़ा हुआ है
लेकिन जिस गति से वह बाहर छोटा हुआ है
उसी अनुपात में दर्शकों के भीतर बड़ा हुआ है
रावण के पुतले के सिर पर एक नही दसदस सिर
उग आते हैं दर्शकों के कन्धों पर ~फिर -फिर
इस तरह अकेला खड़ा रावण
अनेक रावणों से जाता है घिर
भीड़ के बीच भी अकेलेपन के साथ
थामे हुए  मेघनाथ  का हाथ
नाक कटाने के बाद भी चुप नहीं है सूपनखा !करा रही है राम और रावण में जमकर झगड़ा
राम को ही नहीं इस बार उसने रावण को भी रगड़ा
खरदूषण गले में झुलाये उपाधियों के भूषण
अनंतकाल से सोये व्यवस्था के कुम्भकरण
अपनेपन में डूबे आकर्ण
संवेदहीन -संवाद !!
देशों के बीच वार्तालाप का माध्यम 
अब बतकही करना भी नहीं रहा ~~
विभीषण चाहे जिस पाले में रहे हों
उसके भाग्य में अब भी है केवल
लात खाना जनता की बात बेबात
विजयादशमी के पर्व परभी 
मुद्दों की बात छाई
विजयादशमी पर
पूरे देश को बधाई!!!

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