रावण का पुतला लगता है उदास
बाहर से दर्शनीय
अंदर से जलने की प्यास
ज्यों ज्यों हम प्रगति करते जा रहे हैं
रावण का आकार छोटा होता जारहा है
वैसे तो रावण मैदान में खड़ा हुआ है
लेकिन जिस गति से वह बाहर छोटा हुआ है
उसी अनुपात में दर्शकों के भीतर बड़ा हुआ है
रावण के पुतले के सिर पर एक नही दसदस सिर
उग आते हैं दर्शकों के कन्धों पर ~फिर -फिर
इस तरह अकेला खड़ा रावण
अनेक रावणों से जाता है घिर
भीड़ के बीच भी अकेलेपन के साथ
थामे हुए मेघनाथ का हाथ
नाक कटाने के बाद भी चुप नहीं है सूपनखा !करा रही है राम और रावण में जमकर झगड़ा
राम को ही नहीं इस बार उसने रावण को भी रगड़ा
खरदूषण गले में झुलाये उपाधियों के भूषण
अनंतकाल से सोये व्यवस्था के कुम्भकरण
अपनेपन में डूबे आकर्ण
संवेदहीन -संवाद !!
देशों के बीच वार्तालाप का माध्यम
अब बतकही करना भी नहीं रहा ~~
विभीषण चाहे जिस पाले में रहे हों
उसके भाग्य में अब भी है केवल
लात खाना जनता की बात बेबात
विजयादशमी के पर्व परभी
मुद्दों की बात छाई
विजयादशमी पर
पूरे देश को बधाई!!!
We must explain to you how all seds this mistakens idea off denouncing pleasures and praising pain was born and I will give you a completed accounts..
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