image

मीडिया मैप न्यूज़

नई दिल्ली | मंगलवार | 24 सितम्बर 2024

ले ही भारत और पाकिस्तान राजनीतिक रूप से एक-दूसरे के दुश्मन हों, पर महिलाओं की सुरक्षा के मामले में दोनों देशों की स्थिति में कोई खास अंतर नहीं है। अस्पताल जैसे संवेदनशील स्थानों पर भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। हाल ही में कोलकाता के एक अस्पताल में एक महिला स्वास्थ्यकर्मी के साथ हुई दुष्कर्म की घटना ने यह साबित कर दिया कि सुरक्षा के नाम पर केवल दिखावे की व्यवस्थाएं की जा रही हैं। पाकिस्तान के अस्पतालों में भी महिलाएं यौन उत्पीड़न का सामना करती हैं, जहां न तो पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था होती है और न ही महिलाओं की शिकायतों पर उचित ध्यान दिया जाता है।

पाकिस्तान के अस्पताल, जहां इलाज की उम्मीद लेकर लोग आते हैं, वहां काम करने वाली महिलाएं खुद को कितना सुरक्षित महसूस करती हैं? एक डॉक्टर या नर्स का काम सिर्फ मरीजों की देखभाल करना नहीं है, बल्कि वे अपनी सुरक्षा की जंग भी लड़ रही होती हैं। ताज्जुब की बात ये है कि अस्पताल जैसे जगहों पर भी महिलाओं को यौन उत्पीड़न और हिंसा का सामना करना पड़ता है।

किसी भी समय, कोई भी व्यक्ति आसानी से अस्पतालों के अंदर घुस सकता है। न कोई सुरक्षा जांच होती है और न ही कोई नियंत्रण। एक महिला डॉक्टर ने कहा, "रोशनदान से एक शख्स ने वीडियो बना ली जब मैं वाशरूम में थी। उस व्यक्ति ने मुझे शारीरिक रूप से भी छूने की कोशिश की। मैं डर गई और खुद को असुरक्षित महसूस किया।" ऐसे कई मामले अस्पतालों में सामने आते हैं, जहां महिला स्वास्थ्यकर्मियों को डर के माहौल में काम करना पड़ता है।

अस्पतालों में न केवल मरीजों, बल्कि उनके रिश्तेदारों द्वारा भी महिला डॉक्टरों और नर्सों का शोषण किया जाता है। एक नर्स ने बताया, "कई बार मरीज के रिश्तेदार गंदी बातें करते हैं, गाली-गलौज करते हैं, और कई बार शारीरिक रूप से भी छेड़खानी होती है।" यह न केवल मानसिक, बल्कि शारीरिक रूप से भी परेशान करने वाला होता है।

 

लेख एक नज़र में
पाकिस्तान के अस्पतालों में महिला स्वास्थ्यकर्मियों को यौन उत्पीड़न और हिंसा का सामना करना पड़ता है। यह समस्या न केवल मरीजों और उनके रिश्तेदारों से है, बल्कि अपने साथी कर्मचारियों से भी होती है। महिलाएं अपनी सुरक्षा के लिए हर कदम पर संघर्ष करती हैं और अक्सर डर के साए में काम करती हैं।
अस्पतालों में सुरक्षा और सीसीटीवी कैमरों का होना जरूरी है, लेकिन सुरक्षा का इंतजाम पूरी तरह से नहीं होता। महिलाएं अपनी शिकायतें दर्ज करती हैं, लेकिन ज़्यादातर मामले रिपोर्ट नहीं होते।
इस समस्या को हल करने के लिए सरकारी कदमों के साथ-साथ अस्पताल प्रशासन को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। हर अस्पताल में सख्त सुरक्षा नियम और जीरो टॉलरेंस पॉलिसी होनी चाहिए। साथ ही, महिलाओं को भी अपने हक़ के लिए आवाज़ उठानी होगी।

 

अस्पताल में केवल मरीज या उनके रिश्तेदार ही नहीं, बल्कि महिला डॉक्टरों को अपने साथियों से भी उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। कई बार वरिष्ठ डॉक्टर या अन्य स्टाफ महिलाओं के साथ अनुचित व्यवहार करते हैं। एक महिला डॉक्टर ने बताया, "ऑपरेशन थियेटर में एक सीनियर डॉक्टर हमेशा मुझे छूने की कोशिश करता था। मैं डर के मारे कुछ कह नहीं पाई, क्योंकि मेरी स्कॉलरशिप रुक सकती थी।"

महिलाओं को अपने काम की जगह पर भी सुरक्षित महसूस नहीं होता। एक नर्स ने बताया कि एक बार एक सीनियर डॉक्टर ने उसे अपने हॉस्टल में बुलाया, जहां उसने खुद को बचाने के लिए ऊँचाई से कूदने की कोशिश की। यह मामला रेप का था, लेकिन उसने रिपोर्ट नहीं की क्योंकि उसे डर था कि उसे ही दोषी ठहराया जाएगा।

हालांकि कुछ मामलों में महिलाएं अपनी शिकायतें दर्ज करती हैं, पर ज़्यादातर मामले रिपोर्ट नहीं होते। अस्पतालों में सुरक्षा और सीसीटीवी कैमरों का होना जरूरी है, लेकिन सुरक्षा का इंतजाम पूरी तरह से नहीं होता। एक महिला डॉक्टर ने बताया, "जब मैं रात में काम पर होती हूँ, तो मुझे हमेशा डर लगता है। मैं अब सीढ़ियों की बजाय लिफ्ट का इस्तेमाल करती हूँ, क्योंकि लिफ्ट सुरक्षित और रोशनी वाली जगह होती है।"

पाकिस्तान में महिला स्वास्थ्यकर्मियों के उत्पीड़न को लेकर कोई ठोस सरकारी डेटा नहीं है। लेकिन अमेरिकी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 95% पुरुष स्वास्थ्यकर्मियों ने स्वीकार किया है कि उन्होंने महिला नर्सों के साथ वर्बल और फिजिकल उत्पीड़न किया है। इनमें से 59% महिलाएं कार्यस्थल पर हिंसा का सामना करती हैं, और 29% यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं।

महिलाएं अपनी सुरक्षा के लिए हर कदम पर संघर्ष करती हैं। एक महिला डॉक्टर ने बताया, "जब मैं मोर्चरी में काम करने जाती हूँ, तो आज भी मैं किसी पुरुष सहकर्मी को अपने साथ ले जाती हूँ। क्योंकि अकेले जाना बहुत खतरनाक होता है।" महिलाएं हर कदम पर डर के साए में काम करती हैं, लेकिन उनके पास कोई ठोस सुरक्षा उपाय नहीं होते।

इस स्थिति से निपटने के लिए केवल सरकारी कदम ही पर्याप्त नहीं हैं। अस्पताल प्रशासन को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। हर अस्पताल में सख्त सुरक्षा नियम और जीरो टॉलरेंस पॉलिसी होनी चाहिए। साथ ही, महिलाओं को भी अपने हक़ के लिए आवाज़ उठानी होगी। इस समस्या को तभी हल किया जा सकता है, जब हर स्तर पर गंभीरता से इसे लिया जाए।

अस्पताल एक ऐसी जगह होनी चाहिए जहां हर महिला डॉक्टर और नर्स खुद को सुरक्षित महसूस करे। उन्हें सिर्फ मरीजों की देखभाल की चिंता होनी चाहिए, न कि अपनी सुरक्षा की। समाज और प्रशासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि महिलाएं बिना डर के अपने कर्तव्यों का पालन कर सकें।

---------------

  • Share:

Fatal error: Uncaught ErrorException: fwrite(): Write of 592 bytes failed with errno=122 Disk quota exceeded in /home2/mediamapco/public_html/system/Session/Handlers/FileHandler.php:407 Stack trace: #0 [internal function]: CodeIgniter\Debug\Exceptions->errorHandler(8, 'fwrite(): Write...', '/home2/mediamap...', 407) #1 /home2/mediamapco/public_html/system/Session/Handlers/FileHandler.php(407): fwrite(Resource id #9, '__ci_last_regen...') #2 [internal function]: CodeIgniter\Session\Handlers\FileHandler->write('276973aa486ce30...', '__ci_last_regen...') #3 [internal function]: session_write_close() #4 {main} thrown in /home2/mediamapco/public_html/system/Session/Handlers/FileHandler.php on line 407