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आज का संस्करण

नई दिल्ली, 15 दिसंबर 2023

अनूप श्रीवास्तव

A person with glasses and a blue shirt

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चाहे पत्रकारिता का व्यवसाय हो या समाचारपत्रों का धंधा, दोनों ही कुछ शर्तों से बंधे हैं ।  इसमें कोई नई बात नहीं है ।  बेईमान आदमी भी ईमानदार साथी चाहता है ।  यह अलग बात है की अमानत में खयानत करने वाले हर जगह निकल आते हैं ।  लोग और व्यवसाय ने पत्रकारिता के पेशे को भी कहीं ना कहीं छोड़ा ।  यह सही है कि पहले भी हम पत्रकारों के कंधे इस चतुराई से इस्तेमाल हो जाते थे कि हम ब्रेकिंग न्यूज़ के चक्कर में आ जाते थे और लोग bag अपना उल्लू सीधा कर लेते थे ।

वजह हमारी कलम पर लोगों को भरोसा था । हमारी अखबारों में सच्चाई झलकती थी । इसलिए वह भी हमें ऑफ द रिकॉर्ड सारी बात बता देते थे जिससे वह सारे जमाने से छिपाते फिरते थे ताकि हम सोच समझ कर सही-सही लिख सके ।

दूसरी तरफ ऐसे लोग भी काम नहीं थे जिनकी आंखों के हम लोग किरकिरी थे और जो हमारी आंखों में धूल झोंकने में माहिर थे । एक बार विधानसभा की लाबी में विधानसभा का गार्डन एक स्लिप दे गया । स्लिप तत्कालीन मुख्य सचिव टीपी तिवारी की थी । स्लिप में लिखा था –‘मैं विधानसभा अध्यक्ष के कक्ष में हूं, आपके साथ एक कप चाय पीने का मन है । क्या आप मुझे यह सौभाग्य देना चाहेंगे?’

मुख्य सचिव का चाय का निमंत्रण चुकाने वाला था उसके पीछे क्या मंशा थी जानने के लिए विधान सभा अध्यक्ष के कमरे में पहुंचा चाय आई । एक कप चाय उन्होंने मुझे दी और एक कप स्वयं ली। मुझे देखते हुए बोले उस दिन आपको तिलक हाल में सुना था । मन हुआ आपके साथ एक कप चाय पी जाए। मैंने मुस्कुरा कर कहा क्या चीफ सेक्रेटरी की चाय ऐसी, इतनी सुखी होती है?

ओह !सही कहा। तो कल शाम 4:00 बजे आपको समय हो तो पधारिया चीफ सेक्रेटरी वाली चाय पिलाता हूं।

दूसरे दिन शाम 4:00 बजे ही मुख्य सचिव त्रिभुज प्रसाद तिवारी के ऑफिस जा पहुंचा। विजिटिंग कार्ड चपरासी को दिया

“जाइए साहब! चीफ साहब आपके ही इंतजार में है! लेकिन साहब कभी-कभी हम गरीब लोगों की भी खबर छाप दिया करें!”

ओह! बताइए। बताइए। और मैं कलम निकालकर उसकी बात लिखने लगा। तभी, मुख्य सचिव की तेज तीखी, घनघनाती बेल्ट बजी…..

जाइए! जाइए साहब!! रामदीन मुख्य सचिव का मुख्य सेवक बोला-

उस समय मुख्य सचिव का कार्यालय विधानसभा भवन के पहले तल पर हुआ करता था। शान शौकत के कहने ही क्या थे। अंदर पहुंचा ।चीफ सेक्रेटरी तिवारी जी चेंबर में इंतजार कर रहे थे। शाही चाय लगी हुई थी। कुछ गंभीर मुद्रा में बैठे थे बोले  चीफ सेक्रेटरी आपके इंतजार में बैठा है लेकिन आप हमारे अर्दली से गुफ्तगू कर रहे थे? क्षमा करें सर! मुझे सिखाया गया है कि जो खबर दे वही उस समय मेरा चीफ सेक्रेटरी है। उस समय आपका अर्दली मेरे लिए चीफ सेक्रेटरी था।

ओके! ओके! मैं तो मजाक कर रहा था तो आपकी पसंदीदा चाय हाजिर है। बैठिए ना !और तभी दो सेवक तरह-तरह की नमकीन, मिठाईयां ड्राई फ्रूट्स से सजी ट्रॉली खींचते आ गए। कुछ देर तक अनौपचारिक चर्चा करते-करते चीफ साहब बोले अगर इजाजत दें तो कुछ लोगों को निपटा दूं फिर इत्मीनान से आपके साथ बैठकर चाय पी जाए और एक फोटो फाइल बढ़ाते हुए कहा शायद आपके मतलब की बातें हो इसमें!

‘शुक्रिया, क्या इसमें से नोट ले सकता हूं, व्हाय नॉट। अगर आपको ऐसा लगे तो।‘ कह कर वे बैठ गए।

मैंने फाइल देखी। पढ़ता चला गया। डिटेल में नोट लिए। एक बड़ी और महत्वपूर्ण एक्सक्लूसिव खबर मेरे जेब में थी। चीफ साहब की चाय पीने के बाद खलीते में सही खबर लेकर चला आया।

दोपहर में स्वतंत्र भारत पहुंचकर अपनी नोटबुक निकाल। खबर बलाई बड़ी न्यूज़ थी। पायनियर और स्वतंत्र भारत में बाय लाइन से बैनर में खबर छपी। मामला श्रम विभाग से जुड़ा था। तत्कालीन श्रम सचिव बी के चतुर्वेदी (जो बाद में कैबिनेट सेक्रेटरी भी हुए) के ऑफिस उन्हें जताने गया कि उनके विभाग की खबर बिना उनके दिए निकाल लाया। चतुर्वेदी जी गंभीर थे। आपने आज हमारी खबर पढ़ी। वे नहीं बोल। फिर दोबारा दोहराया तो वे फुसफुसाय  पढ़ी ,  लेकिन क्यों लिखी आपने यह?

क्या कुछ गलत है, आपने नहीं दी तो भी मिल गई?

चतुर्वेदी जी ने स्वतंत्र भारत अखबार मेरी ओर बढ़ते हुए कहा -लीजिए, देखिए !जिस पर लाल स्याही से मुख्य सचिव की टिप्पणी लिखी थी-यह मामला काफी समय से पड़ा हुआ है। आज अखबार की भी न्यूज़ बन गई। इसे

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