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आज का संस्करण

नई दिल्ली , 9 अप्रैल 2024

एक ग़ज़ल .....

 

चाहत का अंजाम तुम्हारी आँखों में ,

देखा अपना नाम तुम्हारी आँखों में !

 

दूर तलक़ उलझन फैली है जीवन की ,

बस थोड़ा आराम तुम्हारी आँखों में !

 

छू कर महके अश्क़ों की गंगा जमना ,

देखे चारों धाम तुम्हारी आँखों में !

 

ग़म के अंधियारों में चमके रह- रह कर ,

ख़ुशियों के पैग़ाम तुम्हारी आँखों में !

 

तुलसी के दोहे  चस्पा हैं होंठों पर  ,

मीरा के घनश्याम तुम्हारी आँखों में !

 

कैसे अपने होश सम्हालूँ तुम बोलो ,

छलक रहे हैं जाम तुम्हारी आँखों में !

 

काश कि हम भी काजल की तरहा होते ।

रहते सुबहो शाम तुम्हारी आँखो में !

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