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बापू के नरपिशाच हत्यारे का फांसी का दिन

के. विक्रम राव

A person wearing glasses and a red shirt

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(नवंबर 15, 1949: यह दिन इतिहास में उस निर्मम घटना का प्रतीक है, जब महात्मा गांधी के हत्यारे, नाथूराम गोड्से को फांसी दी गई थी। इस घटना को 75 वर्ष हो चुके हैं। यह लेख इस विवादित और क्रूर व्यक्तित्व की पड़ताल करता है। - संपादक)

30 जनवरी 1948 को शाम 5:13 बजे की घटना है। रायटर संवाद समिति के पत्रकार पी.आर. राय उस दिन बिड़ला हाउस में मौजूद थे, क्योंकि गांधी जी प्रार्थना सभा में हिंदू-मुस्लिम सौहार्द को लेकर अनशन की घोषणा कर सकते थे। राय ने तत्काल फोन पर खबर दी, "चार गोलियां बापू पर चलीं।" यह वाक्य दुनिया भर में गूंजा। 

गोलियों की आवाज सुनकर गांधी जी अपनी पोती आभा के कंधे पर गिरे। उनके अंतिम शब्द थे, "राम...रा..."। दूसरी तरफ उनकी पोती मनु ने भी उन्हें संभाला। दोनों की सफेद साड़ियां रक्तरंजित हो गईं। 

हत्या के बाद अफवाह उड़ी कि हत्यारा मुसलमान है। स्थिति बिगड़ने से पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने रेडियो पर घोषणा की कि हत्यारा हिंदू था। यह घोषणा दंगों को रोकने में सहायक रही। 

 

लेख एक नज़र में
15 नवंबर, 1949 को नाथूराम गोड्से को महात्मा गांधी की हत्या के लिए फांसी दी गई, जो भारतीय इतिहास में एक काले अध्याय का प्रतीक है। 30 जनवरी 1948 को गांधी जी पर चार गोलियां चलाई गईं, जिससे उनकी हत्या हो गई।
गोड्से, जो एक साधारण परिवार से था और मानसिक अस्थिरता का शिकार था, ने गांधी जी के प्रति नफरत और हिंसा के कारण यह जघन्य अपराध किया। उसकी हत्या का प्रयास पहले भी हुआ था, लेकिन वह सफल नहीं हो पाया।
गोड्से का उद्देश्य था कि हत्या का दोष मुसलमानों पर डाला जाए, जिससे साम्प्रदायिक दंगे भड़क सकें। गांधी जी सत्य और अहिंसा के प्रतीक थे, और उनकी हत्या भारतीय संस्कृति के मूल्यों का अपमान है। गोड्से का कृत्य हमेशा एक नृशंस हत्या के रूप में याद रखा जाएगा, जो शांति और सहिष्णुता के खिलाफ है।

नाथूराम गोड्से न तो स्वतंत्रता सेनानी था, न ही कोई ख्यातिप्राप्त विचारक या नेता। वह एक सामान्य परिवार से था। उसके पिता विनायक गोड्से डाकखाने में मामूली बाबू थे। नाथूराम पढ़ाई में कमजोर था और मिडिल स्कूल में फेल होने के बाद पढ़ाई छोड़ दी। 

पुणे में जन्मा यह व्यक्ति अपनी युवावस्था में किसी बड़े आंदोलन या विचारधारा से नहीं जुड़ा। 1944 में वह पहली बार सेवाग्राम में गांधी जी के खिलाफ हिंदू महासभा के धरने में शामिल हुआ। इसके बाद 1945 में उसने खुद को एक छोटे से समाचार पत्र का संवाददाता बताते हुए शिमला सम्मेलन में भाग लिया। 

नाथूराम का जीवन साधारण और विचारशून्यता का प्रतीक था। उसकी सोच और गतिविधियां संकीर्णता और हिंसा के इर्द-गिर्द घूमती थीं। 

गांधी जी की हत्या नाथूराम का पहला प्रयास नहीं था। 20 जनवरी 1948 को उसने मदनलाल पाहवा के साथ मिलकर बिड़ला भवन में बम फेंका। हालांकि निशाना चूक गया और पाहवा पकड़ा गया, लेकिन नाथूराम भागने में सफल रहा। 

10 दिन बाद, 30 जनवरी को उसने बापू की प्रार्थना सभा में तीन गोलियां दाग दीं। एक रोचक घटना से पता चलता है कि नाथूराम कितना निर्मम था। हत्या से ठीक पहले, जब गांधी जी प्रार्थना सभा के लिए निकल रहे थे, तो नाथूराम ने उनका रास्ता रोका। इस दौरान गांधी जी की पोती मनु के हाथ से पूजावाली माला और भजन पुस्तक गिर गई, जिसे नाथूराम ने रौंद दिया। 

नाथूराम का मकसद स्पष्ट रूप से नफरत और विघटनकारी था। उसने हत्या के बाद अपने आपको मुसलमान के रूप में दिखाने की कोशिश की। उसका उद्देश्य था कि हत्या का दोष मुसलमानों पर जाए और बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क जाए। 

नाथूराम गोड्से एक बेरोजगार, मानसिक रूप से अस्थिर और अधेड़ व्यक्ति था। जेल में उसकी मेडिकल रिपोर्ट से पता चला कि वह मानसिक बीमारी से ग्रस्त था। गांधी जी की हत्या के दो सप्ताह पहले उसने जीवन बीमा कराया, ताकि उसकी मौत के बाद उसका परिवार बीमा राशि का लाभ उठा सके। 

यह भी दिलचस्प है कि उसने अपने मृत्यु दंड के खिलाफ ब्रिटिश प्रिवी काउंसिल में अपील की, जो बताता है कि वह अपने "ऐतिहासिक मिशन" को लेकर कितना असमंजस में था। 

आज भी कुछ लोग गोड्से को एक महान विचारक और आदर्शवादी मानते हैं। वे उसके उस अदालत में दिए गए बयान को उद्धृत करते हैं, जिसमें उसने गांधी जी की हत्या के कारण गिनाए। लेकिन यह तर्क कमजोर है। नाथूराम जैसा व्यक्ति, जो मराठी तक ठीक से नहीं जानता था, अंग्रेजी में इतनी प्रभावशाली दलील कैसे दे सकता है? 

हत्या एक जघन्य अपराध है, चाहे किसी भी उद्देश्य से की जाए। नाथूराम गोड्से ने एक निहत्थे, वृद्ध, और श्रद्धालु गांधी जी को मारा। गांधी जी राम के अनन्य भक्त थे और जीवनभर सत्य और अहिंसा के प्रति समर्पित रहे। 

गोड्से का यह कृत्य एक नृशंस हत्या के रूप में हमेशा याद रखा जाएगा। उसकी प्रशंसा करना उस मूल भारतीय संस्कृति का अपमान है, जो शांति, सहिष्णुता और अहिंसा में विश्वास करती है। 

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