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सिसकती मानवता की सेवा में समर्पित एक जीवन

प्रशांत गौतम

नई दिल्ली | बुधवार | 28 अगस्त 2024

दर टेरेसा, जिनका असली नाम एग्नेस गोंझा बोयाजिजू था, 26 अगस्त 1910 को मेसिडोनिया के एक छोटे से गाँव में जन्मी थीं। उन्हें विश्वभर में उनकी निस्वार्थ सेवा और मानवता के प्रति प्रेम के लिए जाना जाता है। मदर टेरेसा ने अपने जीवन को गरीबों, बीमारों और बेसहारा लोगों की सेवा के लिए समर्पित किया। उनका जीवन एक मिसाल है कि कैसे एक इंसान बिना किसी स्वार्थ के दूसरों के लिए जी सकता है।

मदर टेरेसा का बचपन एक सामान्य परिवार में बीता। उनके माता-पिता उन्हें धार्मिक मूल्यों और सेवा की भावना से प्रेरित करते थे। 18 साल की उम्र में, उन्होंने नन बनने का फैसला किया और आयरलैंड के लोरेटो कॉन्वेंट में दाखिला लिया। यहाँ से उनके जीवन की एक नई दिशा शुरू हुई। उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद भारत की ओर रुख किया। भारत की गरीबी, भूख और बीमारी ने उनके मन को गहरे स्तर पर छू लिया और यहीं से उन्होंने अपनी सेवा की यात्रा शुरू की।

मदर टेरेसा 1929 में कोलकाता आईं और यहाँ की दुर्दशा देखकर वह स्तब्ध रह गईं। उन्होंने देखा कि लोग सड़कों पर तड़पते हुए मर रहे थे और कोई उनकी मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था। मदर टेरेसा ने अपने दिल में यह निश्चय किया कि वह इन लोगों की मदद करेंगी। 1948 में, उन्होंने लोरेटो कॉन्वेंट की सेवा छोड़ दी और गरीबों की सेवा के लिए "मिशनरीज ऑफ चैरिटी" की स्थापना की। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य गरीबों, बीमारों और लाचार लोगों की सेवा करना था। उनके इस निर्णय ने उनके जीवन का मार्ग बदल दिया और वह पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा बन गईं।

 

लेख एक नज़र में
मदर टेरेसा ने अपना जीवन गरीबों, बीमारों और बेसहारा लोगों की सेवा के लिए समर्पित किया। उनका जन्म 1910 में मेसिडोनिया में हुआ था और उन्होंने अपने जीवन को निस्वार्थ सेवा के लिए समर्पित किया।
मदर टेरेसा ने "मिशनरीज ऑफ चैरिटी" की स्थापना की और विश्वभर में जरूरतमंदों की मदद के लिए काम किया। उनका मानना था कि सेवा ही सच्ची पूजा है और उन्होंने बिना किसी भेदभाव के गरीबों, बीमारों और अनाथ बच्चों की सेवा की।
मदर टेरेसा को कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिले, जिनमें 1979 का नोबेल शांति पुरस्कार प्रमुख है। उनका जीवन सिर्फ सेवा और समर्पण का ही नहीं था, बल्कि उन्हें अनेक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। मदर टेरेसा का जीवन हमें यह सिखाता है कि प्रेम, सेवा और समर्पण से ही दुनिया में बदलाव लाया जा सकता है।

 

मदर टेरेसा का मानना था कि सेवा ही सच्ची पूजा है। उन्होंने बिना किसी भेदभाव के गरीबों, बीमारों और अनाथ बच्चों की सेवा की। उनकी सेवा का क्षेत्र केवल भारत तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने विश्वभर में जरूरतमंदों की मदद के लिए मिशनरीज ऑफ चैरिटी का विस्तार किया। उनका मुख्य उद्देश्य था कि कोई भी व्यक्ति भूखा या बीमार न रहे। उनकी सेवा की वजह से उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान भी मिले, जिनमें 1979 का नोबेल शांति पुरस्कार प्रमुख है। इसके अलावा, उन्हें भारत सरकार द्वारा 1980 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

मदर टेरेसा का जीवन सिर्फ सेवा और समर्पण का ही नहीं था, बल्कि उन्हें अनेक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। कई बार उनकी आलोचना भी की गई, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। उन्हें विश्वास था कि सेवा से ही समाज का कल्याण हो सकता है और उन्होंने अपने जीवन के आखिरी समय तक इसी विश्वास के साथ काम किया।

मदर टेरेसा ने अपने जीवन से यह सिखाया कि दुनिया में सबसे बड़ा धर्म मानवता है। उन्होंने अपने कार्यों से यह साबित किया कि अगर किसी में सच्ची सेवा भावना हो, तो वह किसी भी कठिनाई का सामना कर सकता है। उनका जीवन हमें यह संदेश देता है कि प्रेम, सेवा और समर्पण से ही दुनिया में बदलाव लाया जा सकता है। उनका हर एक कदम लोगों के लिए प्रेरणा बना और आज भी उनका नाम सेवा और मानवता का प्रतीक माना जाता है।

5 सितंबर 1997 को मदर टेरेसा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन उनकी यादें और उनके द्वारा किए गए काम आज भी जीवित हैं। उनके द्वारा स्थापित मिशनरीज ऑफ चैरिटी आज भी दुनिया भर में गरीबों, बीमारों और जरूरतमंदों की सेवा कर रही है। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि अगर हम दूसरों के लिए जीते हैं, तो हमारे जीवन का असली उद्देश्य पूरा होता है।

मदर टेरेसा की जयंती हमें यह याद दिलाती है कि हम अपने जीवन में दूसरों की मदद कर सकते हैं, चाहे हमारी परिस्थितियाँ कैसी भी हों। उनका जीवन एक प्रेरणा है कि सेवा, प्रेम और समर्पण से हम इस दुनिया को एक बेहतर स्थान बना सकते हैं। मदर टेरेसा की जीवनी न केवल उनके जीवन के संघर्षों को दर्शाती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि कैसे एक साधारण व्यक्ति अपनी अटूट इच्छाशक्ति और समर्पण से लाखों लोगों के जीवन में बदलाव ला सकता है।

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