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अनूप श्रीवास्तव

 

नई दिल्ली, 18 जून 2024

 

चिनगारी और सूर्य का रिश्ता !

 

 

 

मेरे लड़खड़ाते हुए मित्रो !

यह एक लड़ाई है,

शत्रु कौन है,

सबसे पहले ,

यह बात,

कविता ने उठाई है.

 

कविता एक,

कमजोर हथियार है.

इस वाक्य में,

दर्द की बात तो सही है.

लेकिन इस कथन ,

को सुनकर,

मुझे उस आदमी का,

बयान याद आया है,

जो तीन चौथाई नदी,

पार करने के बाद,

 सामने की,

एक चैथाई नदी,

देख कर घबराया है,

 और वापस लौटआया है

और आज तक,

उस नदी को

पार नही कर पाया है.

 

 

पराजय के यज्ञ में,

जिंदगी होम करते हुए,

हमे कहीं न कहीं होना है.

लेकिनआत्मालोचनकेपलोमें,

आत्म रक्षा के  क्षणों में,

जब  कि हम अपनी,

आंख मिलाने में,

शर्म महसूस कर रहे हैं.

सिर्फ इतना ही काफी नही है-

 हम अपनीखाल बदलरहे हैं!

 

हो सकता है,

बेहद अच्छी,

और स्वादिष्ट होती हो,

अस्वीकृति और ,

अनास्था  के नारों के बीच,

दबती और पुरानी पड़ती हो,

असमर्थता की शराब .

लेकिन इतना  भी निश्चित है

कि  अपने ही हाथों,

उठानी पड़ती है ,

अपनी ही नकाब.

 

खुले मैदान मेंलड़ाई की ,

बात करने वाले मित्रो!

इतिहास के दर्द को,

नए चेहरों के बीच,

बाटने का दम्भ ,

रखने  वाले मित्रो !

 

लड़ाई बाहर से नहीं,

भीतर से लड़ी जाती है.

लड़ाई दूसरों से नहीं,

पहले अपने आप से ,

लड़ी जाती है.

 

इसलिए,

भीतर और बाहर का,

भ्रम टूटना जरूरी है.

चिंगारी और सूर्य का रिश्ता

स्पष्ट होना   बेहद जरूरी हैं !

 

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