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आज का संस्करण

नई दिल्ली, 15 मई 2024

अनूप श्रीवास्तव 

संस्मरण में कितनी असलियत होती है और कितनी मिलावट होती हैं? दरअसल यह प्रश्न ही बेमानी है । संस्मरण हंड्रेड परसेंट सच होते हैं क्योंकि संस्मरणो में हम खुद होते हैं।घटनाएं  हमेशा जीवन्त होती हैं। हम केवल चश्मदीद गवाह होते हैं। हम जो  लिखते  है।उस समय सब नहीं लिख पाते। कुछ ही कह पाते हैं, बाकी ढेर सारा अनकहा रह जाता है।जो मन को कुरेदता रहता है ।  उसे बिलोते  रहते हैं। मथते रहते हैं। तब जाकर संस्मरण बनता है। इसका पहला पाठ मुझे प्रसिद्ध साहित्यकार ठाकुर प्रसाद सिंह जी से मिला। वे उत्तर प्रदेश सूचना विभाग के बड़े अधिकारी थे। लेकिन उससे भी बड़ा उनका साहित्यिक घेरा था। हम तीन युवा रचनाकार जाने अनजाने अत्यंत निकट हो गए थे मैं, आलोक शुक्ल और श्री दत्त मिश्र।आलोक के लिए वे सहित्यिक गुरु थे। श्री दत्त मिश्र कभी कभी भाभी जी के हुक्के को भी गुड़गुड़ा लेते थे। इसलिए उनकी पहुँच घरेलू बन गई थी।भाभी जी श्री दत्त के लिए अलग से हुक्के की निगाली रखती थीं। बचा मैं धीरे धीरे ठाकुर भाई केऔर करीब होता चला गया।

एक दिन आलोक शुक्ल ने एक कविता लिखी।ठाकुर भाई को दिखाई। ठाकुर भाई बोले-आलोक जी यह आपने लिखी है?  जी!

उन्होंने पढा। मुस्कराये,इसे फिर से लिखो, कहकर उन्होंने कविता को  चिन्दी चिन्दी करके  डस्ट बिन के हवाले कर दिया।

दूसरे दिन आलोक फिर अपनी  कविता तराश कर लाये।बोले,  अब देखिये?  अच्छी है,कहकर उन्होने

 

लेख एक नज़र में

 

संस्मरण में कितनी सच्चाई होती है और कितनी मिलावट? यह प्रश्न ही बेमानी है। संस्मरण हंड्रेड परसेंट सच होते हैं क्योंकि हम खुद होते हैं। घटनाएं हमेशा जीवन्त होती हैं। हम केवल चश्मदीद गवाह होते हैं।

मेरा दावा है कि मेरे संस्मरण काफी हद तक सच के करीब हैं क्योंकि मैं उनका साक्षी रहा हूँ। मेरी जिंदगी कई हिस्सों में बंटी।

मेरी अपनी जिंदगी, लम्बे अरसे तक की पत्रकारिता, राजनेताओं, साहित्यकारों और शीर्ष पर पहुँचे नौकर शाहों के साथ के करीबी रिश्ते। इन सभी के साथ ढेर सारी खट्टी मीठी स्मृतियाँ हैं।

 

उसे फिर पहले की तरह डस्टबिन में डाल दिया। यह चार  पांच दिन चलता रहा। एक दिन आलोक की कविता पर लालस्याही से ठाकुर भाई ने लिख कर रख लिया।डस्ट बिन में जाने से बच गई। ठाकुर भाई सूचना विभाग की  चर्चित पत्रिका "उत्तर प्रदेश' के  भी सम्पादक थे । हमने देखा-अलोक शुक्ल की वही कविता सज धज के साथ उत्तर प्रदेश मासिक में छपी । आलोक को देख कर ठाकुरभाई ने घण्टी बजाई। चाय मंगाई फिर बोले- हर घटना इन्सटेक्ट रिएक्शन नही होती।

   हम लोगों में छेड़ छाड़ होती रहती थी। जब मेरी कविता उत्तरप्रदेश पत्रिका में पहली  बार छपी तो  श्रीदत्त मिश्र ने चुटकी ली-सर! एक बात पूछना चाहता हूँ,  आपकी उत्तर प्रदेश पत्रिका का स्तर कुछ गिर गया है या अनूप श्रीवास्तव का कद कुछ बढ़ गया है?

ठाकुर भाई , मेज पर रखे धर्मयुग का अंक दिखाते हुए मुस्कराये -अनूप  की  रचना धर्मयुग  मे भी छपी है,आप लोगों ने  नहीं देखी !

 श्रीदत्त -ओह तो आप ने इनको धर्मयुग तक पहुँचा दिया। इस पर ठहाके लग गए।

लेकिन  हर  कविता किसी  भी घटना का  मात्र इन्सटेक्ट रिएक्शन नही होती। यह बात बहुत दिन तक चर्चा मे बनी  रही।

हांलाकि चाहे कविता हो,कहानी हो  या उपन्यास अथवा  नाटक काफी हद तक कल्पना  पर आधारित  होते है।  सभी  विधाएँ कल्पना की वैसाखी लगाकर खड़ी होती हैं , रचना का कद अगर सचाई के ताने बाने पर बुना होता है तो वे स्वतः अमर रचनाओं की कोटि मे  आ जाती हैं। महाकवि तुलसी दास ने रामायण लिखने के पश्चात स्वीकार किया है-नाना वेद, पुराण निगमादि "क्वचितअन्यतोअपि। यही अन्यतोअपि ने रामचरितमानस को महाकाव्य की  श्रेणी में खड़ा  कर दिया।

       मैं नाम लेना चाहूँगा यशपाल जी के उपन्यास "झूठा सच" और अमृत लाल नागर के "अमृत और विष" का। जिसे लेखक ने सिर्फ लिखा ही नही, लिखने के पहले जिया भी है।सिर्फ  सतही लेखको की तरह मेज या चौकी पर बैठ कर लिखा भर नहीं है।

मेरा जीवन कई हिस्सों में बंटा। मेरी अपनी जिंदगी,लम्बे अरसे तक की पत्रकारिता,राजनेताओं, साहित्यकारों और शीर्ष पर पहुँचे नौकर शाहों के साथ के करीबी रिश्ते। इन सभी के साथ ढेर सारी खट्टी मीठी स्मृतियाँ।

मेरा दावा है कि मेरे संस्मरण काफी  हद तक सच के करीब  हैं क्योंकि मै उनका साक्षी रहा हूँ। उनमे बहुत से लोग अभी भी जीवित हैं। सबको समेट कर लिखना तलवार की धार पर चलने  से भी मुश्किल काम है।

ठाकुर भाई से मैने अनुरोध किया था।आपके पास संस्मरणों का खजाना है, लिखते क्यो नही?तो वे बोले। अब समय ही नही बचा।हारी हुई लड़ाई के बाद कुछ भी नही  लिख पाया।   आप मेरी  स्मृतियो के भी करीब रहे हैं।  जब आखिरी पड़ाव पर  पहुंच जाना तब लिखना।

एक वक्त था जब लोग खबरों के पीछे की वजह भी  बता देते थे। फिर कहते थे  अभी ये  ऑफ द रिकॉर्ड है। अब उन सारी घटनाओं को समेटने  की चुनौती है।

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