कारागार की एक बैरिक में,
औंघाते हुए स्वयंभू भगवान-
"झांसा राम" से मैने पूछा-
कृपानिधान !
इस वैकुंठ में,
आपको कैसा लग रहा है?
लगता है बैरिक की,
बन्द दीवारों में,
आपका प्रवचन'
अब भी चल रहा है!
वे यह सुनते ही,
हत्थे से उखड़ गए,
झांसाराम जी!
तड़प कर बोले-
"दुनिया मुझे साष्टांग,
दण्डवत करती है.
तुम मुझ जैसे सन्त पर,,
उंगली उठा रहे हैं.
अप्प लोगों को लग रहा,
सब छल छंद है.
क्योंकि आपका,
दिमाग कुंद है.
आप जैसूं के ही चलते'
धर्म तक रक्षित नही है.
आश्रम तो आश्रम!
साधू सन्त तक सुरक्षित नही है।
करोड़ों अरबों हमारे भक्त हैं,
जो पूरी तरह -
हम पर समर्पित हैं.
तन मन से ही नही,
धर्म से भी समर्पित हैं.
आज धर्म भी,
हाईटेक हो गया है.
हम भले ही यहां:
सलाखों में बंद हैं.
पर आपका प्रतिबंध'
स्वयम आपको ही,
छल रहा है-
हम इस समय भी,
फेसबुक पर ,
इंस्ट्राग्राम पर हैं.
और हमारी बेबसाइट पर,
हमारा प्रवचन -
इस समय भी चल रहा है.
हमारे अनुयायी',
रोज हम पर,
करोड़ो अरबो का-
चढ़ावा चढ़ाते हैं.
अगर हमने किसी को,
धन्य करने के लिए,
थोड़ा अपने निकट बुला लिया,
और उसकी निष्ठा देख कर'
साथ मे थोड़ा ध्यान लगा लिया !
तो आप सब बौरा गए?
हमे पता है ,
यह निशानेबाजी,
सिर्फ प्याले के अंदर का'
क्षणिक तूफान है.
आप मीडिया हैं या तूफान हैं!
मैने फिर कहा,
कृपानिधान !
यह सच है कि,
धर्म आदमी को,
उसकी मजबूरी से जोड़ता है!
और जरूरत जोड़ती है,
उसे साधू सन्त से'
मंदिरों से ,आश्रमों से,
और कभी कभी
आप जैसे महंत के
हमने आपके
कारनामे सुनें
कारगुजरिया देखी,
तो हम भी अघा गए.
लेकिन आपकी'
जड़ें गहरी हैं,
आप आमआदमी नहीं,
सन्त महंत नहीं,
सिर्फ एक दुकान हैं.
धर्म आपके लिए,
सिर्फ व्यापार है.
आपका धर्म कर्म,
आदमी की मजबूरी-
भुनाने का सिर्फ एक उद्योग है.
आपके लिए,
अमीर आदमी-
सिर्फ एक दुधारू गाय है
और गरीब महज ,
एक कठपुतली है.
आपके प्रवचन,
उन्हें नाथने के लिए,
धर्म की मजबूत सुतली है.
इसलिए जैसे चलता आया है
आगे भी चलेगा
और धर्म कर्म
आप जैसे
झांसाराम को ही फलेगा.
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