भारत की अर्थव्यवस्था, जो अपनी गति पुनः प्राप्त करने का प्रयास कर रही है, एक नई चुनौती का सामना कर रही है। यह चुनौती है गिग वर्कर्स की बढ़ती संख्या, जिन्हें नीति आयोग जैसे संस्थान सम्मानित श्रमिकों के रूप में प्रस्तुत करते हैं। ये गिग वर्कर्स, जो भारत के सबसे तेजी से बढ़ते कार्यबल का हिस्सा हैं, अक्सर अनिश्चित परिस्थितियों में काम करते हैं। नौकरी खोने और भुखमरी के डर से, कई श्रमिक अपने शोषण के खिलाफ आवाज उठाने में असमर्थ रहते हैं।
गिग इकॉनमी, जिसमें स्थायी रोजगार की तुलना में अस्थायी अनुबंध और फ्रीलांस अवसर शामिल हैं, को देश के थिंक टैंक ने "प्रगतिशील बदलाव" के रूप में पेश किया है। हालांकि, श्रमिकों के लिए यह मॉडल सामाजिक सुरक्षा लाभों की कमी, तनावपूर्ण कार्य शेड्यूल, और असुरक्षा लेकर आता है। कंपनियां कम लागत और सीमित देनदारियों का लाभ उठाती हैं, लेकिन इसका श्रमिकों के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बांग्लादेश की आर्थिक स्थिति से यह सिखा जा सकता है कि बेरोजगारी और युवा असंतोष किसी भी देश के लिए खतरनाक हो सकते हैं।
नीति आयोग के अनुसार, 2020-21 में भारत का गिग वर्कफोर्स 7.7 मिलियन था, जो 2029-30 तक 23.5-30 मिलियन तक पहुंचने का अनुमान है। हालांकि, गिग वर्क को रोजगार के सबसे निचले स्तर के रूप में देखा जाता है। गिग वर्कर्स को बीमार अवकाश, स्वास्थ्य बीमा, और पेंशन जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं मिलतीं। इसके बावजूद, आयोग इसे "मुक्त बाजार प्रणाली" के रूप में प्रस्तुत करता है।
इसके अलावा, श्रम मंत्रालय ने हाल ही में श्रम कानूनों को सरल बनाने के नाम पर 44 श्रम कानूनों को चार श्रम संहिताओं में बदल दिया है। यह बदलाव श्रमिकों के लिए न्याय और सुरक्षा प्राप्त करना और भी कठिन बना देता है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, अमेज़न, फ्लिपकार्ट, उबर, और ओला जैसी कंपनियां गिग इकॉनमी का प्रतीक हैं। ये कंपनियां अपने श्रमिकों से अधिक काम करवाती हैं, लेकिन बदले में उन्हें उचित लाभ नहीं देतीं। अमेरिका और अन्य विकसित देशों में भी गिग इकॉनमी की खामियां उजागर हुई हैं। उदाहरण के लिए, एक अमेरिकी अदालत ने अमेज़न पर श्रमिकों के अधिकारों का उल्लंघन करने के लिए $5.9 मिलियन का जुर्माना लगाया।
भारत में भी, मदुरै उपभोक्ता आयोग ने अमेज़न और अन्य कंपनियों पर मानसिक पीड़ा के लिए मुआवजा देने का आदेश दिया। इसके अलावा, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) ने अमेज़न और फ्लिपकार्ट के खिलाफ लंबित मामलों को तेज़ी से निपटाने की मांग की है।
भारत में बेरोजगारी अभी भी एक गंभीर मुद्दा बनी हुई है। वार्षिक आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) के अनुसार, 2020-21 में युवा बेरोजगारी दर 12.9% थी, जो 2022-23 में घटकर 10% हो गई। हालांकि इसमें कमी आई है, लेकिन रोजगार सृजन की गति धीमी है।
गिग वर्कर्स की औसत आय लगभग ₹15,000 प्रति माह है। मुद्रास्फीति दर 6-9% और घटती जीडीपी वृद्धि से श्रमिकों की स्थिति और खराब हो गई है। 2015-16 और 2022-23 के बीच, 6.3 मिलियन अनौपचारिक उद्यम बंद हो गए, जिससे 16 मिलियन नौकरियां चली गईं। यह स्थिति श्रमिकों को गिग वर्क जैसे अस्थिर और असुरक्षित रोजगार की ओर धकेलती है।
गिग वर्कर्स को न केवल कम वेतन मिलता है, बल्कि उनकी कार्य परिस्थितियां भी खराब होती हैं। ज़ेप्टो और ब्लिंकिट जैसी कंपनियां डिलीवरी दरों में कटौती करती हैं, जिससे श्रमिकों की आय और घट जाती है। इसके अलावा, इन कंपनियों में डेटा गोपनीयता और अनुचित व्यापार प्रथाओं की चिंताओं को दूर करने के लिए मज़बूत कानूनों की कमी है।
भारतीय सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020, ने गिग वर्कर्स को मान्यता तो दी है, लेकिन कानूनी बाध्यताओं और सार्वभौमिक कवरेज की कमी के कारण इसे प्रभावी नहीं माना जाता। जबकि अमेरिका गिग वर्कर्स के लिए सबसे बड़ा बाजार है, भारत, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, और ब्राजील जैसे देश तेजी से उभर रहे हैं।
भारत को गिग इकॉनमी की चुनौतियों से निपटने के लिए सक्रिय कदम उठाने की आवश्यकता है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और अन्य वैश्विक मंचों के साथ जुड़कर उचित वेतन और नौकरी प्रथाओं को सुनिश्चित करना आवश्यक है।
गिग इकॉनमी का अंधाधुंध विस्तार एक आधुनिक शोषण प्रणाली का रूप ले सकता है, जिससे असमानता बढ़ेगी और श्रमिकों के जीवन की गुणवत्ता में गिरावट आएगी। भारत को श्रमिक अधिकारों की रक्षा के लिए एक मज़बूत कानूनी और नीतिगत ढांचा तैयार करना चाहिए। इससे न केवल श्रमिकों का जीवन सुधरेगा, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था भी दीर्घकालिक रूप से लाभान्वित होगी।
गिग इकॉनमी ने भारत में रोजगार के नए अवसर तो दिए हैं, लेकिन यह अवसर श्रमिकों के लिए कई चुनौतियां भी लेकर आए हैं। जब तक सरकार और नीति निर्माता श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए ठोस कदम नहीं उठाते, तब तक गिग इकॉनमी असमानता और शोषण को बढ़ावा देने का जोखिम उठाती रहेगी। एक संतुलित और न्यायपूर्ण प्रणाली बनाने की दिशा में पहल करना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
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