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आज का संस्करण

नई दिल्ली, 20 फरवरी 2024

 

भारत रत्न कृषि वैज्ञानिक स्व एम  स्वामीनाथन की बेटी डा. मधुरा स्वामीनाथन आक्सफोर्ड ‌से डाक्टरेट हैं l उन्होंने गरीब और पिछड़े  किसानो पर  बहुत शोध कार्य किया है। वह एक बड़ी अर्थशास्त्री हैं। डा. मधुरा स्वामीनाथन का कहना है कि प्रदर्शनकारी किसान हमारे अन्नदाता हैं और उनके साथ अपराधियों जैसा व्यवहार नहीं किया जा सकता है l अगर हमें एमएस स्वामीनाथन का सम्मान करना है, तो किसानों को अपने साथ लेकर चलना होगा l  स्वामीनाथन आयोग ने जो प्रमुख सुझाव ‌दिए वह इस प्रकार है:

किसानों को अच्छी क्वालिटी का बीज कम से कम दाम पर मुहैया कराया जाए और उन्हें फसल की लागत का पचास प्रतिशत ज़्यादा दाम मिले...

● अच्छी उपज के लिए किसानों के पास नई जानकारी का होना भी जरूरी है ऐसे में देश के सभी गांवों में किसानों की मदद और जागरूकता के लिए विलेज नॉलेज सेंटर या ज्ञान चौपाल की स्थापना की जाए इसके अलावा महिला किसानों के लिए किसान क्रेडिट कार्ड की व्यवस्था की जाए।

● कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में भूमि सुधारों पर भी जोर दिया और कहा कि अतिरिक्त व बेकार जमीन को भूमिहीनों में बांट दिया जाए इसके अलावा कॉर्पोरेट सेक्टर के लिए गैर-कृषि कार्यों को लेकर मुख्य कृषि भूमि और वनों का डायवर्जन न किया जाए कमेटी ने नेशनल लैंड यूज एडवाइजरी सर्विस का गठन करने को भी कहा।

● कमेटी ने भी किसानों के लिए कृषि जोखिम फंड बनाने की सिफारिश की थी, ताकि प्राकृतिक आपदाओं के आने पर किसानों को मदद मिल सके।

● कमेटी ने छोटे-मंझोले किसानों को लेकर भी बड़ी सिफारिश की थी और कहा था कि सरकार खेती के लिए कर्ज की व्यवस्था करे, ताकि गरीब और जरूरतमंद किसानों को कोई दिक्कत न हो।

● किसानों के कर्ज की ब्याज दर 4 प्रतिशत तक लाई जाए और अगर वे कर्ज नहीं दे पा रहे हैं तो इसकी वसूली पर रोक लगे।

आयोग की एक प्रमुख सिफारिश यह भी है, कि किसानों को उनकी फ़सलों के दाम उसकी लागत में कम से कम 50 प्रतिशत जोड़ के दिया जाना चाहिए देशभर के किसान इसी सिफ़ारिश को लागू करने की माँग को लेकर सड़कों पर कई बार आंदोलन कर चुके हैं लेकिन तमाम वादे करने के बाद भी इस सिफ़ारिश को न तो यूपीए सरकार ने लागू किया गया और न ही वर्तमान की भाजपा सरकार ने हर सरकार की एक मंशा यह भी रही होगी कि अगर किसान के उपज का मूल्य इतना बढ़ा दिया जाएगा तो खाद्यान्नों की कीमत बाजार में बहुत बढ़ जाएगी और महंगाई हमेशा से एक चुनावी मुद्दा रहा है पर आंदोलन क्यों न हो आप अगर, जो लोग सरकारी नौकरियों में हैं,उनका वेतन तो 150 गुना तक बढ़ाया गया है और किसान के लिए यही वृद्धि, 70 बरस में सिर्फ 21 गुने तक बढ़ी है इससे तो यही लगता सरकारें ही नहीं पूरा तंत्र ही किसान विरोधी रहा है खेती सबको जीवन देने वाला उद्योग हैऔर विडंबना  यह है कि कि हमारे देश का किसान ख़ुद ही अपना जीवन समाप्त कर लेता है अब तक कर्ज और अभाव में लाखों किसान आत्महत्याएं कर चुके है उनकी‌ आत्म हत्या के तह में असंतोष, कुंठा, बेबसी और अंधकारमय भविष्य है, जहां दूर दूर तक, उजाले की कोई आस ही नहीं है तमाम हवाई अड्डे बड़े उद्योग, लंबे चौड़े हाइवे, स्मार्टसिटी का खाका  बुलेट ट्रेन, आदि भी ज़रूरी हैं पर  ध्यान ये भी रखना होगा कि कृषि इन सबसे अधिक ज़रूरी है आर्थिक सुधार के एजेंडे में समग्र कृषि सुधार पर कोई बात ही नही की गई हर आपदा में उद्योगों को राहत देने की बात उठती है, उन्हें बैंक कर्ज़ भी देते हैं, कर्ज़ देकर उसकी वसूली भूल भी जाते हैं, पर किसानों को मिलने वाली सब्सिडी पर कोई ध्यान नही कभी नही देता है 65% आबादी जो खेती पर निर्भर है,देश की का  मूलाधार जहां कृषि हो, वहां किसानों के संबंध में कोई भी निर्णय लेने के पहले, क्या किसानों के नेताओ से उनकी समस्याओं के बारे में चर्चा नहीं की जानी चाहिए थी ? तमाम किसान आंदोलन की सच्चाई यह भी है कि यह आंदोलन ज्यादातर समृद्ध किसान वर्ग कर रहा है अल्प आय वर्ग का‌ किसान‌ सरकार की का कृपा पात्र ही रहता है उसमें आंदोलन करने की क्षमता ही नहीं है वह छोटे जोत का किसान है वह दो-चार बीघा खेती करके आवारा पशुओं को ही लाठी लेकर भागता रहता है वह सोचता है कि यही बचा खुच मिल जाए तो बाल बच्चों के लिए यही बहुत है उसके बाद बिक्री के लिए बहुत अनाज नहीं होता है वह केवल अपने खाने के लिए पैदा करने की ललक में रहता है थोड़ा बहुत बेच लेता है तो तेल मसाला के लिए वह बात अलग है हरित क्रांति से संबंधित हरियाणा और पंजाब के किसान ही इसमें आंदोलित होते हैं हो सकता है स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करना किन्ही कारणों से सम्भव न हो,पाये तो उसमें कुछ संसोधन हो वे कारण तो किसानों और संसद की जानकारी में लाये जाने चाहिए आश्वासनों का एक अंतहीन फरेब तो कभी न कभी खत्म होना चाहिए. (शब्द  815)

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