वक्फ विधेयक के चलते उपजे विवाद से पहले ही दक्षिणी तमिलनाडु में एक हिंदू नेता ने राज्य के एचआर एंड सीई विभाग पर एक मुस्लिम महिला, नरगिस खान, को मंदिर ट्रस्टी नियुक्त करने का आरोप लगाकर विवाद छेड़ दिया था। बाद में पता चला कि वह महिला हिंदू थी, और उसका नाम एक मुस्लिम डॉक्टर के सम्मान में रखा गया था, जिसने उसकी माँ की डिलीवरी में मदद की थी। इस गलत आरोप के लिए हिंदू नेता को गिरफ्तार किया गया।
राज्यसभा में वक्फ विधेयक पर बहस के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आरोप लगाया कि एक मंदिर शहर में 400 एकड़ ज़मीन को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया गया है और स्थानीय लोगों को लेन-देन के लिए वक्फ बोर्ड से NOC लेने को कहा गया है। गृह मंत्री अमित शाह ने भी तिरुचेंदूर मुरुगन मंदिर की संपत्ति को लेकर ऐसे ही आरोप लगाए। राज्य सरकार ने इन आरोपों को 'राजनीतिक' कहकर खारिज कर दिया।
डीएमके का विरोध और सुप्रीम कोर्ट की तैयारी
तमिलनाडु विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार से अपील की कि वह वक्फ विधेयक पारित न करे। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा कि डीएमके इस विधेयक की संवैधानिक वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी। हालांकि ओवैसी ने पहले ही याचिका दाखिल कर दी थी। डीएमके इस विधेयक के उस प्रावधान का विरोध कर रही है जिसमें गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड का सदस्य बनाने की बात कही गई है।
सवाल यह उठता है कि जब नरगिस खान को हिंदू मंदिर ट्रस्टी के तौर पर मंजूर नहीं किया गया, तो फिर वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम की नियुक्ति कैसे न्यायसंगत हो सकती है?
पारंपरिक सौहार्द का तमिल उदाहरण
तमिलनाडु में धार्मिक समुदायों के बीच ऐतिहासिक सौहार्द और मेलजोल का लंबा इतिहास रहा है। उदाहरण के लिए, मुस्लिम समुदाय हिंदू त्योहारों में भाग लेते हैं और सेवा प्रदान करते हैं। अर्काट के नवाब ने मायलापुर के श्री कपालेश्वर मंदिर को जमीन दी थी। इस्लाम का प्रवेश व्यापारियों के ज़रिए हुआ और इसे उत्तर भारत के आक्रामक प्रसार से अलग देखा जाता है।
यह सौहार्द, डीएमके और एआईएडीएमके के लिए गर्व का विषय है, जिसे वे वक्फ विधेयक जैसे मामलों के ज़रिए खतरे में पाते हैं।
सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव और विपक्ष की चुप्पी
विधानसभा में वक्फ विधेयक के खिलाफ प्रस्ताव पारित हुआ, जिसमें सिर्फ़ भाजपा के चार विधायकों ने वॉकआउट किया। एआईएडीएमके ने प्रस्ताव का समर्थन किया, भले ही वह भाजपा के साथ गठबंधन फिर से बहाल करने की सोच रही है। भाजपा विधायक खुले विरोध से बचते हुए वॉकआउट कर गए ताकि प्रस्ताव 'सर्वसम्मति से' पारित माना जाए।
यह इस बात का संकेत था कि तमिलनाडु में वक्फ विधेयक को लेकर ज़मीन पर भाजपा को कोई ठोस जनसमर्थन नहीं है।
भाजपा और एआईएडीएमके के बीच चुनावी अविश्वास
AIADMK कार्यकर्ताओं का मानना है कि 2019 और 2021 में पार्टी की हार का मुख्य कारण भाजपा के साथ अनुचित गठबंधन था। उन्हें लगता है कि दिवंगत जयललिता ने कभी भाजपा को स्वीकार नहीं किया होता, और अगर वह होतीं तो भाजपा के साथ गठबंधन न करतीं। हालांकि 2024 में भाजपा से अलग होने के बावजूद पार्टी को लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा, जिससे पार्टी के भीतर मतदाता अविश्वास की भावना और गहरी हुई।
कुछ कार्यकर्ताओं का मानना है कि अगर AIADMK को सरकार बनाने के लिए समर्थन चाहिए होगा, तो भी वे भाजपा से समर्थन नहीं लेंगे।
डीएमके का वैचारिक पक्ष
डीएमके की विचारधारा मूलतः नास्तिक और हिंदू विरोधी रही है। पिछले कुछ समय से पार्टी ने ‘मध्य-मार्ग’ अपनाया था, लेकिन अब केंद्र की हिंदुत्व उकसाने वाली नीतियों के चलते पार्टी ने फिर से अपने मूल विचारों की ओर रुख करना शुरू किया है। इससे पार्टी को अपने अल्पसंख्यक वोट बैंक को मज़बूत करने में मदद मिल सकती है।
डीएमके को यह भी लगता है कि ‘ऑनलाइन हिंदुत्व’ के ज़रिए नए युवाओं को प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है, जिससे उनकी मूल विचारधारा को चुनौती मिल रही है।
तमिलनाडु की सामाजिक मानसिकता
तमिल समाज की विडंबना यह है कि राज्य के हिंदू गहराई से धार्मिक होते हुए भी अपनी धार्मिक पहचान को राजनीति से नहीं जोड़ते। एक आम तमिल हिंदू सुबह मंदिर जाकर पूजा करेगा और फिर मतदान केंद्र जाकर डीएमके को वोट देगा। यही भाजपा और आरएसएस की रणनीति के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
राज्य की सामाजिक संरचना इतनी जटिल है कि यहाँ हिंदुत्व की सीधी राजनीति कारगर नहीं हो पाती। भाजपा और आरएसएस तमिल मानसिकता को बदलने की कोशिश में लगे हैं, लेकिन उन्हें अब तक सफलता नहीं मिली है।
(लेखक चेन्नई स्थित नीति विश्लेषक और राजनीतिक टिप्पणीकार हैं। ईमेल: sathiyam54@nsathiyamoorthy.com )
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