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संगीत की इबादत से बनी खय्याम की मोहब्बत की दास्तां

ज़ेबा हसन

A person with long hair and a piercing on her forehead

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लखनऊ | बुधवार | 21 अगस्त 2024

"खुद को खुशनसीब मानता हूं कि मैं हिन्दी सिनेमा का एक ऐसा वरक (पेज) हूं जो,   जब भी फिल्मों के सुनहरे दौर की बात होगी पलटा जरुर जाऊंगा। बदले हुए इस दौर से मुझे मायूसी ज्यादा मिली है मगर यह बदलाव भी मेरे इस फिल्मी सफर का हिस्सा है।" वाकई खय्याम की कही यह बात उतनी ही प्रासंगिग है जितना उनका संगीत। खय्याम साहब जैसी हस्ती से मिलना भी किसी खुशनसीबी से कम नहीं था। साल 2009 में वह लखनऊ के एक सम्मान समारोह में शिरकत करने के लिए आए थे और उसी दौरान हुई मुलाकात में उन्होंने अपनी जिंदगी की कुछ दिलचस्प यादों को साझा किया था। आज वह इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनके गीतों की तरह उनकी यादें भी फूलों जैसी महकती हैं। 19 अगस्त को खय्याम साहब की पुण्यतिथि  थी । इस लेख में उनकी कही बातों के जरिए हम उन्हें श्रधांजलि दे रहे हैं।

खय्याम का पूरा नाम है मोहम्मद जहूर खय्याम हाशमी। 18 फरवरी 1927 को पंजाब के जालंधर जिले के नवाब शहर में जन्में खय्याम ने संगीत की इबादत की तो अपनी महबूबा और गायिका पत्नी जगजीत कौर के साथ ऐसी मोहब्बत की जिसकी मिसाल जल्दी नहीं मिलती। जब उनसे उनकी इस मोहब्बत के बारे में बात हुई तो उन्होंने अपनी कहानी को रोमांचित होकर सुनाया था। खय्याम  कहते हैं कि वक्त आगे निकलता है, दौर बदलता है, लेकिन प्यार नहीं बदलता। वो तो आज भी उतनी ही सादगी से मुस्कुराती हैं, वहीं शहाना अंदाज है और यह उन्हीं का जहूरा है कि खय्याम आज खय्याम है। खय्याम साहब ने अपनी प्रेमिका और पत्नी जगजीत कौर की पहली झलक को याद करते हुए बताया कि वह पचास का दशक था, मैं स्ट्रगलर था। दादर का वो पुल जो ईस्ट से वेस्ट को ले जाता था, एक शाम उधर से गुजर रहा था और उसी राह से वह भी गुजर रही थीं। खद्दर का लिबास, बिना किसी सुर्खी, लाली के उस सादगी भरे हुस्न को बस देखता ही रहा। जैसे हर नौजवान के तसव्वुर में हमसफर की एक तस्वीर होती है, उस पल मुझे अहसास हुआ कि शायद यही वह तस्वीर है जो मेरी जिंदगी के खाली फ्रेम को पूरा कर सकती है।

 

लेख एक नज़र में
खय्याम साहब ने अपने जीवन की कुछ दिलचस्प यादों को साझा किया है, जिसमें उनकी प्रेमिका और पत्नी जगजीत कौर से मुलाकात की कहानी भी शामिल हैl

 वे कहते हैं कि प्यार नहीं बदलता, वक्त आगे निकलता है, दौर बदलता है. खय्याम साहब ने अपने संगीत की इबादत की और अपनी पत्नी के साथ मोहब्बत की मिसाल पेश कीl

 वे कहते हैं कि आज के दौर में फिल्में और गाने बस एक शोर सी लगती हैं, जबकि हमारे दौर में गाने अपनी स्ट्रेंथ, अपने शब्दों और संगीत पर चलते थे. खय्याम साहब की पुण्यतिथि पर हम उन्हें श्रधांजलि दे रहे हैंl

 

उन्हें देखने के बाद दिल की धड़कने तेज और मेरे पैरों की रफ्तार धीमी हो गई थी। मैं मुड़ मुड़ कर उन्हें जाता हुआ देख रहा था तभी वह हुआ जिसका मुझे गुमां भी नहीं था। वह एक दम से मुड़ीं और उनकी नजरे मेरी नजरों पर ठहरी तो जैसे वक्त मेरे लिए ठहर गया था। मुझे किसी की कही बात पर यकीन हो गया था कि अगर किसी को सच्चे दिल से देखो तो वो पलट कर देखता है। उस हसीन इत्तेफाक के बाद में अपने काम में मसरूफ हो गया लेकिन दिल में एक चिंगारी तो लग ही गई थी। एक दिन मैं रिकॉर्डिंग के लिए स्टूडियो में बैठा था। मुझसे किसी ने आकर बताया कि पंजाब की एक गायिका आईं हुई हैं, बहुत ही अच्छी आवाज है तुम उन्हें सुन लो। और जैसे ही मैं कमरे में दाखिल हुआ मुझे यकीन ही नहीं आ रहा था कि मेरे सामने वही दिलकश शख्सियत बैठी है जिसकी एक झलक ने मेरे दिल के साज छेड़ दिए थे। वो हमारी पहली मुलाकात थी। बस यहीं से शुरू हो गया था बातों मुलाकातों का सिलसिला।

वो इतने बड़े घर की बेटी और मैं स्ट्रगलर, लेकिन शायद ऊपर वाले को यही मंजूर था और आखिर हमारी शादी हो गई। वो बड़ी बड़ी कोठियां, गाडिय़ां सब कुछ छोड़ कर मेरी जिन्दगी में आईं थीं, लेकिन उन्होंने कभी मुझसे कोई शिकवा नहीं किया। उन्होंने खुद को मेरे रंग में ढाल लिया। प्यार करने वाले एक दूसरे को तोहफे देते हैं, लेकिन मैं एक स्ट्रगलर था उन्हें क्या तोहफा देता। लेकिन जब मुझे ऊपर वाले ने नवाजा मैंने अपनी मोहब्बत के लिए सारे एशोअराम मुहाइया किये। मुझे याद है मैंने जब उन्हें कार बतौर सरप्राइज गिफ्ट में दी थी, उस पल उनकी एक मुस्कुराहट ने सब कुछ बयां कर दिया था। मैं अपनी पत्नी पर गर्व महसूस करता हूं। आज तक मैनें उन्हें कभी जगजीत जी के अलवा किसी दूसरे नाम से नहीं पुकारा। देख लो आज हमको जी भर के...काहे को ब्याहे बिदेस...तुम अपना रंजो गम अपनी परेशानी...जैसे गीतों को गाने वाली अपनी पत्नी की आवाज का मैं आज भी दीवाना हूं।

जहान तेरी मोहब्बत में हार के, वो जा रहा है कोई शबे गम गुजार के...फिल्म इंस्डस्ट्री में फैज साहब के इस कलाम से मैंने फिल्मी संगीत की दुनिया में कदम रखा था। जोहराबाई अम्बाले वाली जैसी बेहतरीन आवाज की मलिका के साथ गाने का मौका मिला था। नरगिस आर्ट कम्पनी की फिल्म थी और फिल्म का नाम था रोमियो जूलियट। इस इंडस्ट्री में एक्टर बनने के लिए आया था वह भी केएल सहगल जैसा। मुझे दूसरा केएल सहगल बनना था लेकिन ऐक्टर तो मैं नहीं बन पाया। हां कुछ फिल्मों में काम जरूर किया था। ऐक्टर बनने के जुनून में संगीत का शौक कब मेरे लिए इबादत बन गया मुझे खुद पता नहीं चला। जिस दौर में मैं बॉलीवुड इंडस्ट्री में आया वो बेमिसाल और लाजवाब दौर था। हमसे पहले काम करके जा चुके हमारे सीनियर्स ने भी जो काम किया था वो बेमिसाल था। फिर हमारा दौर आया हमारे कुलीग या फिर हमारे दोस्त, सबके लिए उनका काम इबादत हुआ करता था।  मौसीकार, गुलूकार, डायरेक्टर सभी अपना काम पूजा की तरह किया करते थे।  66 साल हो गये मुझे इस इंडस्ट्री में। कितने दौर आए और मेरे सामने चले गये, लेकिन आज भी जब गोल्डन इरा को याद किया जाता है तो उसी दौर का जिक्र होता है जब हिंदी सिनेमा को खय्याम, राज कपूर, नौशाद, रफी जैसे फंकारों ने अपने हुनर से सजाया था।

अब तो गानों को हिट कराने के लिए लाखों का बजट होता है

   आज के दौर की अगर बात करता हूं तो एक लाइन में यही कह सकता हूं कि गाने हो या फिल्में हर चीज बस एक शोर सी लगती है।सौ में 10 परसेंट ही काम हो रहा है। परदे पर औरतों की एक ऐसी तस्वीर दिखाई पड़ती है जिसे देखकर कहने पर मजबूर हो जाता हूं कि ऐसा तो नहीं है हमारा हिन्दुस्तान। आज एक गाने की प्रमोशनल एक्टिविटी में करोड़ों रुपया लगाते हैं तब वो जाकर हिट होता है। हर फिल्म के आने से पहले शहर शहर घूम कर उनकी पब्लिसिटी की जाती है। करोड़ों का बजट तैयार किया जाता है सिर्फ प्रचार-प्रसार के लिए. जबकि हमारे दौर में गाने अपनी स्ट्रेंथ, अपने शब्दों और संगीत पर चलते थे। वह गीत हिट होते थे आज भी जब अच्छे गीतों की बात आती है तो लोगों की जुबान पर वही नगमे आते हैं। इंटरटेंमेंट के नाम पर कुछ भी परोस देना अच्छा नहीं है। इंटरटेंमेंट तो तब भी होता है जब परदे पर कलाकार रोता है और कहता है कि यह तो खुशी के आंसू हैं। वक्त के साथ बहुत कुछ बदल जाता है। बदलाव तो अच्छी बात है। टेकनिकली हम बहुत आगे जा चुके हैं। आज  हम हॉलीवुड की फिल्मों से टक्कर ले रहे हैं। तरक्की का मतलब हमेशा अच्छा होना चाहिए,  प्रोगे्रस का नाम हमेशा अच्छा पन होना चाहिए न कि ओछापन। फिल्में सोसायटी को क्या दे रही हैं? आज हर दूसरे दिन कभी किसी आयटम गीत की अशलीलता को लेकर सवाल खड़े होते हैं तो कभी किसी फिल्म के नाम पर। कितना वक्त गुजार दिया इस इंडस्ट्री में लगता है अभी कल की ही बात है। हीर रांझा, फुटपाथ, मोहब्बत इसको कहते हैं, लाला रुख, शगुन, शोला शबनम, आखिरी खत, फिर सुबह होगी और उमराव जैसी शायराना फिल्में मैंने की हैं।

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