पांच बरस का बालक राशिद खान मुंबई में अपने चाचा उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान साब के घर आया और बेखयाली में अपने गले से कुछ ऐसी हरक़त की, कि उस्ताद गुलाम मुस्तफा साब हैरत में आ गए । आवाज़ में मौसिकी की हर परत को पहचानने और तराशने वाले गुलाम मुस्तफा खान साब को पता चल गया की खानदान में एक खुदरंग अनगढ़ हीरा है जो तराश की कसौटी पर अगर कसा गया तो उस्तादो का उस्ताद बनने की सलाहियत रखता है ।
मुंबई से राशिद खान अपने घर बदायूं लौटा तो मामा निसार हुसैन खान ने इस हठीले बालक के तराश की जिम्मेदारी ले ली। सुबह ४ बजे से एक तान का रियाज चलता तो पूरा दिन , उसी तान की उतार चढ़ाव में गले की नसे फूल जाती।
इतनी रियाज़ का ये फायदा हुआ की हर राग, तान, राशिद के गले में जाते ही धीरे धीरे पकने लगते, आवाज़ जब राशिद के गले से निकलती तो आवाज़ के बदन में मुलायम रेशम की परदेदारी होती, जिसका एक कोना , शहद में तर होता ।
११ साल की उमर में ही राशिद दिल्ली के बड़े प्रोग्राम में अपनी आवाज़ के ऐसे दम खम पेश करते की लोग एक बच्चे के उस्ताद में बदलने के करिश्में के चश्मदीद हो गए।
मुंबई में राशिद अब राशिद नही , उस्ताद राशिद खान हो गए थे। आवाज़ अहसास का ऐसा तालमेल स्टेज पर उभरता की लोग बंद हाल में चांदनी में भीग जाते।
किसी भी फिल्मकार को जब अपनी कहानी को रूहानियत देनी होती तो वो एक गाना, उस्ताद राशिद खान साब के नाम कर देता और गाना , रूहदारी और एहसासों का खूबसूरत सरगम बन, लोगो की दिल की रग में बस जाता ।
राशिद से राशिद खान फिर उस्ताद राशिद खान बनने के सफर को शायद ही किसी कलाकार ने इतनी कम उम्र में तय किया हो।
उस्ताद राशिद खान सिर्फ ५६ साल की उमर में , गीत का आखिरी अंतरा लिख कर चल दिए।
म्यूजिक अपने बेहद प्रिय शिष्य और दुनिया अपने उस्ताद को खोकर , बेहद गमगीन है ।
ईश्वर उस्ताद की आत्मा को शांति और हमे सब्र दें
---------------
We must explain to you how all seds this mistakens idea off denouncing pleasures and praising pain was born and I will give you a completed accounts..
Contact Us