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डॉ॰ सलीम ख़ान

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नई दिल्ली | शुक्रवार | 4 अक्टूबर 2024

सितंबर 27, 2024 को शहीद हसन नसरुल्लाह ने इज़रायली हवाई हमले में अपनी शहादत प्राप्त की। उनकी यह शहादत न केवल लेबनान बल्कि पूरी दुनिया में इस्लामिक प्रतिरोध की एक नई लहर को जन्म दे रही है। इससे पहले, 1992 में, जब हिज़्बुल्लाह के सेक्रेटरी जनरल सैयद अब्बास मूसवी की शहादत हुई थी, तब हसन नसरुल्लाह ने अपने साथी की शहादत पर कहा था कि "उनका ख़ून हमारी रगों में उबलता रहेगा और हमारे संकल्प को और मज़बूत करेगा।" यह शब्द आज भी उतने ही सजीव हैं, जब हसन नसरुल्लाह खुद शहीद हो चुके हैं।

शहीद हसन नसरुल्लाह की शहादत एक नए युग का प्रतीक बन गई है। उन्होंने हमेशा प्रतिरोध को जीया और अपने अनुयायियों को यह सिखाया कि संघर्ष से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। उन्होंने कहा था कि "लोग मर जाते हैं, लेकिन उनका नज़रिया ज़िंदा रहता है।" यही वजह है कि उनकी मौत के बाद भी, इज़रायली विरोधी संघर्ष और हिज़्बुल्लाह की लड़ाई जारी रहेगी।

हसन नसरुल्लाह की शहादत से पहले, 24 सितंबर को इज़रायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने धमकी दी थी कि "हर किसी को निशाने पर रखा गया है।" लेकिन इसके बावजूद, अपने अंतिम संदेश में नसरुल्लाह ने अपने मुजाहिदीन से कहा था कि "संघर्ष कभी खत्म नहीं होगा, चाहे हम सब ख़त्म हो जाएं।" यह साहस और जज़्बा उनके अनुयायियों के दिलों में आज भी जिंदा है।

 

लेख एक नज़र में
शहीद हसन नसरुल्लाह की शहादत ने इस्लामिक प्रतिरोध की एक नई लहर को जन्म दिया है। उनकी शहादत एक नए युग का प्रतीक बन गई है, जिसमें प्रतिरोध की मशाल को आगे बढ़ाया जाएगा।
हसन नसरुल्लाह ने हमेशा प्रतिरोध को जीया और अपने अनुयायियों को यह सिखाया कि संघर्ष से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। उनकी मौत के बाद भी, इज़रायली विरोधी संघर्ष और हिज़्बुल्लाह की लड़ाई जारी रहेगी।
हिज़्बुल्लाह की प्रतिबद्धता दुश्मन के हर वार को बेअसर करने का जज़्बा दिखाती है।

 

शहीद हसन नसरुल्लाह की शहादत के बाद हिज़्बुल्लाह ने अपने संदेश में कहा कि "हम अबा अब्दुल्लाह की औलाद हैं और प्रतिरोध जारी रहेगा।" हिज़्बुल्लाह की यह प्रतिबद्धता दुश्मन के हर वार को बेअसर करने का जज़्बा दिखाती है। नेतन्याहू ने सोचा कि हसन नसरुल्लाह को मारकर वह प्रतिरोध की ताक़त को कमजोर कर देंगे, लेकिन यह केवल उनकी भूल थी। हिज़्बुल्लाह के उप महासचिव नईम क़ासिम ने भी खुलेआम इज़रायल को चुनौती दी कि अगर वे ज़मीनी कार्रवाई करना चाहते हैं, तो हिज़्बुल्लाह पूरी तरह तैयार है।

इज़रायल और हिज़्बुल्लाह के बीच यह संघर्ष 2006 में भी हुआ था, जब हिज़्बुल्लाह ने इज़रायल को दक्षिणी लेबनान से बाहर करने में सफलता पाई थी। उसी समय, हसन नसरुल्लाह ने साबित किया था कि इज़रायल को हराना संभव है। उनकी इस जीत को आज भी मानव इतिहास में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में देखा जाता है।

16 फ़रवरी 1992 से पहले, दुनिया हसन नसरुल्लाह के नाम से बहुत परिचित नहीं थी। लेकिन जब सैयद अब्बास मूसवी की शहादत के बाद उन्हें हिज़्बुल्लाह का नेतृत्व सौंपा गया, तब से उन्होंने संगठन की ताक़त को कई गुना बढ़ाया। उन्होंने न केवल संगठन को एक नई दिशा दी, बल्कि इज़रायल के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण सफलता भी हासिल की। 2000 में, दक्षिणी लेबनान से इज़रायली कब्ज़े का समाप्त होना, उनकी रणनीति और नेतृत्व का नतीजा था।

2006 की 33 दिवसीय जंग में भी हिज़्बुल्लाह को भारी सफलता मिली थी। इस युद्ध में इज़रायल को न केवल भारी नुकसान हुआ, बल्कि उसे लेबनान से पूर्ण रूप से बाहर होना पड़ा। इस संघर्ष में हसन नसरुल्लाह की भूमिका ने उन्हें इस्लामी प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में स्थापित कर दिया।

7 अक्तूबर 2023 को तूफान अल-अक़सा ऑपरेशन के तहत हिज़्बुल्लाह फिर से इज़रायल के खिलाफ संघर्ष में शामिल हुआ। इस बार भी हसन नसरुल्लाह ने प्रतिरोध की मशाल को आगे बढ़ाया और अपनी आखिरी सांस तक लड़ाई जारी रखी। आखिरकार, 27 सितंबर 2024 को हिज़्बुल्लाह के हेडक्वार्टर पर इज़रायली हवाई हमले में वह शहीद हो गए।

हसन नसरुल्लाह की शहादत एक वीरता और संघर्ष की कहानी है, जो आने वाले समय में भी लाखों लोगों के दिलों में जिंदा रहेगी। उन्होंने अपने जीवन को इस्लामी प्रतिरोध और फ़िलस्तीन की आजादी के लिए समर्पित किया। उनकी मौत एक बड़ा झटका हो सकती है, लेकिन उनका नज़रिया और संघर्ष का जज़्बा हमेशा जिंदा रहेगा।

शहीद हसन नसरुल्लाह ने न केवल अपने अनुयायियों को साहस और प्रतिबद्धता का संदेश दिया, बल्कि इज़रायल और उसके समर्थकों को यह दिखा दिया कि कोई भी ताक़त इस प्रतिरोध को नहीं रोक सकती। उनकी शहादत ने एक बार फिर साबित किया है कि जो लोग इंसाफ और सच्चाई के लिए लड़ते हैं, वे कभी नहीं मरते। उनके विचार और संघर्ष हमेशा जिंदा रहेंगे।

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