राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ताओं की तरह धार्मिक और सांस्कृतिक संगठन भी मीडिया का ध्यान आकर्षित करते हैं। वे पत्रकारों को अपने आयोजनों में आमंत्रित करते हैं, कई बार उन्हें प्रशिक्षण देने के लिए भी बुलाते हैं ताकि वे मीडिया से बेहतर तरीके से जुड़ सकें। मुझे भी ऐसे आमंत्रण मिले, लेकिन हाल ही में एक अनुभव कुछ अलग था—जब मुझे नोएडा में आयोजित ब्रह्माकुमारीज के एक सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में बोलने का अवसर मिला।
ब्रह्माकुमारीज संगठन, जिसे बीके के नाम से जाना जाता है, व्यक्तित्व विकास और तनावमुक्त समाज के निर्माण के लिए आध्यात्मिकता का प्रचार करता है। यह अवसर उनकी लंदन स्थित प्रशिक्षक बीके रुचि के दौरे का था, जो पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं। उन्होंने आत्मिक विकास की शक्ति और ध्यान की भूमिका पर प्रभावी ढंग से बात की। उन्होंने बताया कि कैसे ध्यान ने उन्हें अपने पिता की दुर्घटना में मृत्यु के बाद मानसिक रूप से संभलने की ताकत दी। श्रोता मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे थे।
इसके बाद मेरी बारी थी। मीडिया शिक्षा और सार्वजनिक मंचों का अनुभव होते हुए भी यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य था क्योंकि विषय मेरी मूल विशेषज्ञता से बाहर था। मुझे कुछ ऐसा कहना था जो व्यावहारिक, स्पष्ट और सभी श्रोताओं के लिए प्रासंगिक हो, साथ ही मेरे विचारों और मूल्यों के भी अनुकूल हो। मुझे यह भी ध्यान रखना था कि मेरी बात आयोजकों के लिए असहज न हो।
जब मैंने इस विषय पर थोड़ी रिसर्च की, तो जाना कि "स्पिरिचुअलिज्म" शब्द पश्चिम में बना एक अपेक्षाकृत नया विचार है और यह 19वीं सदी में प्रचलन में आया। यह जानकर मुझे आश्चर्य हुआ क्योंकि भारत की सांस्कृतिक विरासत में अध्यात्म की अवधारणा सदियों पुरानी है। यह अंतर मेरे भाषण की दिशा तय करने में सहायक रहा। मैंने यह स्पष्ट किया कि भारत में अध्यात्म आत्म-खोज, आत्मशुद्धि और सेवा से जुड़ा है, न कि केवल मृत्यु के बाद के जीवन से।
इस विचार को आगे बढ़ाते हुए, मैंने अपने भाषण में चार व्यावहारिक सूत्र साझा किए जो आम लोगों को आध्यात्मिक शांति की ओर ले जा सकते हैं:
1. सादा जीवन, उच्च विचार
बचपन से सिखाई गई यह शिक्षा आज भुला दी गई है। उपभोक्तावादी संस्कृति ने हमें साधारण जीवन से दूर कर दिया है। हम कई अनावश्यक चीजें खरीदते हैं, जो अक्सर नुकसानदायक होती हैं। अगर हम फिजूलखर्ची पर नियंत्रण रखें और सादगी अपनाएं, तो मानसिक शांति संभव है।
2. सेवा भावना को प्राथमिकता
जब हम दूसरों की सेवा को प्राथमिकता देते हैं, तो हम अपने मानसिक दायरे से बाहर निकलते हैं। यह विचारों को पवित्र बनाता है और बिना किसी बाहरी प्रयास के हमें एक बेहतर इंसान बनने की दिशा में ले जाता है।
3. वंचितों के प्रति सहानुभूति
सच्ची आध्यात्मिकता समाज के कमजोर वर्गों के प्रति सहानुभूति रखने में है। केवल दान देना पर्याप्त नहीं, बल्कि अपने अंदर से सामंती मानसिकता को खत्म करना ज़रूरी है। महात्मा गांधी का 'अंत्योदय'—अंतिम व्यक्ति के उत्थान का सिद्धांत—इसका सर्वोत्तम मार्ग है।
4. ध्यान और आत्म-विश्लेषण
ध्यान केवल आँखें बंद करके बैठना नहीं है, बल्कि गहराई से सोचने और आत्म-चिंतन करने की प्रक्रिया है। यह स्वयं के आचरण की समीक्षा और आत्म-सुधार का साधन है। यदि हम ईमानदारी से आत्म-विश्लेषण करें, तो हमें किसी धार्मिक प्रवचन की आवश्यकता नहीं होती।
इन चार सूत्रों को अपनाकर कोई भी व्यक्ति अपने भीतर की यात्रा शुरू कर सकता है और सच्ची आत्मिक शांति पा सकता है। मेरा उद्देश्य जटिल आध्यात्मिक प्रवचनों से दूर रहते हुए एक आम इंसान के लिए आध्यात्मिकता को समझने योग्य बनाना था।
मैं नहीं जानता कि मेरी इस व्याख्या को वहाँ मौजूद विद्वानों और साधकों ने किस रूप में लिया, लेकिन मेरा मानना है कि आध्यात्मिकता का मार्ग कठिन नहीं है—यदि हम अपने प्रति सच्चे और ईमानदार हों। सरल और व्यावहारिक जीवनशैली अपनाकर हम सभी आत्मिक शांति और स्थिरता की ओर बढ़ सकते हैं।
(प्रदीप माथुर मीडियामैप डॉट कॉम वेबसाइट के मुख्य संपादक हैं)
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