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नई दिल्ली, 20 नवंबर 2023 

फर्जीवाड़ा और सीनाजोरी

प्रदीप माथुर

माचारपत्र के कार्यालय में शाम होते-होते काम की रफ्तार बढ़ जाती है पर दिन आराम से शुरु होता है।  मैं अपने चैम्बर में आकर बैठा ही था कि चपरासी ने आकर कहा कि “एक देवीजी आप से मिलना चाहती हैं।” न जाने इतनी सुबह-सुबह कौन आ टपका है, मैंने सोचा और चपरासी से उन्हें भेजने को कहा।
एक अधेड़ उम्र की महिला कमरे में आई। उनके पीछे दो अवारा से लगने वाले नवयुवक भी थे। देवीजी कुछ उत्तेजित सी लग रही थी। मैंने कहा “कहिए, सुबह -सुबह आपने आने का कष्ट कैसे किया।”
वह बैठने लगी। उन दोनों नवयुवकों को मैंने उन्हें बाहर जाने का संकेत दिया। चपरासी आ कर दो गिलास पानी रख गया।
“मैं डॉ. सुधा त्रिवेदी हूँ। यहां विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हूँ। आपके समाचारपत्र ने मेरे बारे में बहुत भ्रामक और शरारतपूर्ण खबर छापी है। मैं जानना चाहती हूँ आपने ऐसा क्यों किया”, वह उत्तेजित स्वर में बोली।
अभी मैं अपने समाचारपत्र का रात का संस्करण देख भी नहीं पाया था। “कौन सी खबर”, मैंने पूंछा। 
“अरे आप संपादक हैं और आपको यह भी नहीं पता कि आपके समाचार पत्र में क्या गलत-सही छप रहा है। आप करते क्या हैं?”, वह बोली।
मुझे लगा वह शिष्टता की सीमा रेखा पार कर रही है। इस लहजे में तो किसी राष्ट्रीय स्तर के नेता ने भी कभी मुझसे बात नहीं की थी। मन किया कि चपरासी को बुलाकर उन्हें कमरे से निकलता हूं। पर संयत स्वर में मैने कहा “मैं क्या करता हूँ और क्या नहीं करता इससे आपको कोई लेना-देना नहीं है। आप जो कहना चाहती हैं कहिये।”
“आपके आज के समाचार पत्र में छपा  है कि मेरा शोधकार्य फर्जी है और उसके आधार पर मुझे विश्वविद्यालय में नौकरी मिली है। आपने इस समाचार को जाने कैसे दिया”, उनके स्वर में अभी भी उत्तेजना थी।
मैंने समाचार पत्र का स्थानीय पृष्ठ खोला। समाचार पर निगाह डाली और कहा “जब समाचार संपादक और संवाददाता आयेंगे तब मैं पता करुंगा।”
“देखिये डॉ. सुधा आपको समाचारपत्र की कार्यप्रणाली के बारे में कुछ भी ज्ञान नहीं है। संपादक का यह काम नही  है कि वह छपने से पहले हर समाचार पढ़े। समाचार पत्र का काम टीम वर्क से होता है। जहां सबके अपने-अपने काम निर्धारित होते हैं। स्थानीय समाचार रिपोर्टर लिखते हैं और समाचार संपादक उसको पास करते हैं”, मैंने उन्हें समझाने का प्रयास किया। 
“तो क्या यह रिपोर्टर आपके बस में नहीं होते?” वह तुनक कर बोली।
मुझे लगा कि अब इन्हें दूसरी शैली में समझाना होगा। मैंने कहा “आपने रामायण तो पढ़ी ही होंगी। जब भगवान राम शिवजी का धुनष तोड़ देते हैं तब परशुराम आकर राम पर बहुत क्रोधित होते हैं। अपने भ्राता के बारे में कटु वचन सुन लक्ष्मण जी को रहा नहीं जाता और वह परशुराम को कुछ कह देते हैं। संयतशील स्वभाव के राम भगवान परशुराम से क्षमा मांगते हैं और गोस्वामी तुलसीदास ने इस पर लिखा है – बर्रे बालक एक समाउं। इन्हें विदशे संतन काउं। तो आप समझ लीजिये कि समाचारपत्र के रिपोर्टर भी बर्रे की तरह होते हैं और समाज में जहां कहीं भी कोई गड़बड़ करता दिखता है उसे काट लेते हैं”, मैंने समझाया।
मुझे लगा मेरे रामायण ज्ञान ने डॉ. सुधा को थोड़ा प्रभावित किया। मेरा प्रवचन समाप्त होने के बाद वह बोली “मेरे  विद्यार्थी बहुत क्रोधित है। वह कह रहे थे कि आपके समाचार पत्र से वह मेरे अपमान का बदला लेंगे।”
यह सरासर धमकी वाली बात थी। मैंने कहा “जब हम बड़े लोगों और निहित स्वार्थों के विरुद्ध समाचार पत्रों में लिखते हैं तो इससे होने वाले खतरों का भी सामना करना जानते हैं। इसलिए आप यह सब बाते न करें। अगर आपके विद्यार्थी आए और उन्होंने कुछ तोड़-फोड़ की तो हम पुलिस को बुलाकर उनको पकड़वाने में एक मिनट भी देर न लगाएंगे। हिंसा भड़काने और प्रेस की स्वतंत्रता के विरुद्ध आचरण करने के अपराध में आप जेल भी जा सकती हैं।”
डॉ. सुधा जमीन पर उतरी और बोली “पर आपके रिपोर्टर ने तो गलती की है। इसके लिए आप उसे क्या सजा देंगे? उसने मुझे बहुत तंग किया है।” 
“क्या मेरे रिपोर्टर ने आपसे कुछ पैसे मांगे या आपको ब्लैकमेल किया”, मैंने कहा।
“नहीं मैं तो उसे जानती भी नहीं”, वह बोली।
मैंने अपने पीए से कहा “रिपोर्टर को फोन लगाकर मुझसे बात करने को कहो।” 
थोड़ी देर में रिपोर्टर फोन पर था। बोला सर“ इनकी थीसिस का 75 प्रतिशत भाग चोरी का है। जो शोध कार्य एक और जिले में हुआ था उस जिले का नाम बदलकर वैसा का वैसा ही इन्होंने अपने शोधग्रंथ में लिख डाला। मैंने इन्हीं के विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में जाकर दोनों शोधग्रंथ को देखकर रिपोर्ट लिखी है।”
बात स्पष्ट थी। मैंने जरा सख्त लहजे में कहा “डॉ. सुधा मेरा रिपोर्टर कहता है उसकी रिपोर्ट बिल्कुल ठीक है। आपको इसके विरोध में जो भी कहना हो तो आप लिखकर दे दीजिए हम छाप देंगे।”
“आप ही लिख दीजिए”, डॉ. सुधा का स्वर बदला हुआ था। उत्तेजना और आक्रमकता गायब हो गई थी। 
“हम क्यों लिखे? हमें जो लिखना था हमने लिख दिया। अब आप इससे सहमत नहीं हैं तो अपनी बात लिखिए”, कहकर मैंने घंटी दबाई और चपरासी अंदर आया।
मैंने कहा “प्रोफेसर साहब को कलम और कागज दो तथा आफिस लाइब्रेरी वाले कमरे में ले जाओ। पीए को बोलो की जो यह लिखे उसे टाइप करके इनको दिखाकर साइन करवा लें फिर मुझे दिखाना।”
मैंने डॉ. सुधा की तरफ देखा और कहा “जाइये और अपनी बात लिखकर दे दीजिए।” पर वह बोली “मुझे जरुरी काम से कहीं जाना है लिखकर भिजवा दूंगी” और मेरे कमरे से बाहर चली गईं।
मैं रोजमर्रा के काम में व्यस्त हो गया। एक सप्ताह बाद मुझे यकायक याद आया। मैंने पीए से पूंछा “उन देवीजी का लिखा आया क्या?” 
“तीन-चार दिन में फोन करता रहा सर और वह कहती रहीं अभी भेज रही हूँ, अब कल फोन किया था तो उन्होंने फोन उठाया भी नहीं”, पीए बोला।

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