जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में उमर अब्दुल्ला की वापसी एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना है, जिसने राज्य के राजनीतिक माहौल में एक नई ऊर्जा का संचार किया है। उनके पिता और नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख, फारूक अब्दुल्ला ने इस अवसर पर कश्मीरी पंडितों से अपने घरों में लौटने की भावुक अपील की है। यह आह्वान उस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में आता है, जब 1990 के दशक में आतंकवाद के चलते हजारों पंडितों को राज्य से पलायन करना पड़ा था।
कश्मीरी पंडितों का मामला भारतीय राजनीति का एक संवेदनशील मुद्दा है। लगभग दस लाख हिंदू, विशेषकर कश्मीरी पंडित, अपने ही देश में शरणार्थी बनने को मजबूर हुए थे। फारूक अब्दुल्ला ने पंडितों की घर वापसी का आह्वान करते हुए यह स्पष्ट किया कि अब राज्य में शांति की स्थापना हो चुकी है और उनकी वापसी का समय आ गया है। उन्होंने कहा कि घाटी में शांति बहाल होने के बाद अब कश्मीरी पंडितों के लिए लौटने का अवसर है।
जम्मू और कश्मीर की राजनीतिक स्थिति में हाल के वर्षों में बदलाव देखने को मिला है। राज्य में 2019 के बाद, जब अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया, तब से राज्य की राजनीतिक परिदृश्य में कई उतार-चढ़ाव आए हैं। उमर अब्दुल्ला की सरकार ने राज्य में शांति और स्थिरता लाने की कोशिश की है, जो एक लंबी प्रक्रिया रही है। घाटी में पर्यटन उद्योग के उभार और निर्यात में वृद्धि से राज्य की अर्थव्यवस्था में भी सुधार हुआ है।
लेख एक नज़र में
जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में उमर अब्दुल्ला की वापसी ने राज्य की राजनीतिक स्थिति में नई ऊर्जा का संचार किया है। उनके पिता, फारूक अब्दुल्ला, ने कश्मीरी पंडितों से अपने घरों में लौटने की अपील की है, जो 1990 के दशक में आतंकवाद के कारण पलायन करने को मजबूर हुए थे।
राज्य में 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बाद राजनीतिक बदलाव देखने को मिले हैं। हालांकि, उमर अब्दुल्ला और उनके परिवार ने कट्टरपंथ के खिलाफ संघर्ष जारी रखा है। हाल के चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 42 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस और पीडीपी की स्थिति कमजोर हुई है।
जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था में सुधार हो रहा है, लेकिन सुरक्षा चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। फारूक अब्दुल्ला का कश्मीरी पंडितों की वापसी का आह्वान, स्थिरता और सांप्रदायिक सौहार्द की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
हालांकि, राज्य की राजनीतिक स्थिति अब भी चुनौतीपूर्ण है। उमर और फारूक अब्दुल्ला ने हमेशा सुन्नी इस्लामी कट्टरपंथियों, विशेष रूप से देवबंदी और बरेलवी पंथों के उग्रवाद का विरोध करने की कोशिश की है। यह राज्य हमेशा से सांप्रदायिक और राजनीतिक अस्थिरता का केंद्र रहा है।
राज्य में महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) का भी काफी प्रभाव रहा है। हाल के वर्षों में, राज्य में पीडीपी की स्थिति कमजोर हो गई है, खासकर 2019 के बाद से। महबूबा मुफ्ती ने दिल्ली की भाजपा सरकार के समर्थन से अपने 'हीलिंग टच' कार्यक्रम की शुरुआत की थी, लेकिन घाटी में हिंसा और आतंकवाद के खिलाफ़ केंद्र सरकार की सख्त कार्रवाई ने पीडीपी को हाशिए पर धकेल दिया।
कांग्रेस पार्टी भी जम्मू और कश्मीर में अपनी राजनीतिक पकड़ खो चुकी है। कांग्रेस ने अपने सबसे वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आज़ाद का अनादर करके अपने अवसरों को गंवा दिया। राज्य में हाल ही में हुए चुनावों में कांग्रेस को केवल छह सीटें मिलीं, जबकि नेशनल कॉन्फ्रेंस 42 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। भाजपा ने जम्मू क्षेत्र में 29 सीटें जीतीं, लेकिन राज्य सरकार में उसकी कोई सीधी भूमिका नहीं है।
राज्य की अर्थव्यवस्था भी धीरे-धीरे पटरी पर आ रही है। हाल के वर्षों में जम्मू-कश्मीर का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) उल्लेखनीय रूप से बढ़ा है। 2019 में यह 1.60 लाख करोड़ रुपये था, जो 2023 में बढ़कर 2.46 लाख करोड़ रुपये हो गया है। यह वृद्धि अगले वित्तीय वर्ष में 9.9 प्रतिशत के पार जाने की उम्मीद है।
उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में राज्य में पर्यटन और निर्यात में भी सुधार हुआ है, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था में सकारात्मक बदलाव आया है। जम्मू-कश्मीर की समृद्धि के लिए एक स्थिर सरकार का होना महत्वपूर्ण है, और उमर अब्दुल्ला की सरकार इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा रही है।
हालांकि, राज्य को अब भी सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। पाकिस्तान की ओर से होने वाली घुसपैठ और आतंकवादी गतिविधियों का खतरा बना हुआ है। हाल ही में, विदेश मंत्री एस. जयशंकर की पाकिस्तान यात्रा के दौरान यह स्पष्ट किया गया कि भारत अब शांति के नाम पर आतंकवाद के साथ समझौता नहीं करेगा।
पाकिस्तान की सेना और आतंकवादी संगठनों की ओर से कश्मीर घाटी में हिंसा भड़काने की कोशिशें अब भी जारी हैं। राज्य सरकार और केंद्र सरकार को इस खतरे से निपटने के लिए सतर्क रहना होगा। इजरायल में हमास द्वारा किए गए आतंकवादी हमलों से सबक लेते हुए, सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि कश्मीर में किसी भी तरह का आतंकवादी संगठन पैर न जमा सके।
फारूक अब्दुल्ला द्वारा कश्मीरी पंडितों की वापसी का आह्वान राज्य में एक नई शुरुआत का प्रतीक हो सकता है। यह न केवल घाटी में स्थिरता और शांति की दिशा में एक बड़ा कदम होगा, बल्कि इससे राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द भी बहाल हो सकता है।
जम्मू-कश्मीर का भविष्य चुनौतियों से भरा है, लेकिन उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में राज्य एक स्थिर और समृद्ध भविष्य की ओर बढ़ने के लिए तैयार है।
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