“सूरज के इंतज़ार में सहर हो जायेगी।” - राहत इंदोरी की यह पंक्ति जुगनुओं की चमक और उनकी आत्मनिर्भरता को दर्शाती है। जुगनू, जो रात में अपनी रोशनी से वातावरण को रोशन करते हैं, हमें यह सिखाते हैं कि हमें अपने अंदर की रोशनी को पहचानना और उसे जगाना चाहिए।
बचपन में, मैंने जुगनुओं के प्रति एक विशेष लगाव महसूस किया। पूसा इंस्टीट्यूट में रहते हुए, बारिश के मौसम में मैं अपनी छोटी बहन के साथ जुगनू ढूंढता था। उन्हें पकड़कर अपनी जेब में रखना मेरे लिए एक अद्भुत अनुभव था। धीरे-धीरे, मैंने समझा कि जुगनुओं की एक विशिष्ट पहचान होती है। वे सूरज या चांद की रोशनी के बिना भी चमकते हैं, जो उनकी आत्मनिर्भरता का प्रतीक है।
भारत की प्रतिष्ठित संस्था 'प्रयास' पिछले 36 वर्षों से समाज के तिरस्कृत बच्चों के उत्थान के लिए काम कर रही है। यह संस्था उन जुगनुओं की उड़ान की साक्षी है, जिनके पास अपनी रोशनी है लेकिन जिन्हें सही दिशा और समर्थन की आवश्यकता है।
लेख एक नज़र में
“सूरज के इंतज़ार में सहर हो जायेगी।” - राहत इंदोरी की यह पंक्ति जुगनुओं की आत्मनिर्भरता को दर्शाती है। जुगनू, जो रात में अपनी रोशनी से वातावरण को रोशन करते हैं, हमें अपने अंदर की रोशनी को पहचानने की प्रेरणा देते हैं।
भारत की संस्था 'प्रयास' पिछले 36 वर्षों से तिरस्कृत बच्चों के उत्थान में जुटी हुई है। 1988 में दिल्ली के जहांगीरपुरी में आग से प्रभावित बच्चों की मदद के लिए अमोद कंठ ने प्रयास की स्थापना की।
सारा, मिमी, लिसा और अवनि जैसी बच्चियों की कहानियाँ मानव तस्करी और शोषण की कठोर सच्चाइयों को उजागर करती हैं। सारा ने अपनी माँ के विश्वासघात के बाद एक दयालु महिला की मदद से नया जीवन पाया। मिमी ने यौन उत्पीड़न के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और शिक्षा प्राप्त की। लिसा ने वेश्यावृत्ति के प्रलोभन का सामना किया, जबकि अवनि ने नशा मुक्ति केंद्र में जाकर अपने जीवन को संवारने का प्रयास किया।
प्रयास ने इन सभी बच्चियों को चिकित्सा, कानूनी सहायता और शिक्षा प्रदान की, जिससे उन्होंने अपनी पहचान और आत्म-सम्मान को पुनः प्राप्त किया।
1988 में दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में एक भयानक आग ने सैकड़ों बच्चों के आशियाने को जलाकर राख कर दिया। इस हादसे ने कई बच्चों को यतीम बना दिया। उस समय दिल्ली पुलिस में वरिष्ठ पद पर कार्यरत अमोद कंठ ने इन बच्चों की दुर्दशा को देखकर ठान लिया कि उन्हें मदद करनी है। इसी सोच के साथ, प्रयास की स्थापना हुई, जो आज देश के 12 राज्यों में बेसहारा बच्चों को पुनर्वास और समर्थन प्रदान कर रही है।
सारा की कहानी मानव तस्करी की कठोर सच्चाई को उजागर करती है। उसके पिता का निधन हो गया और उसकी माँ ने उसे एक अजनबी को बेच दिया। इस अमानवीय कृत्य ने सारा का बचपन छीन लिया और उसे शारीरिक और भावनात्मक दुर्व्यवहार का शिकार बना दिया। एक दिन, सारा ने एक डिलीवरी बॉय की मदद से उस स्थान से भागने का साहस किया जहां उसे बंदी बनाया गया था।
एक दयालु महिला ने सारा को अपने घर में शरण दी और उसकी मदद की। वर्तमान में, वह प्रयास बाल गृह में रह रही है, जहां उसे चिकित्सा देखभाल, कानूनी सहायता, और अन्य आवश्यक सेवाएं प्रदान की जा रही हैं। सारा की कहानी हमें यह सिखाती है कि हर बच्चे में उड़ने की क्षमता होती है, जब तक कि उनके पंख न काटे जाएं।
मिमी की कहानी भी उतनी ही दिल दहला देने वाली है। उसकी माँ का निधन हो गया और उसे यौन शोषण का सामना करना पड़ा। 13 साल की उम्र में, मिमी ने एक आदमी के हाथों यौन उत्पीड़न का शिकार बनी। उसने हिम्मत जुटाकर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और आरोपी को गिरफ्तार कराया।
प्रयास ने मिमी को कानूनी सहायता प्रदान की और उसकी शिक्षा के लिए सिलाई पाठ्यक्रम में नामांकित किया। मिमी ने अपनी मेहनत से न केवल अपने लिए एक नया जीवन पाया, बल्कि उसने कपड़ा मंत्रालय से भी प्रमाण पत्र प्राप्त किया।
दिल्ली की गलियों में 12 वर्षीय लिसा ने भीषण शोषण का सामना किया। उसकी माँ की बीमारी और पिता की उदासीनता ने उसे घर में कभी चैन नहीं लेने दिया। लिसा ने वेश्यावृत्ति के प्रलोभन का सामना किया, लेकिन उसने हिम्मत जुटाकर पुलिस के पास जाकर अपनी कहानी साझा की।
प्रयास ने लिसा को आश्रय, शिक्षा और चिकित्सा सहायता प्रदान की। आज लिसा एक नई जिंदगी की ओर बढ़ रही है, जहां उसने अपनी कला में रुचि दिखाई है।
17 वर्षीय अवनि ने भी गरीबी और शोषण का सामना किया। उसकी माँ ने किसी अन्य पुरुष के साथ भाग जाने के बाद, अवनि ने अपने पिता के साथ संघर्ष किया। एक दिन, पार्क में एक अजनबी द्वारा उसका यौन शोषण किया गया।
प्रयास ने अवनि को न केवल चिकित्सा और कानूनी सहायता प्रदान की, बल्कि उसे नशा मुक्ति केंद्र में भी भर्ती कराया। अब वह अनौपचारिक शिक्षा में भाग ले रही है और अपने भविष्य की ओर आशा के साथ बढ़ रही है।
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