Thought for the Day
19 Feb 2025
जुल्मो-वहशत की इंतहा है गजह
दोरे-हाजिर की कर्बला है गजह
यु तो सबके लिए दुआ है गजह
और खुद के लिए सजा है गजह
कुछ की नज़रों में बदनुमा है गजह
कुछ की नज़रों में मोजिज़ा है गजह
मौत की नींद सोना पड़ता है
और धमाकों से जगता है गजह
जिसको घेरे है जुल्म की आंधी
एक बुझता हुआ दीया है गजह
इतना लूटा है तुझको जालिम ने
अब तेरे पास क्या बचा है गजह
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