चाहे पक्ष हो या प्रतिपक्ष,
सत्ता की दलाली में,
दोनों ही है- उभय पक्ष !
इसका मतलब,
पूरी तरह से साफ है।
सत्ता दरअसल में,
सिर्फ दो मुहाँ साँप है।
एक नागनाथ,
तो दूसरा सापनाथ है,
और सत्ता की,
पारसमणि झटके बिना,
दोनों ही अनाथ हैं।
भ्रष्टाचार की बांबी में,
पाते दोनों ही पनाह है।
सबकी अलग-अलग
भूमिका है- एक करता
वाह! वाह !! है, तो
दूसरा आह! आह है !!
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