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गधेपन का सख्त विरोध: लेकिन प्रणाम करना जरूरी

अनूप श्रीवास्तव

A person with glasses and a blue shirt

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लखनऊ, 25 जून 2024

पको पढ़ने और समझने की गलती न हो, इसलिए  प्रारम्भ में ही यह साफ कर देना चाहता हूँ कि मै किसी गधे को प्रणाम नही कर रहा हूँ। गधे को तो मैं पूज्य और आदरणीय प्राणी मानता हूँ लेकिन गधेपन के सख्त खिलाफ हूँ। इसके बावजूद  मैं गधेपन को प्रणाम करना अपना कर्तव्य और दायित्व मानता हूँ। इसलिए नहीं कि इंसानों की दो टांगो की तुलना में उसकी चार टांगे हैं और वह इंसानों से श्रेष्ठ प्राणी है,बल्कि अपनी दो अतिरिक्त टांगों से इंसानों को तंगड़ी या दुलत्ती मार कर गिरा भी सकता है। ये दो टांगे उसे लोकतंत्र ने प्रदान की है।



लेख एक नज़र में

 

लेखक ने स्पष्ट किया है कि वे किसी गधे को प्रणाम नहीं कर रहे हैं, बल्कि गधेपन के सख्त खिलाफ हैं। लेकिन लोकतंत्र में चुनाव जीतने वाले जनप्रतिनिधि के अधिकार में दो अतिरिक्त टांगे जुड़ जाती हैं, जो सामान्य लोगों की तुलना में अधिक टँगड़ी मारने वाली होती हैं। देश का पुलिस बल इन्ही टांगो के बल पर लतियाया जाता है। लेकिन सवाल उठता है कि कानून क्या है और वह किसकी रक्षा करे? संविधान की या निर्वाचित जन प्रतिनिधि की। यह बड़ा पेचीदा सवाल है।



चुनाव जीत कर जो भी जनप्रतिनिधि बनता है उसके अधिकार में दो अतिरिक्त (प्रशासनिक  अधिकार वाली) टांगे जुड़ जाती हैं।  ये टांगे सामान्य लोगों की तुलना में बहुत अधिक  टँगड़ी मारने वाली होती हैं। देश का पुलिस बल इन्ही  टांगो के बल पर लतियाया जाता है। क्या मजाल खाकी कानून का कवच ओढ़ सके। इधर उसने कोशिश की कि उधर पड़ी दुलत्ती और  वह  ताकत रिरियाने पर मजबूर हो जाती है। यही खाकी पर खादी की विजय है।

अब सवाल यह उठता है कि कानून क्या है वह सविधान,जो  मूल विधि है का चाकर है। यानी वह संविधान के लाखों,करोड़ों  प्राविधानों की रक्षा करता है।इसके बावजूद वह उन लोगों की भी रक्षा करने को विवश है जो  गाहे बिगाहे कानून तोड़ने हैं,लेकिन निर्वाचित जनप्रतिनिधि है।ऐसे में वह किसकी रक्षा करे? संविधान की या निर्वाचित जन प्रतिनिधि की। यह बड़ा पेचीदा सवाल है।

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