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मातृभूमि के प्रति समर्पण की अद्वितीय गाथा

प्रशांत गौतम

A person in a suit

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नई दिल्ली | सोमवार | 12 अगस्त 2024

गस्त 11 का दिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक ऐसे वीर योद्धा की याद में समर्पित है, जिन्होंने महज 18 साल की उम्र में अपने प्राणों की आहुति देकर देशभक्ति का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। वह वीर सपूत थे, अमर शहीद खुदीराम बोस, जिन्होंने अपने जीवन के प्रारंभिक वर्षों में ही राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का मार्ग चुना। उनके बलिदान दिवस पर हम सभी उनके अतुलनीय साहस, निडरता और मातृभूमि के प्रति उनके अगाध प्रेम को नमन करते हैं।

खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में हुआ था। बचपन से ही उनमें देशभक्ति का जुनून था। वह स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए अपनी किशोरावस्था में ही प्रेरित हो गए थे। 15 साल की उम्र में खुदीराम ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंक दिया और पहली बार गिरफ्तारी का सामना किया। इतनी कम उम्र में उनकी यह साहसिक कार्रवाई उनके भीतर छिपी क्रांति की भावना को उजागर करती है।

 

लेख एक नज़र में
अमर शहीद खुदीराम बोस की शहादत की याद में 11 अगस्त का दिन समर्पित है। 18 साल की उम्र में उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।

खुदीराम बोस ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंक दिया और पहली बार गिरफ्तारी का सामना किया। उनका उद्देश्य देश को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराना था।

उनके बलिदान ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया और स्वतंत्रता संग्राम में एक नई ऊर्जा का संचार किया। आज भी उनका जीवन हमें प्रेरित करता है और हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता की कीमत क्या होती है और इसे बनाए रखना हमारा परम कर्तव्य है।

 

खुदीराम बोस ने बंगाल विभाजन के खिलाफ चलाए जा रहे आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। वह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ गुप्त रूप से क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए। उनका उद्देश्य देश को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराना था। उनके साथियों के बीच वह अपनी निडरता और समर्पण के लिए जाने जाते थे। उन्होंने अंग्रेजी शासन के प्रतीक सरकारी भवनों और अधिकारियों को निशाना बनाने के लिए बम विस्फोट किए। इन हमलों का उद्देश्य अंग्रेजों के दिल में खौफ पैदा करना और उन्हें भारतीय जनता की शक्ति का अहसास कराना था।

30 अप्रैल 1908 को खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने मुजफ्फरपुर के किंग्सफोर्ड को मारने का प्रयास किया, जो कि अपने क्रूर फैसलों के लिए कुख्यात था। हालांकि, इस प्रयास में किंग्सफोर्ड बच गया और दो महिलाओं की मौत हो गई। खुदीराम बोस को इस घटना के बाद गिरफ्तार कर लिया गया। उनके साहसिक कृत्य के बाद उन्होंने खुद को कानून के सामने समर्पित किया, लेकिन उनके चेहरे पर कोई भय नहीं था। यह वह समय था जब उन्होंने अपनी अंतिम यात्रा पर जाते हुए हाथ में गीता ली और हंसते-हंसते फांसी के फंदे को गले लगाया।

11 अगस्त 1908 को खुदीराम बोस ने मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहुति दी। वह अपने जीवन के केवल 18वें वर्ष में थे, जब उन्होंने फांसी का सामना किया। उनकी शहादत ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया और स्वतंत्रता संग्राम में एक नई ऊर्जा का संचार किया। उनकी वीरता और बलिदान आज भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है।

 

खुदीराम बोस की शहादत के बाद देशभर में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन और तेज हो गया। उनके बलिदान ने युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। वह स्वतंत्रता संग्राम के उन महानायकों में से एक थे, जिन्होंने अपने जीवन का बलिदान देकर देशवासियों को आजादी की राह दिखाई। उनकी स्मृति में हर साल 11 अगस्त को बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है, जब हम उनके अद्वितीय साहस और बलिदान को याद करते हैं।

अमर शहीद खुदीराम बोस का बलिदान दिवस न केवल उनकी वीरता को याद करने का अवसर है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाता है कि मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए हर बलिदान छोटा है। उन्होंने अपनी युवावस्था में ही यह सिद्ध कर दिया कि सच्चे देशभक्त के लिए उम्र महज एक संख्या है। उनके बलिदान ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी और आज भी उनका जीवन हमें प्रेरित करता है। 11 अगस्त को हम सभी खुदीराम बोस को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके दिखाए गए रास्ते पर चलने का संकल्प लेते हैं। उनकी अमर गाथा हमें हमेशा याद दिलाती रहेगी कि स्वतंत्रता की कीमत क्या होती है और इसे बनाए रखना हमारा परम कर्तव्य है।

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