बहुत दिनों से भारतीय सिनेमा की दशा या दुर्दशा को लेकर मैं थोड़ा चिंतित था।
खुशी इस बात की थी दर्शक वापस सिनेमा हाल जानें लिए थे और २०२३ में ४/५ फिल्मों ने करोड़ों का व्यापार किया और दुख इस बात का सिनेमा में एनिमल जैसी फिल्में ९५० करोड़ कमा कर इतिहास बना रहीं थीं।
अपने भोपाल प्रवास में इन संशयों को लेकर मुझे
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के छात्रों से बातचीत करने का अवसर मिलl
आखिर ऐसा क्या है आज की युवा पीढ़ी में जो वो एक साथ एनिमल और 12th Fail जैसी फिल्मों को स्वीकार कर रही है।
ये दोनों फिल्में २०२३ की सबसे लोकप्रिय भारतीय फिल्मों रही हैं। जहां पहली फिल्म भरपूर हिंसा और महिलाओं के उत्पीड़न की कहानी है दूसरी फिल्म एक बेहद ईमानदार और मेहनती युवक की वास्तविक कहानी है जिसने अपनी लगन से आई पी एस का सपना पूरा किया।
उन्होंने यह भी कहा कि भारत की बहुत बड़ी आबादी है और यहां हर विचारधारा को मानने वाले लोग मिल जाएंगे।
लगभग एक घंटा चली चर्चा में छात्र छात्राओं ने खुल कर अपनी बात रखी। कुछ ने कहा कि महिलाओं से स्पर्धा में पीछे रह जाने पर पुरुषों में हीन भावना आ जाती है।
इसे वे हिंसा में व्यक्त करते हैं।
लेकिन यह भी सच कि अगर फिल्म ९५० करोड़ कमा चुकी है तो कहीं न कहीं इसको दो करोड़ से अधिक दर्शको ने मान्यता दी है।
एक छात्र का कहना था बहुत से फिल्म समीक्षक केवल फिल्म के कन्टेंट के बारे में लिखते हैं और फिल्म क्राफ्ट और उसके संगीत वग़ैरह की चर्चा नहीं करते क्योंकि शायद उसके बारे में उन्हें ज्ञान नहीं है।
मैंने उन्हें बताया कि समाचारों की हेडलाइन भ्रामक होती हैं इसलिए उन्हें पूरा समाचार अन्त तक पढ़ना चाहिए।
जैसे समाचार की हेडलाइन थी कि भारतीय फिल्मों ने युरोप से ज्यादा कमाई की।
लेकिन आगे पता चलता है कि टिकटों की बिक्री चार साल में सबसे कम रही मतलब कमाई इसलिए अधिक रही कि टिकटें महंगी हो गईं।
ये भी एक सच्चाई है कि भारत में हर साल १५००/२००० फ़िल्में बनती हैं लेकिन उनमें से अच्छी सिर्फ २५/३० होती हैं जिनकी हम चर्चा करते हैं।
चर्चा का समापन करते हुए प्रोफेसर पवित्र श्रीवास्तव जो सिनेमा स्टडी के एचओडी हैं ने कहा कि फिल्मों की कमाई को उनकी सफलता का पैमाना नहीं मानना चाहिए।
उन्होंने हाल में रिलीज चार फिल्मों का उदाहरण देते हुए कहा कि उनकी कमाई का विवरण का उनकी जनता में पसंद के एकदम विपरीत है।(शब्द 480)
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