राजनीति के बिना समाज या देश की कल्पना नहीं की जा सकती। लेकिन यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि राष्ट्रीय मीडिया अक्सर सत्ता के इशारे पर काम करता है और जनहित की उपेक्षा करता है। ऐसे समय में, मैंने देश की सबसे पुरानी पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को समझने का निर्णय लिया, जिसने महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी और ‘भारत के विचार’ की नींव रखी जिसे हमारे संविधान में संस्थागत रूप दिया गया।
आज कांग्रेस पार्टी खुद को नए रूप में ढालने की कोशिश कर रही है, और यह प्रक्रिया जानबूझकर नज़रअंदाज की जा रही थी या दबा दी जा रही थी। इस पुनर्निर्माण का एक महत्वपूर्ण पड़ाव 8-9 अप्रैल को अहमदाबाद में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) का अधिवेशन है, जिसकी अध्यक्षता मल्लिकार्जुन खड़गे कर रहे हैं। यह गुजरात जैसे राज्य में हो रहा है जहाँ भाजपा 1995 से सत्ता में है, जो यह संकेत देता है कि कांग्रेस अब संघर्ष को भाजपा-आरएसएस के गढ़ तक ले जाने के लिए तैयार है।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 1885 में हुई थी और गुजरात में अब तक पांच बार इसका अधिवेशन हो चुका है — पहली बार 1902 में अहमदाबाद में, फिर सूरत (1907), अहमदाबाद (1921), हरिपुरा (1938), और भावनगर (1961) में। अब 64 वर्षों बाद यह अधिवेशन गुजरात में फिर से आयोजित हो रहा है, जिससे इसकी ऐतिहासिक और राजनीतिक महत्ता और बढ़ जाती है।
इस बार अधिवेशन का आयोजन दो हिस्सों में हुआ — 8 अप्रैल को सरदार पटेल स्मारक पर विस्तारित कांग्रेस कार्य समिति (CWC) की बैठक और 9 अप्रैल को साबरमती रिवरफ्रंट पर AICC की बैठक। इस बैठक में पार्टी के शीर्ष नेता — मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और केसी वेणुगोपाल — उपस्थित रहे।
इससे पहले पार्टी ने दिल्ली में अपने जिला अध्यक्षों के साथ 27, 28 मार्च और 3 अप्रैल को बैठक कर जमीनी स्तर पर संगठन को सशक्त करने की रणनीति पर विचार किया। यह दिखाता है कि कांग्रेस सिर्फ भाषणों तक सीमित नहीं, बल्कि संरचनात्मक बदलाव के लिए गंभीर प्रयास कर रही है।
इस संदर्भ में कांग्रेस की एक प्रमुख पहल रही है — "डॉ. मनमोहन सिंह मिड-कैरियर फेलोशिप प्रोग्राम" की शुरुआत। इस कार्यक्रम के अंतर्गत हर वर्ष 50 ऐसे पेशेवरों का चयन किया जाएगा जो राजनीति में आकर सामाजिक सेवा करना चाहते हैं। यह मंच उन्हें अवसर देगा कि वे संविधान और कांग्रेस के मूल्यों में विश्वास रखते हुए अपनी विशेषज्ञता के साथ राजनीति में सार्थक योगदान दें।
पार्टी ने इस पहल को राजनीति में नई सोच और पेशेवर दृष्टिकोण लाने वाला कदम बताया है। प्रवक्ताओं ने स्पष्ट किया कि यह कोई दिखावटी योजना नहीं, बल्कि गंभीर और प्रतिबद्ध व्यक्तियों के लिए एक वास्तविक मंच है। कांग्रेस का उद्देश्य है कि डॉ. मनमोहन सिंह जैसे कद के नेता इसी कार्यक्रम से उभरें और उनकी विरासत को आगे बढ़ाएं।
पूर्व आईएएस अधिकारी के राजू, जो अब कांग्रेस के झारखंड प्रभारी बनाए गए हैं और इस फेलोशिप के सलाहकारों में से एक हैं, ने कहा कि "राजनीतिक नेताओं का कार्य केवल संसद या विधानसभा में भाषण देना नहीं होता। उन्हें जटिल मुद्दों की समझ होनी चाहिए। यह कार्यक्रम कांग्रेस को बाकी दलों से अलग पहचान देगा।"
डॉ. मनमोहन सिंह का योगदान भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में अद्वितीय है। 1991 में वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने भारत को आर्थिक संकट से निकाला और उदारीकरण की नींव रखी। 2004 से 2014 तक प्रधानमंत्री के रूप में उनके नेतृत्व में कई ऐतिहासिक कानून जैसे — मनरेगा, आरटीआई — लागू हुए, जिससे भारत की वैश्विक स्थिति मजबूत हुई। कांग्रेस पार्टी में उन्हें हमेशा बुद्धिमत्ता, नीतिपरक सोच और सुशासन का प्रतीक माना जाता रहा है।
कांग्रेस का यह कदम दिखाता है कि वह संगठन को केवल चुनावी मशीन नहीं बल्कि विचारधारा और मूल्य आधारित संगठन बनाना चाहती है। पार्टी अब स्पष्ट रूप से आरएसएस को अपना वैचारिक विरोधी मानती है, जो आज़ादी के बाद की हर उपलब्धि को नकारने पर तुला हुआ है। कांग्रेस का मानना है कि यह विचारधारा देश को एक खतरनाक दिशा में ले जा रही है — अराजकता और विनाश की ओर।
अंततः, यह उम्मीद की जा सकती है कि कांग्रेस इस विचारधारा को चुनौती देकर देश की आत्मा की रक्षा करेगी। पार्टी जिस दिशा में बढ़ रही है, वह केवल संगठनात्मक बदलाव नहीं बल्कि देश के भविष्य को दिशा देने वाली रणनीति का हिस्सा है।
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