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आज का संस्करण

नई दिल्ली , 10 अप्रैल 2024

प्रो प्रदीप माथुर

A person with white hair and glasses

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वर्ष 2014 और 2019 के आम चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत दिलाने में उत्तर प्रदेश ने बहुत अहम भूमिका निबाही। देश में सबसे अधिक 80 लोकसभा सीटों वाले  इस राज्य ने क्रमश 702 और 622 सीटें भाजपा को देख कर मोदी सरकार को बहुत मजबूत आधार दिया।  आज फिर वर्ष 2024 के आम चुनाव में भाजपा अपने इस सबसे शक्तिशाली किले को बचाने के लिए तन-मन से जुटी है।

पर वर्तमान चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश में बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है इसका कारण विपक्ष का एक बैनर  के नीचे आकर चुनाव लड़ना जिससे भाजपा को विपक्षी दलों के आपसी टकराव से होने वाले मत विभाजन का लाभ नहीं मिलेगा।

यदि उत्तर प्रदेश के सन्दर्म में बात करें तो यहाँ पर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का एक साथ आकर चुनाव लड़ना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती सिद्ध हो रही है।  यह सही है कि विपक्ष के इंडिया नामक गठबंधन में मायावती की बहुजन समाज पार्टी नहीं आई और चौधरी चरण सिंह के पुत्र जयन्त चौधरी का राष्ट्रीय लोक दल आकर बाहर चला गया पर यह भी सही है की आज अखिलेश यादव का समाजवादी दल उत्तर प्रदेश का सबसे शक्तिशाली विपक्षी दल हैं और अखलेश यादव उसके निर्विवाद बड़े नेता है।

 



लेख एक नज़र में

लोकसभा चुनाव 2024 में उत्तर प्रदेश में भाजपा की बहुमत बचाने हेतु पूरे  तन-मन से लड़ रही है। विपक्ष का एक बैनर नौ हो आकर चुनाव लड़ने से भाजपा को विपक्षी दलों के आपसी टकराव से होने वाले मत विभाजन का लाभ नहीं मिलेगा।

समाजवादी पार्टी को समाजवादी आंदोलन की पूरी विरासत को खुद में आत्मसात करने की आवश्यकता है। समाजवादी पार्टी को अपने प्रचार-प्रसार के लिए दिल्ली में एक मीडिया प्रेजेंस की आवश्यकता है। अखिलेश यादव जी विदेशों में पढ़े हैं और उनकी छवि एक प्रगतिशील नौजवान की रुप में है। वे समय-समय पर समाज के व्यापक हितों की बात उठाते रहते हैं। लेकिन आवश्यकता है कि वह विकास के वैज्ञानिक आधार और तकनीकी के मुद्दे भी उठाएं।
समाजवादी पार्टी को अपने घोषणा पत्र में कोरोना काल में सरकार की गलत नीतियों और तमाम तरह के भ्रम के बीच व्यापारी समाज के एक वर्ग ने बहुत गलत भूमिका निभाई हुई तथा इसमें ब्लैक मार्केटिंग और होल्डिंग भी शामिल है जिसके खिलाफ समुचित कार्यवाही करने हेतु आह्वान करना चाहिए।



यह भी सच है कि राहुल गाँधी की तरह अखिलेश यादव की पहले वर्ष में राजनीति में परिवर्तन हुए हैं और उनकी सामाजिक आर्थिक मुद्दों का सम्मान बड़ा है।

 दो बड़ी यात्राओ के बाद राहुल गाँधी और उनकी कांग्रेस पार्टी का जन समर्थन काफी बड़ा है और अखिलेश यादव के साथ मिलकर वह आत्मविश्वास के साथ भाजपा पर आक्रमक है।

अखिलेश यादव के लिए राजनीतिक जीवन में अपार सम्भावनाएं है।  उत्तर प्रदेश ने भारत को सात-आठ प्रधानमंत्री दिए है।  अगर अखिलेश यादव अपनी राजनीतिक पारी ठीक से खेलें तो वह इस देश की राजनीतिक सत्ता के शिखर पर जा सकते है।  अहम सवाल है कि क्या वह ऐसा कर पाएंगे और यदि वे ऐसा करना चाहें तो उन्हें क्या करना पड़ेगा।

सबसे पहले उन्हें इस बदलते राजनैतिक परिदृश्य में समाजवादी पार्टी की अवधारणा को व्यापक आधार देने की  आवश्यकता है। भारत में समाजवादी आंदोलन संगठित रुप से वर्ष 1934 में हुआ जब जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में कांग्रेस समाजवादी पार्टी की स्थापना हुई। आचार्य नरेंद्र देव इसके प्रथम अध्यक्ष रहे। इसके बाद समाजवादी विचारधारा किसी न किसी रुप में भारतीय राजनीति का अंग रही है।  आज कोई भी राष्ट्रीय या क्षेत्रीय दल ऐसा नहीं है जो समाजवादी विचारधारा को पूरी तरह से मानता हो या उसे अपनाता हो। कांग्रेस ने समाजवाद व नेहरुवाद का मार्ग छोड़ दिया है। इसलिए यह बहुत अच्छा अवसर है जब समाजवादी पार्टी अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी आंदोलन की पूरी विरासत को खुद में आत्मसात कर ले।

 

पर समाजवादी विचारधारा का एकमात्र ध्वजवाहक बनने के लिए समाजवादी पार्टी को कुछ ऐसे काम करने होंगे जो सही मायने में सामाजिक सरोकार व दूरदर्शिता से आतप्रोत हों। साथ ही कुछ सैद्धांतिक व व्यावहारिक चिंतन को भी आत्मसात करना होगा। जिससे वह पूरी तरह से इस समाजवादी आंदोलन की लगभग 100 वर्ष पूरानी थाती को खुद से जोड़ सकेंगे। समाजवादी आंदोलन में डॉ. लोहिया के अलावा भी तमाम महत्वपूर्ण नाम जुड़े हुए हैं जिन्हें अपना कर पार्टी को सम्मान देना होगा।

स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव के साथ नेतृल  में समाजवादी पार्टी ने अभी तक केवल डॉ. लोहिया को ही अपना प्रेरणा स्त्रोत माना हुआ है। लेकिन सरदार भगत सिंह से लेकर चन्द्रशेखर  तक कई ऐसे बड़े नाम हैं जो समाजवादी आंदोलन से जुड़े रहे हैं और जिन्होंने समाजवादी विचारधारा को परिष्कृत व पोषित किया है। आवश्यकता इस बात की है कि पार्टी इन बातों को समझें और उस पर बात करें। साथ ही साथ समाजवादी पार्टी को अपनी जातिवादी छवि से उभरना पड़ेगा। समाजवाद मूलतः आर्थिक मंत्र है और जातिगत राजनीति धर्म का एक विकृत रुप है। इसलिए आवश्यकता है कि समाजवादी पार्टी सर्वहारा वर्ग को अपने साथ ले और समस्त वंचित वर्ग का नेतृत्व करने का बीड़ा उठाए।

प्रश्न  यह है कि क्या अखिलेश यादव यह करने में सक्षम है।  अगर वह यह करके समाजवादी पार्टी का स्पष्ट और हढ वैकारिक आधार देते हैं तो उन्हें समाज के तमाम उन  वर्गों का भी समर्थन मिलेगा जो अब तक उनसे  दूरी बनाए हुए है| इसका चुनावी लाभ अवश्य होगा| के लोगों को आगे लाए और उन्हें प्रोत्साहित करे। ऐसा करने से समाजवादी पार्टी के विरोधियों को उन्हें जातिगत पार्टी कहकर बदनाम करने का मौका नहीं मिलेगा।

 

परंपरागत रुप से समाजवादी पार्टी ग्रामीण इलाकों से निकला हुआ बैकवर्ड क्लास का दल है और इसमें कोई हर्ज भी नहीं है। इस पार्टी ने उन लोगों को नेतृत्व दिया जिन्हें अन्य राजनैतिक पार्टियां गंभीरता से नहीं ले रहे थीं। लेकिन अब आवश्यकता इस बात की है कि समाजवादी पार्टी को न सिर्फ गांव के किसान वर्ग की बात करनी चाहिए बल्कि शहरीय मजदूरों की ओर भी ध्यान देना चाहिए और श्रमिक आंदोलन से जुड़े हुए तमाम लोगों को समाजवादी पार्टी से जोड़कर उन्हें एक समुचित स्थान देना चाहिए। साथ ही समाजवादी पार्टी को अपने घोषणा पत्र में यह बताना चाहिए कि हम न सिर्फ खेतिहर किसानों के साथ हैं बल्कि शहरों में काम करने वाले औद्योगिक मजदूरों के साथ भी खड़े हैं।  

 

समाजवादी पार्टी को अपने प्रचार-प्रसार के लिए दिल्ली में एक मीडिया प्रेजेंस की आवश्यकता है। दिल्ली के मीडिया में अपना स्थान न बना पाने के कारण पार्टी की पहचान एक सीमित दायरे तक ही सिमट कर रह जाती है। वैसे तो यह समस्या समाजवादी पार्टी के अलावा उत्तर प्रदेश में अन्य पार्टियों के साथ भी यही समस्या है। इसीलिए निहित स्वार्थ उनको विकृत रुप में दिखाने के प्रयास में सफल हो जाते हैं। समाजवादी पार्टी न सिर्फ  दिल्ली में अपनी मीडिया प्रेजेंस रखे बल्कि कुछ ऐसे लोगों को भी रखे जो अंग्रेजी प्रेस के साथ बात करने में सहज महसूस करते हों। इसतरह से  समाजवादी पार्टी को न सिर्फ मीडिया कवरेज मिलेगा बल्कि तमाम तरह की भ्रांतियां भी दूर होंगी। जिनके कारण विरोधी दल खासकर भाजपा के लोग समाजवादी पार्टी को छोटा दिखाने में सफल हो जाते हैं।

 

अखिलेश यादव जी विदेशों में पढ़े हैं और उनकी छवि एक प्रगतिशील नौजवान की रुप में है। वह समय—समय पर समाज के व्यापक हितों की बात उठाते रहते हैं। लेकिन आवश्यकता इस बात की भी है कि वह विकास के वैज्ञानिक आधार और तकनीकी के मुद्दे भी उठाएं। एक बड़े ही करीबी मित्र ने मुझसे कहा कि अखिलेश यादव जी ने पर्यावरण विज्ञान में डिग्री हासिल की है लेकिन वह पर्यावरण के बारे में कुछ नहीं बोलते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि वह इस तरह के तकनीकी मुद्दों पर oअपनी बात रखें और इसमें उनको विशेषज्ञों को सहयोग भी अवश्य मिलेगी।

 

साथ ही साथ कुछ अंतर्राष्ट्रीय बातों पर भी उनको अपने विचार प्रकट करने चाहिए और एक गंभीर राजनेता के रुप में अपनी छवि को और अधिक विकसित करने का प्रयास करते रहना चाहिए।

 

कोरोना काल मे सरकार की गलत नीतियों और तमाम तरह के भ्रम के बीच व्यापारी समाज के एक वर्ग ने बहुत गलत भूमिका निभाई है। व्यापारियों का एक बहुत बड़ा वर्ग इस आपदा को पैसे कमाने के अवसर के रुप में देखता रहा और दवाई व तमाम सुविधाओं के लिए हताश लोगों से बहुत अधिक पैसा वसूलता रहा। इसमें ब्लैक मार्केटिंग और होल्डिंग भी शामिल है। इसीतरह प्राइवेट अस्पतालों ने भी बहुत शर्मनाक भूमिका निभाई है। समाजवादी पार्टी को अपने घोषणा पत्र में इन सबके खिलाफ समुचित कार्यवाही करने हेतु आह्वान करना चाहिए जिससे पार्टी को एक बहुत बड़ा जन समर्थन मिलने की राह आसान हो सकती है।

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