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प्रो राम पुनियानी

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नई दिल्ली | मंगलवार | 10 सितम्बर | 2024

पिछले आम चुनाव (अप्रैल-मई 2024) के दौरान जाति जनगणना एक प्रमुख मुद्दा बनी रही। इंडिया गठबंधन ने जाति जनगणना की आवश्यकता पर जोर दिया, जबकि भाजपा ने इसका विरोध किया। इस परिप्रेक्ष्य में, विपक्षी पार्टियों की सोच स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आई है।

जाति का मुद्दा हिन्दू दक्षिणपंथी राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उच्च जातियां निम्न जातियों का शोषण करती रही हैं, और यह महसूस ज्योतिराव फुले और भीमराव आंबेडकर जैसे नेताओं को था। जाति से जनता का ध्यान हटाने के लिए, उच्च जातियों के संगठनों ने भारत के अतीत को महिमामंडित करना शुरू कर दिया। हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा और मनुस्मृति के मूल्य इस एजेंडे के केंद्र में हैं। पिछले कुछ दशकों से, आरएसएस ने यह नैरेटिव बढ़ावा देना शुरू कर दिया है कि सभी जातियां बराबर हैं। संघ से जुड़े लेखकों ने विभिन्न जातियों पर कई किताबें लिखीं, जिनमें कहा गया कि अतीत में सभी जातियों का दर्जा समान था।

आरएसएस के नेता दावा करते हैं कि अछूत जातियां विदेशी आक्रमणकारियों के अत्याचारों के कारण अस्तित्व में आईं, और इससे पहले हिन्दू धर्म में उनका कोई स्थान नहीं था। संघ के कुछ नेताओं ने दलित, आदिवासी और अन्य समूहों के अस्तित्व के लिए मध्यकालीन 'मुस्लिम आक्रमण' को जिम्मेदार ठहराया है। संघ के एक वरिष्ठ नेता भैयाजी जोशी के अनुसार, हिन्दू धर्मग्रंथों में कहीं भी शूद्रों को अछूत नहीं कहा गया है। उनके अनुसार, मध्यकाल में 'इस्लामिक अत्याचारों' के कारण अछूतों की एक नई श्रेणी उभरी। जोशी का कहना है कि विदेशी आक्रमणकारियों ने हिन्दू धर्म को तोड़ने के लिए एक नई जाति बनाई, जो 'चर्म-कर्म' करने के लिए मजबूर थी।

इस दुष्प्रचार का उद्देश्य जाति को ऐसी सकारात्मक संस्था बताना है जो हिन्दू राष्ट्र की रक्षा करती है। जाति जनगणना की मांग के जोर पकड़ने के बीच, आरएसएस के मुखपत्र पाञ्चजन्य ने 5 अगस्त 2024 के अंक में हितेश सरकार का एक लेख प्रकाशित किया, जिसमें यह दावा किया गया कि विदेशी आक्रमणकारी जाति की दीवारों को नहीं तोड़ सके, इसलिए वे हिन्दुओं का धर्मपरिवर्तन नहीं करवा सके। जाति, हिन्दू समाज का एक मुख्य आधार है, और इसके कारण देश सुरक्षित और मजबूत बना रहा।

 

लेख एक नज़र में
जाति जनगणना की मांग के बीच, आरएसएस के मुखपत्र पाञ्चजन्य ने एक लेख प्रकाशित किया जिसमें दावा किया गया कि विदेशी आक्रमणकारी जाति की दीवारों को नहीं तोड़ सके।
लेख में जाति को हिन्दू समाज का एक मुख्य आधार बताया गया है और इसके कारण देश सुरक्षित और मजबूत बना रहा। हालांकि, यह लेख झूठ का पुलिंदा है और जाति प्रथा की तारीफ करता है, जबकि क्रांतिकारी दलित चिंतक और कार्यकर्ता इसे हिन्दू समाज की सबसे बड़ी बुराई मानते हैं।
डॉ. आंबेडकर ने जाति के विनाश की बात की थी। हिन्दू राष्ट्रवादी आनुपातिक प्रतिनिधित्व और जाति जनगणना के पूरी तरह खिलाफ हैं।

 

लेख में बम्बई के पूर्व बिशप लुई जॉर्ज मिल्ने की पुस्तक "मिशन टू हिन्दूस: ए कॉन्ट्रिब्यूशन टू द स्टडी ऑफ़ मिशनरी मेथडस" का उद्धरण दिया गया है। उद्धरण के अनुसार, जाति सामाजिक ढांचे का आवश्यक हिस्सा है और लाखों लोगों के लिए धर्म है। यह किसी व्यक्ति की प्रकृति और धर्म के बीच एक कड़ी का काम करती है।

लेखक के अनुसार, मिशनरी को जो चीज उस समय खल रही थी, वही आज भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को भी खल रही है। कांग्रेस, ईस्ट इंडिया कंपनी और लार्ड ए.ओ. ह्यूम की उत्तराधिकारी है। लेख में यह भी कहा गया है कि आक्रमणकारियों ने जाति के किले को नहीं तोड़ा, इसलिए उन्होंने इज्जतदार जातियों को हाथ से मैला साफ करने के काम में लगाया और यह भी कि उस काल से पहले हाथ से मैला साफ करने की प्रथा का कहीं वर्णन नहीं मिलता।

यह लेख झूठ का पुलिंदा है। पहली बात तो यह कि दूसरी शताब्दी ईस्वी में लिखी गई 'मनुस्मृति' में जाति प्रथा की व्याख्या और उसकी जबरदस्त वकालत की गई है। यह पुस्तक देश में विदेशी आक्रमणकारियों के आने के सैकड़ों साल पहले लिखी गई थी। कई अन्य पवित्र हिन्दू ग्रंथों में भी कहा गया है कि निम्न जातियों के लोगों को उच्च जातियों से दूर रहना चाहिए। यही सोच अछूत प्रथा और हाथ से मैला साफ करने की प्रथा की जननी है।

डॉ. आंबेडकर का मानना था कि जाति प्रथा को ब्राह्मणवाद ने समाज पर लादा है। आरएसएस का मुखपत्र जाति प्रथा की तारीफ करता है, जबकि क्रांतिकारी दलित चिंतक और कार्यकर्ता इसे हिन्दू समाज की सबसे बड़ी बुराई मानते हैं। यही कारण है कि डॉ. आंबेडकर ने जाति के विनाश की बात की थी।

हिन्दू राष्ट्रवादी आनुपातिक प्रतिनिधित्व और जाति जनगणना के पूरी तरह खिलाफ हैं। आनुपातिक प्रतिनिधित्व की शुरुआत गांधीजी और डॉ. आंबेडकर के बीच हस्ताक्षरित पूना पैक्ट से हुई थी और बाद में इसे संविधान का हिस्सा बनाया गया। इसके विरोध में अहमदाबाद में 1980 और फिर 1985 में दंगे हुए। 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने के बाद, राममंदिर आंदोलन अचानक आक्रामक हो गया।

जहां तक कांग्रेस के ईस्ट इंडिया कंपनी और ह्यूम की विरासत की उत्तराधिकारी होने के आरोप का सवाल है, यह झूठ है। ऐसे झूठ केवल वे लोग फैला सकते हैं जो स्वतंत्रता आंदोलन से दूर रहे और भारत को बहुवादी और विविधताओं का सम्मान करने वाले देश के रूप में नहीं देखना चाहते। कांग्रेस ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष किया और आज भी सामाजिक न्याय की दिशा में काम कर रही है।

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