image

के. विक्रम राव

A person wearing glasses and a red shirt

Description automatically generated

नई दिल्ली | सोमवार | 16 सितम्बर 2024

       क्या भारत का इतिहास केवल 75 साल पुराना है ? कल जब मोदी सरकार ने अंडमान-निकोबार द्वीप समूह का नाम बदलकर श्रीविजयपुरम रखा तो यह प्रश्न उठा। मानो युगों तथा सदियों का विवरण सिमट कर अमृत काल के दायरों में ही समा गया हो। नई पीढ़ी को कुछ तथ्य समझने होंगे। पहला यही कि अंडमान द्वीप पर भारत का आधिपत्य स्वीकारने में नेहरू को रुचि नहीं थी। मोहम्मद अली जिन्ना तो वायसराय माउंटबेटन से ड्रस भेंट को पाने की प्रतीक्षा में थे। सरदार वल्लभभाई पटेल ने जिद ठान ली कि भारतीय शहीदों पर हुए जुल्मों का प्रतीक अंडमान स्वाधीनता सेनानियों के राष्ट्र को ही मिले। सर सिरिल रेडक्लिफ जो भारत में कहीं भी गया ही नहीं, ने ठंडे शिमला में शराब के झोंके में भारत को तोड़ डाला, फर्जी मानचित्र बनाकर। मगर पटेल की जिद के कारण अंडमान भारत के हिस्से में ही आया।

       इस वीरता की पुण्यभूमि पर सर्वप्रथम नेताजी सुभाष बोस ने मुक्त कराया। दिल्ली तो बाद में अंग्रेजों से मुक्त हुई। जब जवाहरलाल नेहरु 15 अगस्त 1947 को लाल किले पर स्वतंत्र भारत का परचम फहरा रहे थे, तो उसके चार वर्ष पूर्व ही (29 दिसम्बर 1943) अण्डमान द्वीप की राजधानी पोर्टब्लेयर में सुभाष बोस राष्ट्रीय तिरंगा लहरा चुके थे। इतिहास में भारतभूमि का यह प्रथम आजाद भूभाग था।   

लेख एक नज़र में
अंडमान-निकोबार द्वीप समूह का नाम बदलकर श्रीविजयपुरम रखने के बाद यह प्रश्न उठा। क्या भारत का इतिहास केवल 75 साल पुराना है? नई पीढ़ी को कुछ तथ्य समझने होंगे। अंडमान द्वीप पर भारत का आधिपत्य स्वीकारने में नेहरू को रुचि नहीं थी, लेकिन सरदार वल्लभभाई पटेल ने जिद ठान ली कि भारतीय शहीदों पर हुए जुल्मों का प्रतीक अंडमान स्वाधीनता सेनानियों के राष्ट्र को ही मिले।
नेताजी सुभाष बोस ने मुक्त कराया था अंडमान को सबसे पहले। दिल्ली तो बाद में अंग्रेजों से मुक्त हुई। जब जवाहरलाल नेहरु 15 अगस्त 1947 को लाल किले पर स्वतंत्र भारत का परचम फहरा रहे थे, तो उसके चार वर्ष पूर्व ही (29 दिसम्बर 1943) अण्डमान द्वीप की राजधानी पोर्टब्लेयर में सुभाष बोस राष्ट्रीय तिरंगा लहरा चुके थे। इतिहास में भारतभूमि का यह प्रथम आजाद भूभाग था।
अंडमान निकोबार का महत्व दिया ही नहीं गया है समग्र भारतीय इतिहास में। क्योंकि ब्रिटिश राज सरकार केवल ब्रिटिश भारत को ही देश मानती रही, अतः दक्षिण के समृद्ध साम्राज्य से उत्तर भारतीय छात्र अनभिज्ञ ही रह गया। यही अंडमान का बुनियादी मसला है। तमिलभाषी चोल साम्राज्य जो मुगल राज से कई गुना बड़ा था, उसकी नौसेना का मुख्यालय था अंडमान द्वीप।

    सुभाष ने 09 जनवरी 1944 को रंगून से प्रसारित भाषण में काफी कुछ कहा। वो अंडमान की भारतीय धरती पर तिरंगा फहराने और यहां कदम रखने पर रोमांचित महसूस कर रहे थे। समग्र भारतीय इतिहास जो आम छात्र को पढ़ाया ही नहीं गया में अंडमान निकोबार का महत्व दिया ही नहीं गया है। क्योंकि ब्रिटिश राज सरकार केवल ब्रिटिश भारत को ही देश मानता रहा अतः दक्षिण के समृद्ध साम्राज्य से उत्तर भारतीय छात्र अनभिज्ञ ही रह गया। यही अंडमान का बुनियादी मसला है। तमिलभाषी चोल साम्राज्य जो मुगल राज से कई गुना बड़ा था, उसकी नौसेना का मुख्यालय था अंडमान द्वीप। मशहूर चोल सम्राट राजेंद्र प्रथम (1016 से 44 तक) ने अपना राजा श्रीलंका और हिंदेशिया तक फैलाया था। तब गजनी का डाकू गुजरात तक ही पहुंचा था।

     चोल नरेशों में यह परंपरा थी कि वे अपने उत्तराधिकारियों को जीवन काल प्रयत्न सहयोगी बनाकर रखते थे। राजराज प्रथम (985 से 1016 ई॰) संपूर्ण मद्रास, मैसूर, कुर्ग और सिंहलद्वीप (श्रीलंका) को अपने अधीन करके पूरे दक्षिणी भारत का सर्वशक्तिमान एकछत्र सम्राट बन गया। उसने अपनी राजधानी तंजोर में भगवान शिव का राज राजेश्वर नामक मंदिर बनवाया जो आज भी उसकी महानता की सूचना देता है। उसने बंगाल और बिहार के शासक महिपाल से युद्ध किया। उसकी सेनाएँ कलिंग पार करके उड़ीसा, दक्षिण कोसल, बंगाल और मगध होती हुई गंगा तक पहुंचीं थी।

         अब उत्तरभारतीय छात्र जिसका ज्ञान सिमटा हो को समूचा इतिहास पढ़ना चाहिए यह जानने हेतु कि अंडमान निकोबार का भूभाग सदियों पूर्व हिंदू था।

  • Share: