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आज का संस्करण

नई दिल्ली, 24 जनवरी 2024

विद्या भूषण रावत

A person in a yellow shirt

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योध्या शहर में 22 जनवरी को राम मंदिर का उद्घाटन हो गया और स्वाभाविक रूप से भक्तों के बीच उत्साह है। अयोध्या का छोटा-सा शहर अपनी विविध बहुल संस्कृति और महान सांस्कृतिक विरासत के कारण मुझे हमेशा आकर्षित करता रहा है। बेशक, अयोध्या सीधे राम और उनके राज्य की कहानियों से जुड़ा हुआ है लेकिन अयोध्या सही मायनों में सहिष्णु और विवेकवादी विरासत का केंद्र भी रहा है।

 उत्तर प्रदेश में, वाराणसी के अलावा, अयोध्या एक और शहर है जहां नदी आश्चर्यजनक दिखती है, उसका तट विशालकाय है लेकिन किसी कारण से इसे उतना महत्व नहीं मिला जितना मिलना चाहिए था और ये है अयोध्या से गुजरने वाली सरयू नदी। सरयू के बिना अयोध्या अधूरी है और नदी का तट सुंदर है, लेकिन सरयू की ऐसी स्थिति बना दी गई मानो वो कोई नदी थी ही नहीं और केवल धर्मग्रंथों मे ही थी। लोगों को लगा कि घाघरा को सरयू बताया जा रहा है हालांकि ऐसा कहने वाले खुद ही नहीं जानते कि जिसे घाघरा कहा जाता है वो बहराइच के घाघरा बैराज से ही बनती है और असल नदी जो नेपाल से आती है वो कर्णाली है जो भारत प्रवेश मे दो हिस्सों मे होती है जिन्हे गिरुआ और कुड़ियाला कहा जाता है।

 

क्या सरयू को जानबूझकर उसका ऐतिहासिक पौराणिक हक नहीं मिला जिसकी वो हकदार दी और क्या यह इसलिए किया गया क्योंकि उसका दोहन करना था।

 

सरयू बिना अयोध्या का अस्तित्व नहीं

 

ये समझना जरूरी है कि सरयू के बिना अयोध्या का कोई अस्तित्व नहीं और उसके लिए यहा काल्पनिक सरयू नहीं अपितु असल सरयू को पुनः प्राप्त करना ऐ जो उत्तराखंड में कुमाऊं क्षेत्र के खूबसूरत जंगलों से निकलती है और एक मिथ नहीं हकीकत है। उसके अस्तित्व को मिटाने की ऐतिहासिक भूल का सुधार करना जरूरी है। ऐतिहासिक गलती मूल रूप से इस तथ्य में है कि कुछ साल पहले तक कई लोग सरयू नदी को एक मिथक मानते थे और जो कुछ भी अयोध्या शहर में दिखाई देता था वह मूल रूप से धार्मिक उद्देश्यों के लिए घाघरा नदी को अयोध्या से गुजरते समय सरयू कहा जाता था। लेकिन ये समझना ही भूल है कि सरयू केवल अयोध्या मे पैदा कर दी गई और ऐसी कोई नदी नहीं है। इस तथ्य को भौगोलिक दृष्टि से समझना महत्वपूर्ण है जो स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि नदी एक मिथक नहीं बल्कि एक वास्तविकता है हालांकि जमीनी स्तर पर काम के अभाव में या अज्ञानता के कारण शायद यह पता लगाने का प्रयास नहीं किया गया कि सरयू कहां से निकल रही है, या उसे उत्तराखंड के एक क्षेत्र की स्थानीयता मे ढाल दिया गया।(शब्द 455)

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