ओम उल्लाय नमः।
हमaरा देश कृषि प्रधान देश होने के साथ -साथ-उल्लू प्रधान देश भी है। सच कहें तो लक्ष्मी पुत्रों के चाल-चलन के चलते हिन्दुस्तान ही अकेला ऐसा देश है जिसमें लक्ष्मी के साथ-साथ उल्लू की भी पूजा की जाती है।
लक्ष्मी की कृपा दृष्टि पाने के लिए बड़े से बड़ा आदमी उल्लू बनने की होड़ में लगा रहता है। वैसे उल्लू और नेता में कोई फर्क नहीं है। दोंनो ही लक्ष्मी के कृपा पात्र हैं। दोनों ही लक्ष्मी की सेवा के लिए आतुर रहते हैं। उल्लुओं के संरक्षक विश्वनाथ प्रताप ने भी कहा था- सामने है झूलती हुई पेड़ की डाल। और दूसरी ओर है कठुवाई हुई काठ की कुर्सी। फर्क सिर्फ इतना है वहां पर वह (उल्लू) है और यहां मै !
इसे आत्म-स्वीति समझे या आत्म व्याख्या। उल्लू पर लक्ष्मी बैठती हैं और कुर्सी पर नेता। इस आश्वस्ति के साथ कि लक्ष्मी उसी पर बैठेगी। चाहे उल्लू हो या नेता दोनों ही एक दूसरे के पर्याय हैं। उल्लू को निशाचर बताया गया है। नेता 'भी ब्लैक मनी को अंधेरे में ही सफेद करने की जुगत में लगे रहते है। उल्लूपने की इसी भारतीय परम्परा का निर्वाहन करते हुए पूरा नेता समाज अपने-अपने स्तर से अपना उल्लू सीधा करने के प्रयास में लगा रहता है।
मजे की बात यह है कि उल्लू को अपने आपको उल्लू मानने में भले ही परहेज न हो लेकिन नेता कभी भी अपने को उल्लू नहीं मानता। वह सदा दूसरों को ही उल्लू बनाता रहता है। जो स्वयं को समझ जाता है वह उल्लू नहीं रहता। देश की कुल आबादी की यदि गिनती कराई जाए तो पंचानवे करोड़ से ज्यादा ही उल्लू निकलेंगे क्योंकि हर आदमी दूसरे को उल्लू समझता है। राजनेता उल्लुओं से ज्यादा चतुर होता है। वह पांच साल में एक बार ही उल्लूपने की भूमिका निभाता है और फिर उसके बाद पूरे पांच साल तक जनता को उल्लू बनाता रहता है।
उल्लू निःस्पृह होता है। नेता मतलबी । उल्लू पुराण में उल्लुओं को बेहद संयमी माना गया है। गीता में भी उसके संयम का गुणगान किया गया है- या निशा सर्व भूतानाम तस्या जागृति संयमी। यस्या जागृति भूतानि सा निशा पश्चयते जुने। जब रात में सभी प्राणी सोते हैं, उल्लू उस समय भी जागता है। जब सब लोग जागते हैं तब उल्लू अपनी डाल पर सोता है।
नेताओं की नींद सिर्फ चुनाव में टूटती है और फिर पूरे पांच साल किसी को भी दिखाई नहीं देते। वह अपनी आंखे बन्द किए रहते है। उल्लू रूपी नेताओं का अनुकरण करने वाले भी इसी उल्लूपने में लगे रहते हैं। भले ही वे इस तथ्य को आज तक नहीं मान पाए कि सभी उल्लू हैं।
नेता जानते है कि घोटाले दिन-दहाड़े नहीं होते। लक्ष्मी का आवागमन भी रात में होता है इसलिए वह भी उल्लुओं तरह हाथ पांव मारते है। इसलिए नेता उल्लुओं का अनुकरण करते हुए तीक्ष्मी को नही छोड़ते है और न ही नेताओं को लक्ष्मी छोड़ती है। नेता कुर्सीपरस्त होता है। बुद्धिमान होता है पर विद्वान की ओर लक्ष्मी पीठ किये रहती है। विद्वान आम आदमी होता है।
नेता और आम आदमी में मतगत दूरी बोती है। दोनों एक दूसरे से चिढ़ते हैं। नेता सिर्फ अपने मतलब के लिए आम आदमी से मत हथियाने के लिए सम्बन्ध बनाता है और मतलब निकल जाने के बाद देखता तक नहीं है। (शब्द 560)
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