image

आज का संस्करण

नई दिल्ली, 28 फरवरी 2024

 

बैठे-ठाले

 

बैठे ठाले भी नहीं,

 लेने देंगे चैन .

पैरों तले जमीन है,

 जनता भी बेचैन .

 

राजनीतिकेभोज की,

अजब अनोखी रीति?

आश्वासन के बांस पर ,

टँगी है हड़िया नीति.

 

पैर पीठ से जा लगे,

 दुखती सबकी दाढ़.

 खिचड़ी खुदबुद पक रही,

सबकी किस्मत गाढ़ .

 

शासन हो कि विरोध हो,

चलते सब हैं गोट,

 आगे पीछे के लिये,

बड़ी सुहानी ओट .

 

पहले इनको दीजिए,

मंगा कहीं से बुद्धि.

 तब फिर आशा कीजिए,

  आयेगी सद्बुद्धि .

 

नेता हैं सब काठ के,

नहीं किसी में जोर,

 कठपुतली से डोलते,

खिंचती जिसकी डोर.

---------------

-अनूप श्रीवास्तव

 

  • Share: