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आज का संस्करण

नई दिल्ली, 11 जनवरी 2024

सलीम ख़ान

क्कीसवें शतक में जब अत्याचार के ख़िलाफ़ संघर्ष का इतिहास लिखा जाएगा तो उसमें बिल्क़ीस बानो का नाम सुनहरे अक्षरों में  होगा।  वह वर्ष २००२ के गोधरा कांड के बाद हुई मुस्लीम विरोधी हिंसा में गर्भवती होने के बावजूद भगवा दरिंदों के सामूहिक बलात्कार का शिकार हो गई  थी और उनके परिवार में अधिकतर लोगों को मार दिया गया था l

बिल्क़ीस बानो   इसके बावजूद  डरी नहीं। वह निराश या मायूस भी नहीं हुई । वह एक ऐसे संवेदनशून्य प्रशासन के सामने खड़ी रही जिसके लिए अल्पसंखयो के विरुद्ध अपराध कोई बड़ी बात नहीं थी और जो संजीव भट्ट जैसे न्यायसंगत अधिकारी को जेल भेजने में संकोच नहीं करता था। उस शासन के ख़िलाफ़ संघर्षरत होकर वह अबला नारी अपने परिवारजनों के हत्यारों को जेल भेजने में कामयाब हो गई। सरकार ने आगे च लकर वर्ष २००२ में उस महिला के ज़ख़्मों पर नमक छिड़कने के लिए क़ातिलों को न केवल छोड दिया बल्कि उनका महिमामंडन भी करवाया, मगर इस निन्दनीय हरकत के ख़िलाफ़ फिर से वह मैदाने में उतरी और उनकी रिहाई को रद्द करवा दिया।

राज्य सरकार ने कहा था कि उसने उन अपराधियों की जल्द रिहाई का फ़ैसला किया है क्योंकि “उन्होंने 14 साल से ज़्यादा उम्र की क़ैद पूरी कर ली थी और उनका जेल में व्यवहार ‘अच्छा’ पाया गया था।” हालाँकि उनमें से एक ने पेरोल के दौरान भी बलात्कार की कोशिश की थी और उसपर मुक़द्दमा भी दर्ज हुआ था, ल्क़ीस बानो केस का सबसे चौंकानेवाला पहलू यह था कि जो सरकारी एजेंसियाँ सरकार की कठपुतली बनी हुई हैं उन लोगों ने भी अपनी परम्परा से हटकर और ख़तरा मोल लेकर सरकार की मंशा और रिहाई का विरोध किया था।

अदाणी को मिलनेवाली क्लीनचिट के बाद मोदी सरकार का ख़याल था कि अब न्यायपालिका भी उसकी गोदी में आ चुकी है, मगर इस फ़ैसले ने उनको धूल चटा दी। केन्द्र सरकार इस अपमान से अपना पल्ला नहीं झाड़ सकती क्योंकि 19 अक्तूबर 2022 को उनकी अपनी राज्य सरकार ने सुप्रीमकोर्ट के अंदर दस्तावेज़ात पेश करते हुए बताया था कि प्रधानमंत्री मोदी के सहयोगी अमित शाह के नेतृत्व में केन्द्रीय गृहमंत्रालय ने अपराधियों की फ़ास्टट्रैक रिहाई को मंज़ूरी दे दी थी।

बिल्क़ीस बानो के परिवारवालों पर ज़ुल्मो-सितम का पहाड़ तोड़नेवालों की रिहाई के बाद इस धरती के ज़ालिमों ने सोचा कि अब उन्हें अपनी मन-मानी करने की खुली छूट मिल गई है। सुप्रीमकोर्ट के इस फ़ैसले ने ऐसे तमाम लोगों को बड़ा झटका दिया, लेकिन यह इसी लिए मुम्किन हो सका क्योकि बिल्क़ीस बानो ने न्यायालय के व्दार पर दस्तक दी। वह अगर मायूस होकर घर बैठी रहती तो इंसाफ़ की किरण ख़ुद चलकर उसके पास कभी नहीं आती। बिल्क़ीस बानो ने यह सिध्द कर दिया कि इस दुनिया में सफलता वही लोग पाते हैं जो अंजाम की परवाह किए बिना आगे बढते चले जाते हैं।

राज्य सरकार के दस्तावेज़ात के अनुसार सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन (सीबीआई) ने एक वर्ष पूर्व इन क़ैदियों की रिहाई का विरोध किया था। इसके अलावा पुलिस, सिविल जज और सेशन कोर्ट ने भी इस रिहाई के विरोधी थे। इन लोगों की इस बात पर सहमति थी कि यह लोग ‘घिनौने, गंभीर और निकृष्टतम’ अपराधों में लिप्त पाए गए थे। एक विशेष अदालत के जज ने यहाँ तक कहा था कि यह नफ़रत पर आधारित अपराध की सबसे भयानक शक्ल है। इस मामले में छोटे बच्चों को भी नहीं बख़्शा गया था। इसके बावजूद केन्द्र सरकार ने न केवल रिहाई का आग्रह किया, बल्कि राज्य सरकार की तरफ़ से अपराधियों को रिहा करने की आवेदन को  चुनाव में इसका फ़ायदा उठाने की ख़ातिर दो सप्ताह के भीतर स्वीकृति दे दी।

सुप्रीमकोर्ट के इस फ़ैसले पर न मिटनेवाला कलंक लगा दिया। जस्टिस नागार्थना ने कहा कि सज़ा इसलिए दी जाती है ताकि भविष्य में अपराध को रोका जा सके। अपराधी को सुधरने का मौक़ा दिया जाता है, लेकिन पीड़ित के दुख का भी एहसास होना चाहिए। ये ऐसे लोग हैं जो दूसरों को दुख देकर ख़ुश होते हैं। उन्होंने कहा 13 मई 2022 को सुप्रीमकोर्ट में गुजरात सरकार ने तथ्यों को छिपाने का अपराध किया था। यह धोखाधड़ी का कृत्य है। हाईकोर्ट और लोअर कोर्ट ने अपराधियों की रिहाई के ख़िलाफ़ जो कमेंट किए उन्हें भी छिपाया गया। यह पूरा मामला गुजरात सरकार के अधिकारों के अधीन ही नहीं था। इसलिए सुप्रीमकोर्ट ने सारे 11 अपराधियों की रिहाई के फ़ैसले और गुजरात सरकार के आदेश को निरस्त कर दिया।

जस्टिस नागार्थना ने यह भी कहा कि हर महिला मान सम्मान की हक़दार है। चाहे वह समाज में कितनी ही ऊँची या नीची क्यों न हो।

बिल्क़ीस बानो ने यह संदेश दिया है कि परिस्थिती कितनी भी विकट क्यों न हों इंसान को सफलता-असफलता के से बेपरवाह होकर कर्तव्य और संघर्ष के रस्ते पर चलना चाहिए।

भारतीय जनता पार्टी की सबसे बड़ी कामयाबी यह नहीं है कि वह बरसों से गुजरात में राज कर रही है या पिछले दस सालों से केन्द्र की सत्ता पर क़ाबिज़ है। बीजेपी की विशेषता यह है कि उसने देश के अंदर न्यायसंगत समाज को निराश कर दिया। उन्हें यह जता दिया गया कि अब इस देश में इंसाफ़ का चिराग़ कभी भी नहीं जलेगा। इस निराशा ने उनका उत्साह समाप्त करके उन की संघर्षशक्ति छीन ली। वे सोचने लगे चूँकि अब कुछ हो नहीं सकता इसलिए व्यर्थ प्रयास क्यों किया जाए। शायद वह ये चाहते हैं कि सब लोग उनकी तरह निराशा का शिकार होकर न्याय के लिए लड़ना छोड़ दें, लेकिन बिल्क़ीस बानो ने इस षडयंत्र को ख़ाक में मिला कर साबित कर दिया कि एक चिड़िया भी बाज़ को झुकने पर मजबूर कर सकती है।

भारतीय जनता पार्टी का हर क़दम किसी न किसी राजनैतिक लाभ की प्राप्ति के उठाया जाता है। गुजरात के राज्य चुवावों से पहले यह फ़ैसला करवाया गया और इसका ख़ूब प्रचार किया गया। अब सुप्रीमकोर्ट ने बाज़ी पलट दी है। लोक सभा चुनाव में बीजेपी को इसका जवाब देना भारी पड़ेगा ।

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