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आज का संस्करण

नई दिल्ली, 15 फरवरी 2024

मुकेश नेमा

जीवित रहने के लिए प्रेम दाल रोटी ,हवा पानी जैसी ज़रूरी चीज।सो प्रकृति ने यह सुनिश्चित किया कि उसके बनाए सारे ही नर मादाओं में सदृश्यता को दृष्टिगत रखते हुए परस्पर प्रेम हो।यह कभी न कभी सभी को होता है।किसे ,कब ,क्यों और किससे हो जाए इसका कोई ठिकाना नही।प्रेम न हो तो कर लेना चाहिए।जो मिले उससे कर लेना चाहिए।सब करते हैं और जो ऐसा नहीं कर पाता उसकी क़िस्मत के फूटी होने बाबत किसी को शक नहीं करना चाहिए। 

प्रेम सब करते है।सबने किया है।पर अब सबकी बात तो की नही जा सकती ,ऐसे में कुछ नामी शख़्सियतों की ही चर्चा की जाए आज। सो हमारे बाबा तुलसीदास से ही कथा का प्रारंभ किया जाए। इन्होंने गौरवशाली भारतीय संस्कृति के अनुसरण में अपनी ही पत्नी से प्रेम किया।ऐसा किया कि पत्नी के मायके जाने पर ,किसी मुर्दे की अकड़ी लाश को नाव बनाकर बाढ़ से उफनती नदी पार की।पत्नी की खिड़की से लटकते साँप को रस्सी समझ कर उसके सहारे चढ़े,और फिर पत्नी की फटकार सुनी और फटकार के प्रभाव से ही रामकथा रच पाए।तुलसी रत्नावली का यह प्रेम प्रसंग बताता है हमें कि अपनी ही पत्नी से प्रेम करना नितांत आध्यात्मिक और सात्विक प्रकार की क्रिया है जो आपको मोक्ष का अधिकारी बना सकती है ,इसके अतिरिक्त यदि प्रेम डाँट फटकार पर उतारू हो जाए तो नाराज बंदा ,बैरागी होकर धर्म और भक्तों का भी भला कर सकता है। 

बीमार होना भी प्रेम का मार्ग प्रशस्त करता है बहुत बार।क़रीब सौ साल पहले कविवर रवींद्रनाथ टैगोर यूरोप जाकर बीमार हुए। अर्जेंटीना की चौतीस साल की लेखिका विक्टोरिया ओकैंपो ने तैसठ साल के इस अद्भुत कवि की तीमरदारी की। इतिहासकार इस बात पर एकमत नहीं कि टैगोर सच में बीमार थे या विक्टोरिया को देख कर बीमार हो गये। पर यह बात तय कि कविवर अपनी इस विदुषी और सुंदर परिचारिका पर मोहित हुए। विक्टोरिया पर ढेरों कविताएँ रची उन्होंने और बदले में विक्टोरिया ने उनकी बनाई पेंटिंग्स की पेरिस में प्रदर्शनी लगवाने का इंतज़ाम किया।यह क़िस्सा यह भी बताता है कि मौक़ा मिल जाए तो प्रेम ,ज्ञान बाँटने से परहेज़ नहीं करता और एक दूसरे की पीठ खुजाना भी याद रखता है।

अमेरिका के पैतीसवे राष्ट्रपति जॉन फिटजेराल्ड कैनेडी अपने देश और देशवासी खूबसूरत महिलाओं के दिलों पर एक साथ राज करते थे। महिलाएँ खुद-बखुद उनके पास पहुंच जाती थीं इसलिए वे निरंतर प्रेम करते रहे।उनके प्रेम प्रसंगों से कुछ कहानियां तो इतनी मशहूर  हुई कि उन पर किताबें लिखी गईं और फिल्में भी बनीं। कैनेडी ने प्रेम बाबत इस परंपरागत अंधविश्वास को दूर किया कि किसी एक से ही प्रेम हो सकता है। उन्होंने जब भी किया सच्चा प्रेम किया। वे उदार थे। ऐसे में अपनी पत्नी के अलावा ,दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत मर्लिन मनरो सहित जितनी भी औरतें उनके सम्पर्क में आई ,उन्होंने उससे प्रेम किया। और तब तक करते रहे जब तक उन्हें गोली नहीं मार दी गई। कैनेडी की करनियों से हम यह सीख सकते हैं कि आपके पास कितनी भी ज़रूरी ज़िम्मेदारी हो प्रेम को वक्त देना चाहिए और सबसे पहले देना चाहिए।और ऐसा करते वक्त यदि गोलीबारी की नौबत भी आ जाए तो डरना नहीं चाहिए।

नेहरू जी पर आखरी वाईसराय माऊंटबेटन की बीबी एडविना मोहित हुई।अपने पति और बेटी को विधिवत सूचित कर हुईं।एडविना की बेटी ने पामेला ने लिखा है ,मेरी माँ अकेलेपन की शिकार थीं. तभी उनकी मुलाक़ात एक ऐसे शख़्स से हुई जो संवेदनशील, आकर्षक, सुसंस्कृत और बेहद मनमोहक था। शायद यही वजह थी कि वो उनके प्यार में डूब गई। नेहरू जी तो बाद में राज काज में लग गए पर एडविना फिर डूबी ही रही। और जब तक ज़िंदा रही भारत के आज़ाद होने पर अफ़सोस करती रही। 

हिटलर जैसा पत्थरदिल इंसान के मन में भी प्रेम का सोता फूटा। इसके लिए जिम्मेदार हुई ईवा ब्राऊन। हिटलर ने सत्रह साल की इवा से मरने के अड़तालीस घंटे पहले ब्याह किया ,इसलिये किया ताकि उसे अपनी पत्नी के अंतिम संस्कार का ,अंतिम अवस्था में पहुँचाने का क़ानूनी हक़ मिल सके। शादी के फ़ौरन बाद उसने खुद को गोली मारने के पहले ईवा को ज़हर दे दिया। इसलिए दिया ताकि उसकी विधवा को इस निर्दयी दुनिया में अकेले गुज़ारा न करना पड़े। 

ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया को जिसने अपने प्रेम पाश में बांधा ,वह उनका मामूली नौकर अब्दुल करीम था। साठ साल की रानी विक्टोरिया को चौबीस साल के इस हिंदुस्तानी ने अपना दीवाना बनाया। रानी ने उसे चुम्मी के निशान जड़े लव प्रेम पत्र लिखे। उसे अपने प्रेमी के पद पर आधिकारिक नियुक्ति दी और अकूत जायदाद से नवाज़ा। अब्दुल करीम ही वो शख़्स थे जो सच्चे अर्थों में अंग्रेजों के बापू हुए। उनके इस साहस के कारण ही अंग्रेजों का मनोबल टूटा और वो हिंदुस्तान को आज़ाद करने के लिए मजबूर हुए। ऐसे में उन्हें पहला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मानते हुए भारत रत्न दिए जाने पर विचार होना चाहिए। 

साहिर अमृता और इमरोज की प्रेमकथा मे इमरोज बाँटो के साथ पासंग वाली स्थिति में थे।इमरोज जीवन भर अमृता को सुबह चाय बना कर पिलाने के बाद अपने स्कूटर पर घुमाते रहे और वो उनकी पीठ पर साहिर का नाम लिखती रही।साहिर खुश ही हुए होंगे ऐसे में।यह कथा बताती है की प्रेम ,प्रेमी को अच्छी चाय बनाने के अलावा दिल पर पत्थर रखना भी सिखाता है और प्रेम के भ्रम का जायका भी प्रेम जितना ही स्वाद दे सकता है।

और भी ढेरों क़िस्से हैं ऐसे। सब को बयान करना नामुमकिन। पर सारे क़िस्सों का लब्बो लुआब एक ही। प्रेम परवाह नहीं करता। जब होता है तो पद ,प्रतिष्ठा ,नाम सब धरे रह जाते है । होना हो तो होकर रहता है। तक़दीर वालों को एक से ज़्यादा बार होता है। होता ही रहता है। ऐसे में वो अभागे जिन्हें ये नहीं हो पाता वो ही इसे दूसरे वाहियात क़िस्म के नाम देते है। सच्ची बात तो ये कि ,ये जब भी हो ,जितनी बार भी हो उसे प्रेम के नाम से ही पुकारा जाना चाहिए।

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