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वाल्मीकि का जीवन परिवर्तन: डाकू से महर्षि बनने की प्रेरणादायक कहानी

प्रशांत गौतम

A person in a suit

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नई दिल्ली | गुरुवार | 17 अक्टूबर 2024

हर्षि वाल्मीकि जयंती हर वर्ष 17 अक्टूबर को मनाई जाती है। जो संस्कृत साहित्य के महान ऋषि और 'रामायण' के रचयिता थे। उन्हें 'आदि कवि' के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि उनकी रचना 'रामायण' को विश्व की सबसे पहली कविता माना जाता है। उनकी अमर काव्य रचना न केवल भारतीय संस्कृति का हिस्सा है बल्कि संपूर्ण विश्व में उनकी विद्वता की मिसाल के रूप में देखी जाती है।

महर्षि वाल्मीकि का जन्म त्रेतायुग में हुआ था। हालांकि उनके प्रारंभिक जीवन के बारे में कई कथाएँ हैं, लेकिन सबसे प्रसिद्ध कथा यह है कि वे पहले 'रत्नाकर' नाम के एक डाकू थे। उनका जीवन पाप की दलदल में फंसा हुआ था, लेकिन एक साधु के आशीर्वाद और ध्यान के मार्गदर्शन से उन्होंने सत्य के मार्ग को अपनाया। ध्यान और तप के माध्यम से, वे महर्षि वाल्मीकि बन गए। उनके जीवन में आया यह परिवर्तन यह संदेश देता है कि व्यक्ति अपने कर्मों को बदलकर सद्मार्ग पर चल सकता है।

महर्षि वाल्मीकि को सबसे ज्यादा उनके महान ग्रंथ 'रामायण' के लिए जाना जाता है। 'रामायण' संस्कृत में लिखी गई एक महाकाव्य है, जिसमें भगवान श्रीराम के जीवन का विस्तार से वर्णन किया गया है। इस ग्रंथ में 24,000 श्लोक, 500 सर्ग और 7 कांड हैं। महर्षि वाल्मीकि ने 'रामायण' के माध्यम से सत्य, धर्म, और आदर्शों की शिक्षा दी है। इस महाकाव्य में भगवान श्रीराम के जीवन के आदर्शों, उनके संघर्षों और कर्तव्यों का वर्णन किया गया है, जो आज भी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

महर्षि वाल्मीकि जयंती केवल उनके जन्मदिवस को मनाने का दिन नहीं है, बल्कि यह उस ज्ञान, शिक्षा और आदर्शों को याद करने का दिन है जो उन्होंने समाज को दिया। महर्षि वाल्मीकि ने समानता, भाईचारा और समर्पण का संदेश दिया था। वे समाज में समरसता और एकता का प्रतीक माने जाते हैं। उनके आदर्श और विचार हमें समाज में भाईचारा और समानता को बनाए रखने की प्रेरणा देते हैं।

महर्षि वाल्मीकि ने 'रामायण' के माध्यम से हमें कई आदर्श और शिक्षा दी हैं, जिनका पालन आज भी समाज में किया जाता है। उनके अनुसार, सत्य और धर्म के मार्ग पर चलना ही सच्ची भक्ति है। उन्होंने सिखाया कि प्रत्येक व्यक्ति में परिवर्तन की क्षमता होती है, और व्यक्ति अपने कर्मों से महान बन सकता है। उनकी शिक्षा यह भी है कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और कभी भी कठिनाइयों से घबराना नहीं चाहिए। महर्षि वाल्मीकि के ये आदर्श आज के समाज में भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके समय में थे।

वाल्मीकि जयंती के दिन देशभर में विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस दिन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और महर्षि वाल्मीकि की शिक्षाओं पर प्रवचन दिए जाते हैं। लोग उनके जीवन और कृतित्व को याद करते हुए शोभायात्रा निकालते हैं और समाज में उनके योगदान का स्मरण करते हैं। इस दिन विशेष रूप से वाल्मीकि मंदिरों में भजन-कीर्तन और प्रवचन का आयोजन होता है, जहां उनके आदर्शों और शिक्षाओं पर चर्चा की जाती है। उनके अनुयायी इस दिन को उनके आदर्शों का पालन करने का संकल्प लेते हैं।

आज के समाज में, जब लोग भेदभाव, असमानता और अज्ञानता से जूझ रहे हैं, महर्षि वाल्मीकि के विचार और आदर्श अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं। उन्होंने सिखाया कि मनुष्य अपने कर्मों से महान बनता है, जाति या धर्म से नहीं। उनके जीवन से हमें यह सीख मिलती है कि आत्म-सुधार और भक्ति के मार्ग पर चलकर हम जीवन में महानता प्राप्त कर सकते हैं। उनके आदर्श हमें समाज में समानता, सद्भावना और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करते हैं।

महर्षि वाल्मीकि जयंती हमें उनकी महानता, विद्वता और उनके द्वारा दी गई शिक्षाओं को याद करने का अवसर प्रदान करती है। महर्षि वाल्मीकि का जीवन और उनके आदर्श हमें बताते हैं कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी हम सही मार्ग पर चलकर महान कार्य कर सकते हैं। उनके द्वारा रचित 'रामायण' हमें जीवन के हर पहलू में मार्गदर्शन प्रदान करती है और हमें सच्चे धर्म और कर्तव्य का पाठ पढ़ाती है। इस जयंती पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम महर्षि वाल्मीकि के आदर्शों का पालन करेंगे और समाज में भाईचारे, समानता और प्रेम का संदेश फैलाएंगे।

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