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डॉ॰ सलीम ख़ान

A person with a beard and glasses

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मुंबई | गुरुवार | 25 जुलाई 2024

कांवड़ यात्रा के दौरान समाज में नफ़रत फैलाकर अपनी लोकप्रियता बढ़ाने का प्रयास योगी आदित्यनाथ सरकार को महंगा पड़ा। सुप्रीम कोर्ट ने योगी के आदेश पर  रोक लगा कर उस पर  बुलडोज़र चला दी। केंद्र सरकार के लिए यह फैसला नुकसानदेह था, इसलिए सुप्रीमकोर्ट ने राज्य सरकारों को नोटिस देकर  तारीख़ देने के बजाय काँवड़ यात्रा के रास्ते पर ढाबों, दुकानों और ठेलेवालों को अपना नाम लिखनेवाले यूपी और उत्तराखंड सरकार के आदेशपत्र पर अन्तरिम रोक लगा दी। इससे एनडीए में शामिल पार्टियों में नाराजगी फैल गई थी, जिसके कारण अदालत को मामला तत्काल सुलझाने का इशारा मिला और अगली सुनवाई तक रोक लगा दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने स्वःप्रेरणा से हस्तक्षेप करते हुए अंतरिम रोक लगाई और अगले सुनवाई (26 जुलाई) तक दुकानदारों और कर्मचारियों पर नाम लिखवाने का दबाव न डालने के आदेश दिए। जमाअते-इस्लामी हिंद की असोसिएशन फ़ॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ सिविल राइट्स (एपीसीआर) को सुप्रीम कोर्ट में मिली कामयाबी के लिए बधाई की पात्र है।

योगी सरकार को यह झन्नाटेदार तमाचा इसलिए लगा, क्योंकि उसने मुज़फ्फरनगर पुलिस द्वारा लागू किए गए अन्यायपूर्ण आदेश को विरोध के बाद वापस लेने के बजाय पूरे राज्य पर लागू कर दिया था। उसके बाद यह मुसीबत उत्तराखंड से होती हुई उज्जैन तक पहुँच गई और आदेश का दायरा होटल, ढाबों से फैलकर खाने-पीने की चीज़ों और फलों, बल्कि पंक्चर तक पहुँच गया। कांवड़ यात्री पैदल चलते हैं, इसलिए उनके लिए टायर का पंक्चर होना निरर्थक है। यदि किसी के पहिये में सुराख़ हो जाएगा तो वह सबसे पहली दुकान पर रुककर उसे बनवाएगा। दुकान के मालिक का नाम देखकर अगली दुकान पर जाने की ज़रूरत नहीं होगी।

 

लेख एक नज़र में
योगी आदित्यनाथ सरकार के लिए कांवड़ यात्रा के दौरान समाज में नफ़रत फैलाने का प्रयास महंगा पड़ा है। सुप्रीम कोर्ट ने योगी के आदेश पर  रोक लगा कर उस पर  बुलडोज़र चला दी। केंद्र सरकार के लिए यह फैसला नुकसानदेह था, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को नोटिस देकर कांवड़ यात्रा के रास्ते पर ढाबों, दुकानों और ठेलेवालों को अपना नाम लिखवाने के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी।

योगी सरकार ने मुज़फ्फरनगर पुलिस द्वारा लागू किए गए अन्यायपूर्ण आदेश को विरोध के बाद वापस लेने के बजाय पूरे राज्य पर लागू कर दिया था। इससे मुसीबत उत्तराखंड से होती हुई उज्जैन तक पहुँच गई और आदेश का दायरा होटल, ढाबों से फैलकर खाने-पीने की चीज़ों और फलों, बल्कि पंक्चर तक पहुँच गया।

कांवड़ियों ने मुज़फ्फरनगर में मारपीट करके अपनी आस्था के साथ अपने चरित्र एवं आचरण का भी 'आदर्श' पेश कर दिया। पुलिस ने दंगाइयों पर कार्रवाई करने के बजाय उन्हें समझाने-बुझाने लगे, ताकि मामला रफा-दफा किया जा सके। लेकिन सवाल यह है कि जो गाड़ी उन्होंने तोड़ी और जो दुकान उन्होंने तबाह की, तथा जिन लोगों को उन्होंने मारा-पीटा, उन्हें इंसाफ़ कैसे मिलेगा?

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इस आदेशपत्र के पीछे दो तर्क दिए गए। पहला, कांवड़ियों की धार्मिक आस्था का सम्मान करना और दूसरा, उन्हें सुरक्षा प्रदान करके शान्तिपूर्ण वातावरण बनाए रखना। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस भट्टी ने भी कहा कि आदेश से पहले मुसाफ़िरों की सुरक्षा का भी ख़याल रखा गया होगा। उनकी मुराद कांवड़िये होंगे, मगर सुनवाई के दिन कांवड़ियों के दंगा-फसाद ने बता दिया कि ख़तरा किसको किससे है। योगी सरकार और ज़िला पुलिस द्वारा तमाम-तर नाज़-नखरे उठाए जाने के बावजूद मुज़फ्फरनगर ही में कांवड़ियों ने मारपीट करके अपनी आस्था के साथ अपने चरित्र एवं आचरण का भी 'आदर्श' पेश कर दिया।

छप्पर थाना क्षेत्र में नेशनल हाईवे 58 पर कांवड़ियों ने यह आरोप लगाकर कि एक कार से टकराने की वजह से कांवड़ टूट गया है, गाड़ी को तोड़-फोड़ दिया। कांवड़ियों के अनुसार यह दुखद घटना डेढ़ किलोमीटर पीछे हुई। इसके बावजूद यात्रा का यह चमत्कार देखें कि पैदल चलने वालों ने दो किलोमीटर आगे जाकर गाड़ी को पकड़ लिया। खुद को मुसीबत में घिरा देखकर बेचारा ड्राइवर अब्दुल के होटल में नहीं, लक्ष्मी ढाबे में घुस गया। उसे उम्मीद रही होगी कि कांवड़िये उसे हिंदू के ढाबे में जाता हुआ देखकर दया से पिघल जाएँगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कांवड़ियों की भीड़ ने उसे धर-दबोचा और निर्दयता से पिटाई शुरू कर दी। लक्ष्मी ढाबे का हिंदू मालिक और हिंदू कर्मचारी बचाने के लिए आगे आए तो कांवड़ियों ने उनपर भी हाथ साफ किया। पुलिस बहुत देर तक मूक दर्शक बनी रही, लेकिन जब बीच-बचाव के लिए आगे बढ़ी तो उसकी भी धुलाई कर दी गई।

योगी सरकार उन लोगों की सुरक्षा के लिए परेशान है, जो शान्ति-व्यवस्था को भंग कर रहे हैं और जनता के साथ-साथ खुद पुलिस के लिए भी ख़तरा बने हुए हैं। इस घटना की सूचना मिलते ही एनकाउंटर के लिए मशहूर योगी के पुलिस अधिकारियों का दस्ता घटनास्थल पर पहुँच गया। वे दंगाइयों पर कार्रवाई करने के बजाय उन्हें समझाने-बुझाने लगे, ताकि मामला रफा-दफा किया जा सके। सीओ सदर राजू कुमार साहू के अनुसार कांवड़िये यह साबित ही नहीं कर सके कि कोई गाड़ी उनसे टकराई थी। पुलिस अधिकारियों ने इसकी पुष्टि की तो दंगाई आगे बढ़ गए।

लेकिन सवाल यह है कि जो गाड़ी उन्होंने तोड़ी और जो दुकान उन्होंने तबाह की, तथा जिन लोगों को उन्होंने मारा-पीटा, उन्हें इंसाफ़ कैसे मिलेगा? इत्तिफ़ाक़ से उन पीड़ितों में कोई मुसलमान नहीं है जो योगी को वोट नहीं देता। सवाल यह है कि आखिर कांवड़ियों और आम हिंदू के दरमियान में यह भेद-भाव कौन-सा राजधर्म है? योगी बाबा की यही बेवकूफ़ियाँ आम हिंदुओं को उनसे दूर कर रही हैं और इसका खमियाज़ा उन्हें चुनावों में भुगतना पड़ रहा है, लेकिन वह सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं।

कांवड़ियों के मामले में योगी ने विभिन्न चुनाव क्षेत्रों में बिखरे हुए कुछ मतदाताओं को खुश करने के लिए एक क्षेत्र की बहुसंख्या को नाराज़ कर दिया है। इससे वहाँ की क्षेत्रीय पार्टी आरएलडी परेशान है और असम्भव नहीं कि अपना वजूद बचाने की खातिर वह बीजेपी से नाता तोड़ ले। यह तो एक छोटा-सा नुक़सान है, मगर कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी गुंडागर्दी के बेलगाम समर्थन का आगे चलकर यह नतीजा निकलेगा कि जिस तरह बिना किसी उचित कारण वे आज किसी गाड़ीवाले पर चढ़-दौड़े और लक्ष्मी ढाबे में घुसकर पुलिस के सामने मार-पीट की, कल वही मामला योगी और उनके मंत्रियों के साथ भी होगा।

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