एग्जिट पोल बहुत मेहनत से बनती हैl इसके बनाने में असली चुनाव से कहीं ज्यादा तैयारी करनी पड़ती हैl इसे ज्यादा योजनाबद्ध तरीके से किया जाता है और कई स्तर पर जांचा जाता है. इनमें व्याक्तिओं, पत्रकारों, सेफोलोजिस्ट और संस्थाओं की साख दांव पर होती है.
इसलिए इन्हें ख़ारिज तो नहीं किया जा सकता है. सभी अपने तरीके से काम करते हैं. मेथोदोलोजी कैसी भी हो हरेक पर एक खास छाप सभी देखना चाहते हैं. और यह कोशिश सभी की होती है की उनके काम ख़ास दिखे. यह कहना सही नहीं होगा कि कोई भी इतनी मेहनत के बाद गलत होता होगा.
यह भी मानना पड़ेगा कि सारी कवायद के बाद, और 20,000 से 25,000 या उससे ज्यादा लोगों से बात कर जो सर्वे किये जाते हैं वे एक अभिमत होते है. और अभिमत जरूरी नहीं है कि सही ही हो. वोटर से बात कर यह पोल बनाया जाता है. हर व्यक्ति के लिए जरूरी नहीं है कि दिल की बात बताएगा. पर वह जो भी बोलेगा सर्वेक्षक को मानना पड़ता है. इसलिए यह वास्तविकता से अलग हो सकती है.
लेख एक नजर में
एग्जिट पोल की विश्वसनीयता पर सवाल उठते हैं। इन्हें बनाने में काफी मेहनत और योजना लगती है, लेकिन फिर भी इनके परिणाम गलत हो सकते हैं। कई बार देखा गया है कि एग्जिट पोल के परिणाम वास्तविकता से काफी दूर होते हैं। उदाहरण के लिए, 2021 के पश्चिम बंगाल के चुनाव में सभी एग्जिट पोल गलत साबित हुए थे।
इस बार के एग्जिट पोल में भी कुछ सवाल उठ रहे हैं। सभी पोल के परिणाम लगभग एक जैसे हैं, जो समझ से परे है। दूसरा, कई राज्यों के आंकड़े वही दिखा रहे हैं जो 2019 के चुनाव में आए थे। यह भी सवाल उठाता है कि क्या एग्जिट पोल के परिणाम वास्तविकता से मेल खाते हैं।
सट्टा बाजार के आंकड़े भी अलग हैं, जो वास्तविकता के करीब होते हैं। अंत में, परिणाम क्या होगा यह तो जून 4 को ही पता लगेगा।
जून 1 की सर्वे में भी यह संभव है. यानी यह वास्तविकता से परे हो सकती है. 2021 के पश्चिम बंगाल के चुनाव में सारे एक्जिट पोल वास्तविकता से बहुत दूर थे. सभी ने कोशिश की यह दिखाने की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और तृणमूल कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर है और दस पोल ने यह साबित करने की कोशिश की की तृणमूल जड़ से उखड रही है पर अंतिम परिणाम में भाजपा को 77 सीट और तृणमूल को 215 सीटें मिली. कई बार राष्ट्रीय चुनाव में भी यह देखने को मिला. 2004 का एक्जिट पोल में भी कई तरह के संख्याएं दिखी. इसलिए एक्जिट पोल का सही होना जरूरी नहीं है. पर दूरदर्शन में जब 30 साल पहले यह शुरू किया गया था लोग चाव से देखते थे और नतीजे वास्तविकता के आसपास दिखते रहे.
पर वर्त्तमान में कुछ प्रश्न जो उठ रहें उनका जिक्र करना जरूरी है. दस पोल के परिणाम लगभग एक जैसे रहें. उनकी संख्याये भी लगभग एक जैसी रही. सभी 350 से 400 सीटें भाजपा को दिए. संभव है यह असली परिणामों में भी दिखे. पर दस अलग संस्थाओं के अलग लोग और अलग जगहों से आंकड़ा जुटानेवाले कैसे एके जैसे आंकड़े पाते है यह समझना मुश्किल है.
दूसरा, करीब सभी विभिन्न राज्यों के आंकड़े वही दिखाएँ जो 2019 के चुनाव में आयें थे. भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और कांग्रेस के भुतपूर्व प्रवक्ता एन डी गाडगीळ कहते थे की कभी भी दो चुनावों के आंकड़े एक जैसे नहीं होते है. चुनावों से जो करीब से जुड़े रहे उन्हें भी यह पता है. सबसे चौंकानेवाले आंकड़े तेलन्गाना और कर्णाटक के रहें.
इसमें केवल मध्य प्रदेश का अख़बार देशबंधु के DBLive चैनल के आंकड़े अलग थे. इसने इंडिया गठबंधन को 255 से 290 सीटें दी और एन डी ए गठबंधन को 207 से 241 सीटें पाने का अंदाजा लगाया. पर किसीने इसके आंकड़ो की बातें नहीं की.
सट्टा बाज़ार के आंकड़े भी अलग थे. सट्टा को अवैज्ञानिक माना जाता है और इस पर विश्वास कम किया जाता है पर इनके आंकड़े वास्तविकता के करीब होतें है. दस सट्टा बाज़ार के आंकलन में एन डी ए को 247 से 283 सीटें पाने का अनुमान लगाया. इन्होने इंडिया को 186 से 246 में सिमटा. राजस्थान के फलोदी सट्टा बाज़ार ने एनडीए को 216 और इंडिया को 243 सीटें और अन्यों को 33 सीटें दी.
यह सारे अभिमत ही है. परिणाम क्या होगा यह तो जून 4 को ही पता लगेगा.
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