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कब डूबेगा पूंजीवाद का जहाज़?

डॉ॰ सलीम ख़ान

नई दिल्ली, 1 जुलाई 2024

ल्लन ने कल्लन से पूछा, “यह हिंदुजा कौन है?”

कल्लन ने कहा, “वह एक बड़ा अमीर परिवार है। तुम उसके चक्कर में न ही पड़ो तो बेहतर है।”

“अरे भाई कौन चक्कर में पड़ रहा है? मैं जानकारी माँग रहा था। यदि तुम्हें मालूम हो तो बताओ, नहीं तो मुझे जाने दो।”

“तुम ग़ुस्से में क्यों हो? यह एक सिंधी पूंजीवादी परिवार है। पहले ये लोग ईरान गए और फिर क्रांति के बाद ब्रिटेन चले गए।”

“तो फिर उनके पास धन-संपत्ति की कोई कमी नहीं होगी?”

“कैसी बात कर रहे हो लल्लन, हिंदुजा बंधुओं में सबसे बड़े भाई गोपीचंद हिंदुजा को ब्रिटेन के सबसे अमीर व्यक्ति होने का गौरव प्राप्त है।”

“अच्छा! लेकिन इन लोगों के पास कितना पैसा होगा?”

“भाई फ़ोर्ब्स के मुताबिक़, हिंदुजा परिवार 160,000 करोड़ रुपये का मालिक है।”

“यार, इसमें कितने शून्य हैं?”

“यह बात तो संबित पात्रा को भी नहीं पता और उनसे यह सवाल पूछनेवाले गौरव वल्लभ भी अब उनके साथ हो गए हैं।”

“भाई मुझे गोपीचंद में कोई दिलचस्पी नहीं है, बताओ यह प्रकाश हिंदुजा कौन है जो मीडिया में चर्चा में है?”

“वह गोपीचंद से छोटा है। उससे छोटे श्रीचंद का हाल ही में निधन हो गया।”

“लेकिन प्रकाश हिंदुजा की ख़बरें तो लंदन की बजाय जेनेवा से आ रही हैं।”

“हाँ भाई, वह साल 2000 में स्विट्ज़रलैंड चले गए, बल्कि उन्होंने वहाँ की नागरिकता ले ली।”

“यार मैंने स्विस बैंक में काला धन भेजने के बारे में सुना था, लेकिन इन लोगों ने अपने काले भाई को वहाँ स्थानांतरित कर दिया।”

“क्या बात करते हो लल्लन? गूगल पर मौजूद तस्वीर में तो प्रकाश गोरा-चिट्टा नज़र आता है।”

“आता होगा। वैसे काले धन का रंग थोड़ा काला होता है, मैं तो प्रकाश के अपने कर्मचारियों के साथ काले कारनामों के बारे में बात कर रहा था।”

“ओहो! लल्लन उनके पास दो लाख लोग काम करते हैं। अब किसी न किसी को तो उनसे शिकायत होगी ना?”

“यह कोई छोटी-मोटी शिकायत नहीं है। स्विस कोर्ट ने प्रकाश सहित उसकी पत्नी, बेटे और बहू को साढ़े चार साल जेल की सज़ा सुनाई है।”

“अच्छा! यह तो बहुत ग़लत हुआ। इन बेचारों से क्या ग़लती हो गई?”

“भाई कल्लन, मैंने पढ़ा है कि उन्हें घरेलू कामगारों के शोषण के लिए दोषी ठहराया गया था।”

“यार इतने अमीर लोगों के लिए अपने निजी कर्मचारियों का शोषण करना असंभव है। इसमें ज़रूर देश को बदनाम करने की कोई बड़ी साज़िश होगी?”

“नहीं भैया, प्रकाश ने यह हरकत दूसरी बार की है, 2007 में भी उस पर यह आरोप लग चुका है, लेकिन उसने कोई सबक़ नहीं लिया।”

“इसीलिए तो मैं कह रहा हूँ कि अंग्रेज़ द्वेष और ईर्ष्या के कारण हमारे प्रधान जी और देश के पीछे पड़े हुए हैं।”

“देखो कल्लन, हर बात में साज़िश ढूँढ़ने की बजाय सच्चाई का पता तो लगाओ।”

“इसकी कोई ज़रूरत नहीं। मुझे सब पता है लेकिन चिंता मत करो, प्रधान जी अपने वकील तुषार मेहता को भेजकर प्रकाश को बचा लेंगे।”

“अरे भैया प्रकाश के पास इतनी संपत्ति है कि वह दुनिया का सबसे बड़ा वकील हो सकता है और वैसे भी वह भारतीय नागरिक नहीं है।”

“नहीं है तो क्या हुआ? हिंदुजा तो है। अपनी पार्टी को चंदा तो देता ही होगा, इसलिए उसकी मदद करना हमारा कर्तव्य है।”

“ख़ैर, जिन कर्मचारियों का वह शोषण कर रहा था उनकी मदद कौन करेगा? वे तो भारतीय नागरिक हैं।”

“अरे भैया, हम उसका समर्थन कैसे कर सकते हैं जो दुश्मन की साज़िश में शामिल हो गया? उनपर यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया जाना चाहिए।”

“क्या बकवास कर रहे हो लल्लन? वैसे ही अरुंधति रॉय पर यूएपीए से होनेवाली बदनामी क्या कम है जो तुम यह सलाह दे रहे हो?”

“अच्छा, बताओ इन कर्मचारियों के साथ क्या कर दिया बेचारे प्रकाश हिंदुजा, उनकी पत्नी कमला, बेटे अजय और बहू नम्रता ने जो आसमान सिर पर उठा लिया गया?”

“अरे भाई, क्या नहीं किया? सबसे पहले, उन्हें अवैध रूप से ले जाया गया, यानी उन्होंने आवश्यक आधिकारिक कार्रवाई नहीं की? ”

“अच्छा, यह बताओ कि अपने घर में एक कर्मचारी को काम पर रखने से पहले तुमने क्या काग़ज़ी कार्रवाई की थी? यह तो एक निजी मामला है।”

“ओहो, मैंने किसी विदेशी को थोड़ी न काम पर रखा? तुम किसी चीनी या बांग्लादेशी को नौकरी पर रखकर देखो, तो पता चलेगा कि क्या-क्या करना पड़ता है।”

“हाँ यार, यह बात तो है, लेकिन फिर भी, बेरोज़गारी के इस समय में, किसी के लिए विदेश में नौकरी पाना वरदान है या अभिशाप?”

“दोनों हैं? अतिरिक्त आमदनी हुई तो ख़ुशी, नहीं तो परेशानी।”

“अच्छा, तो क्या वहाँ जाने पर भी उन्हें भारतीय वेतन मिलता था?”

“हाँ, उनका वेतन भारत में उनके बैंक खाते में भारतीय रुपयों में जमा किया जाता था।”

“यह तो अच्छा है कि बैंक जाकर ट्रांसफ़र करने की ज़रूरत नहीं है।”

“वह तो है, लेकिन वह रक़म स्विस क़ानून के मुताबिक़ दी गई दर से दस गुना कम होती थी, इसलिए इसे क़ानून का उल्लंघन क़रार दिया गया।”

“यार, न्यूनतम वेतन तो हमारे यहाँ भी कम ही लोग देते हैं। भारतीय नागरिक इसके आदी हैं, इसलिए हंगामे की क्या ज़रूरत?”

“भैया, ऐसा है कि हम लोग ज़ुल्म सहने के आदी हो गए हैं, इसलिए अपने यहाँ सब चलता है, लेकिन जेनेवा में ऐसा नहीं है।”

“अच्छा, तो क्या वहाँ कर्मचारियों को सिर पर बिठाया जाता है?”

“जी नहीं, मगर जूतों में भी नहीं बिठाया जाता। वहाँ किसी भी कर्मचारी से 18 घंटे काम नहीं ले सकते। यह ग़ैर-क़ानूनी है।”

“अरे भैया, हमारे प्रधान जी ख़ुद यह ग़ैर-क़ानूनी काम करके इसपर गर्व जताते हैं। नारायण मूर्ति भी बारह घंटे काम करने की सलाह देते हैं।”

“यह शोषण को लुभावना बनाने की साज़िश है। आर्थिक के अलावा सामाजिक ज़िम्मेदारियाँ भी होती हैं। क्या उसके समय पर परिवार का अधिकार नहीं है?”

“अरे भैया, हिंदुजा के वकील का कहना है कि वह अपने कर्मचारियों को परिवार का सदस्य ही मानते हैं।”

“उनके समझने से क्या होता है? क्या कर्मचारी भी ऐसा ही महसूस करते हैं?”

“यदि वे नहीं समझते हैं तो यह कर्मचारियों की ग़लती है।”

“अच्छा, अगर किसी से 18 घंटे काम लेकर उसे बेसमेंट में चटाई पर बिठाकर 10 गुना कम वेतन दिया जाए तो क्या वह ख़ुद को मालिक के परिवार का सदस्य मानेगा?”

“यार, अगर हालत इतनी ख़राब थी तो वे लोग वहाँ क्यों गए और चले ही गए थे तो रुके क्यों?”

“बेरोज़गारी और मजबूरी उन्हें परदेस ले गई। हिंदुजा ने उनका पासपोर्ट छीन लिया। वे बेचारे वापस भी नहीं आ सकते थे।”

“यार, यह तो बंधुआ मज़दूरी का मामला है, ख़ुदा न करे ऐसी नौबत किसी के साथ आए।”

“जी हाँ, अगर कोई इंसान यह देखे कि कुत्तों की उससे ज़्यादा देखभाल की जा रही है तो उसे कितना अपमानित महसूस होगा?”

“अच्छा! तुम्हें यह कैसे पता चला कि उनके साथ कुत्तों से भी बुरा व्यवहार किया जा रहा था?”

“सुनवाई के दौरान वकील ने कुत्तों के ख़र्च का ब्योरा पेश किया और इसकी तुलना कर्मचारियों के वेतन से की। इस तरह सच सामने आया।”

“यह तो बहुत बुरी बात है, यह बताओ कि प्रकाश हिंदुजा और उनकी पत्नी कमला जेल गये या नहीं?”

“वकीलों के मुताबिक़ मुवक्किल की तबीयत काफ़ी ख़राब है। वह काफ़ी कमज़ोर हैं और कमला हिंदुजा गहन देखभाल में हैं।”

“यार, यह तो हमारे यहाँ भी होता है कि गिरफ़्तार होने से पहले अमीर लोग बीमार होकर अस्पताल में भर्ती हो जाते हैं।”

“हाँ तो भाई, स्विट्ज़रलैंड को उसके प्राकृतिक दृश्यों के कारण स्वर्ग कहा जाता है, अन्यथा यह भी दुनिया का एक हिस्सा है जहाँ अत्याचार और अन्याय कम सही, लेकिन फिर भी मौजूद तो है।”

“अच्छा यार, यह बताओ कि क्या हमारे देश में यह संभव है कि कोई अदालत किसी बड़े पूंजीपति के ख़िलाफ़ ऐसा फ़ैसला सुना दे?”

“मुश्किल है। क्योंकि हमारे पूंजीपतियों को सरकारी संरक्षण प्राप्त है। इसलिए, वे न्यायपालिका को भी प्रभावित करने में सफल हो जाते हैं।”

“मैं समझता हूँ कि इसी लिए अडानी को क्लीन चिट मिल जाती है, लेकिन सरकार और पूंजीपति के बीच का यह अवैध रिश्ता क्या कहलाता है?”

कल्लन ने उत्तर दिया, “इसे 'क्रोनी कैपिटलिज़्म' कहा जाता है, जिसका अर्थ है भाई-भतीजावाद और बेईमान पूंजीवाद।”

लल्लन ने हँसते हुए पूछा, “यार, क्या कहीं ईमानदार पूँजीवाद भी होता है? यह तो संगेमरमर का पत्थर वाली बात हो गई।”

“हाँ, यह सच है, लेकिन जब पूंजीवाद को राजनीतिक संरक्षण मिलता है, तो वह करेला नीम चढ़ा हो जाता है।”

“भैया, सरकार का एकमात्र काम संरक्षण देना है और वह पूंजीपतियों और श्रमिकों के बीच भेदभाव नहीं कर सकती। उसे सबके साथ समान व्यवहार करना होगा।”

“हाँ, यह सच है, लेकिन फिर भी हमें मज़दूरों का ख़ास ख़याल रखना होगा।”

“ख़ास और आम का यह भेद क्यों? क्या यह न्याय के विरुद्ध नहीं है?”

“जी नहीं, अमीर-कबीर धन के बल पर अपना ख़याल रखते हैं, लेकिन जो ग़रीब और ज़रूरतमंद ऐसा करने में असमर्थ हैं उन्हें सरकारी सहायता की आवश्यकता होती है।”

“अच्छा, मगर ग़रीबों और ज़रूरतमंदों को समर्थन की आवश्यकता क्यों पड़ती है?”

“इसलिए कि पूंजीपति उनका शोषण करते हैं जैसे हिंदुजा परिवार का प्रकाश कर रहा था।”

“मुझे समझ नहीं आता कि पूंजीपति उनका शोषण क्यों करते हैं?”

“शोषण इसलिए किया जाता है क्योंकि पूंजीपति स्वयं को अपने माल का मालिक समझते हैं जबकि वे एक ट्रस्टी होते हैं।”

“लेकिन ऐसे समझने से क्या फ़र्क़ पड़ता है? और इस समस्या का समाधान कैसे होगा?”

“जो व्यक्ति स्वयं को अमीन (रखवाला) समझता है, वह जब रज़्ज़ाक़ (दाता) की इच्छा के अनुसार धन का उपयोग करेगा, तो उसकी नाराज़ी के डर से किसी का अधिकार हनन नहीं करेगा।”

“हाँ भैया, मुझे लगता है कि अगर इस अक़ीदे (मान्यता) को मानने से शोषण ख़त्म नहीं हुआ तो कम ज़रूर होगा, लेकिन यह होगा कब?”

“भैया, यह बात तो अल्लामा इक़बाल को भी नहीं मालूम, तभी तो उन्होंने सिर्फ़ तमन्ना की थी—

कब डूबेगा सरमाया-परस्ती का सफ़ीना?

हैं तल्ख़ बहुत बन्दा-ए-मोमिन के औक़ात

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