राजनीति अब पहले जैसी नही रही। सत्ता और विपक्ष के बीच विद्वेष के बीच ऐसी लक्ष्मण रेखा नही खिंची थी। कौन सत्ता में है और कौन विपक्ष में यह सदन के भीतर खिंचे पाले से ही पता लग पाता था। सदन से निकलते ही दूरियां सिमट जाती थी।
सदन की बहसों में चुटकी, कटाक्ष का भरपूर इस्तेमाल होता था। ठहाके लगते थे। राजनीतिक प्रतिस्पर्धा थी लेकिन परस्पर सद्भाव,सम्मान,सहयोग में कमी नही थी । और तो और सत्ता सींन होने बाद पदस्थ मुख्यमंत्री और विभागीय मंत्री पूर्व मुख्यमंत्री या पूर्व मंत्री के आने पर बड़े भाई का सा मान देते थे औऱ उनके दिए गए मामलों को सारे काम रोक कर निपटाते थे। किसी मुख्यमंत्री या मंत्री को गिरफ्तार करके जेल भेजने को सोंच भी नही सकता था।
राजनीति की परम्परा बदल चुकी है। पहले राजनीतिक विरोध समझने और समझाने वाली थी, लेकिन अब वह अपने विरोधियों को गिरफ्तार करने और उन्हें जेल भेजने की तैयारी में है।
प्रोटोकॉल और सुरक्षा स्थान इस परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण है। प्रोटोकॉल अपने दस पैरों से जिस शिकार को जकड़ लेता है, वह उसे नहीं छोड़ता। सभी जन प्रतिनिधि जनता के लिए खुले दरबार थे, लेकिन सत्तासीन होते ही प्रोटोकॉल उनके हाव भाव बदल देता है।
प्रोटोकॉल के कारण अब मुख्यमंत्री निवास भी सुरक्षित हो गया है। प्रोटोकॉल के कारण अब राजनीतिक विरोध समझने और समझाने वाली समझौती खत्म हो गई है। प्रोटोकॉल के कारण अब राजनीतिक विरोधियों को गिरफ्तार करने और उन्हें जेल भेजने की तैयारी में है।
हाँ, एक बार ,महज एक प्रकरण ऐसा आया था जब पहली गैर कांग्रेसी संविद सरकार के तत्कालीन मंत्री पभु नारायन सिंह के आंदोलन को खुद लीड करने की घोषणा ने दिल्ली में स्थिति कांग्रेसी सरकार को पसीने पसीने कर दिया था।
हुआ यह कि उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में पहली संविद सरकार बनी थी जिसमे कांग्रेस पार्टी को छोड़कर अन्य सभी दलों के लोग शामिल थे। समाजवादी पार्टी के कोटे से पभुनारायन सिंह स्वास्थ्य मंत्री थे।
दिल्ली में कांग्रेस की सरकार और उत्तरप्रदेश में चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में संविद सरकार। सबकी अपनी अपनी प्रतिबद्धताएं। केंद्र सरकार की किसी निर्णय से यूपी की संविद सरकार में शामिल समाजवादी पार्टी बिफर गयी। आनन फानन में राजनारायण सिंह के निर्देश पर प्रदेश अध्यक्ष डॉ अवधेश सिन्हा ने दिल्ली इसका विरोध दर्शाने के लिए हल्ला बोल रैली निकालने की घोषणा कर दी। बैठक में यह भी तय हुआ कि केंद्र सरकार के खिलाफ घोषित रैली को यूपी के स्वास्थ्य मंत्री प्रभु नारायण सिंह करेंगे। केंद्र सरकार ने समाजवादी पार्टी की इस रैली को अवैध घोषित करते हुए दफा 144 लगा दी ।यह भी ,जो भी रैली में भाग लेगा गिरिफ्तार किया जाएगा। प्रभुनारायण सिंह भी अड़ गए। इन्होंने प्रेस कांफ्रेन्स बुलाकर घोषणा की कि सरकार चाहे कितनी ही बंदिश लगाए वे हर हालत में दिल्ली मे होने वाली रैली को लीड करेंगे। केंद्र सरकार उन्हें गिरफ्तार करे तो करे।
प्रभुनारायण सिंह के इस बयान पर हंगामा मच गया। मंत्री की गिरफतारी? प्रोटोकाल की धज्जियां उड़ जाएंगी। प्रभुनारायण सिंह हठ पकड़े हुए थे।
इसे कैसे सुलझाया जाए? सभी हैरान थे। बात प्रधान मंत्री के सामने पहुची। इससे पहले कभी ऐसी स्थिति नही आई थी।प्र धान मंत्री ने प्रोटोकॉल से राय मांगी। उसने भी हाथ खड़े कर दिए। लाचार होकर केंद्र सरकार के फैसले की फाइल राष्ट्रपति के हस्ताक्षर को भेजने के बजाय ठंडे बस्ते में डाल दी गयी। साथ ही समाजवादी पार्टी की रैली के खिलाफ दफा 144 भी हटा दी गयीं। मंत्री की गिरफ्तारी की बला टल जाने पर प्रोटोकाल ने भी राहत की सांस ली।
पहले परम्परा की दुहाई होने पर राजनीति सहम जाती थी। उस समय सुरक्षा के इतने ताम झाम नही थे। प्रोटकाल हावी नही था। सी बी आई, ई डी जैसी दमदार जांच एजेंसियां भी नही थी। रा का गठन भी आपात काल लाने के दौर में हुआ। एक मंत्री की गिरफतारी की आशंका तिरोहित होजाने के बाद मुख्यमंत्रियों की गिरफतारी की नौबत भी हो सकती है , यह भी सामने है। शायद राजनीति ने परम्परा से मुंह मोड़ लिया। अब कहीं कोई अड़चन नही है। नतीजतन आज दो मुख्यमंत्री,एक उपमुख्यमंत्री,कई मंत्री जेल में है। यही नहीं, मुख्यमंत्री जेल में रहते हुए सरकार चला रहा है।
यह अजीबोगरीब स्थिति है भी और नहीं भी। राजनीति के साये में हमारी पत्रकारिता भी अमन चैन से है। आज हम खबरे नही व्यूज परोस रहे हैं।पहले हम सिर्फ न्यूज़ देते थे। टिप्पणी करने के लिए सम्पदकीय हुआ करते थे।
चुनावी माहौल के पहले सर्वेक्षण की परंपरा भी नही पड़ी थी।
इन राजनैतिक विसंगतियों पर टिप्पणी kaरने से स्वयम को नही रोक पा रहा हूँ। हांलाकि जानता हूँ, नक्कारखाने में तूती की आवाज़ से कोई फर्क नही पड़नेवाला नही है।
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