Thought for the Day
21 Nov 2024
मुसाफ़िर सभी लौट आते नहीं,
लहर को किनारे सुहाते नहीं,
जिन्हें इश्क़ है रहगुज़र से यहां,
वो दिवाने कभी घर बनाते नहीं|
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एक टुकड़ा धूप का चौकोर सा,
नाचता है पंख जैसे मोर का.
तृषित मेरामन मुझी से कह रहा,
सत्य होता स्वप्न उगती भोर का.
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