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ज़ेबा हसन

A person with long hair and a piercing on her forehead

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लखनऊ  | मंगलवार | 3 सितंबर 2024

तिहास में ये शायद पहला मौका था जब दो भाइयों को एक ही लड़ाई में एक जैसा विमान उड़ाते हुए वीर चक्र से सम्मानित किया गया। यह मौका दिया था भारतीय वायु सेना के दो जाबांज सिपाही और सगे भाई ट्रेवर कीलर और डेन्जिल कीलर ने। गुजरी 28 अगस्त को नब्बे साल की उम्र में भारतीय वायुसेना के जांबाज सीपाही ऐयर मार्शल डेन्जिल कीलर ने जब इस दुनिया को अलविदा कहा तो आसमानों में लिखी गई दोनों भाईयों की विजयगाथा एक बार फिर से लोगों के जेहनों में ताजा हो गई। लखनऊ में जन्में डेन्जिल और ट्रेवर कीलर ने 1965 भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अहम भूमिका निभाई थी। अस्ल जिंदगी के यह नायक ना सिर्फ युवा पीढ़ी के लिए एक मिसाल हैं बल्कि इनकी वीरता की कहानियां हर दौर में दोहराई जाएंगी।    

साल था 1965 और जंग चल रही थी पाकिस्तान से। उसी दौरान एक सुबह पठानकोट के नैट पायलटों को  तीन बजे ही जगा दिया गया था। भारत के चार लड़ाकू विमान 1500 फीट की उंचाई पर उड़ते हुए कश्मीर के छंब की ओर बढ़े। इन जहाजों के उड़ने के थोड़ी ही देर बाद पाकिस्तानी रडारों ने इनकी गतिविधि को ट्रैक किया और कुछ ही पलों में उनको इंटरसेप्ट करने के लिए छह सेबर जेट और दो स्टार फाइटर वहां पहुंच गए। लेकिन पाकिस्तानी रडार को वह नहीं दिखा जिसने उसके खेल को ही पलट कर रख दिया था। दरअसल उन चार विमानों के पीछे पीछे चार नैट लड़ाकू विमानों ने भी उड़ान भरी थी। वो जमीन से 300 फीट की ऊंचाई पर उड़ रहे थे और उन नैट्स को लीड कर रहे थे स्क्वॉड्रन लीडर ट्रेवर कीलर। कीलर ने सबसे पहले 5000 फीट की दूरी पर सेबर को अपनी तरफ आते देखा। उन्होंने अपना नैट सेबर के पीछे लगा दिया। उनकी गति इतनी तेज थी कि उन्हें सेबर के पीछे बने रहने के लिए एयर ब्रेक लगाने पड़े। जैसे ही सेबर उनकी फायरिंग रेंज में आया, कीलर ने करीब 200 गज की दूरी से सेबर के दाहिने हिस्से पर फायर किया। अगले ही क्षण सेबर का दायां पंख गिरने लगा और वो अनियंत्रित हो कर नीचे की ओर जाने लगा। ये 1965 में भारतीय वायु सेना द्वारा गिराया गया पाकिस्तान का पहला जहाज था। ट्रेवर कीलर को उसी दिन वीर चक्र देने की घोषणा की गई।

 

लेख एक नज़र में
भारतीय वायुसेना के दो जाबांज सिपाही और सगे भाई ट्रेवर कीलर और डेन्जिल कीलर ने 1965 भारत-पाकिस्तान युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी।
दोनों भाइयों ने एक ही लड़ाई में एक जैसा विमान उड़ाते हुए वीर चक्र से सम्मानित किया गया था। ट्रेवर कीलर ने पाकिस्तानी सेबर जेट को मार गिराया था, जबकि डेन्जिल कीलर ने भी एक सेबर जेट को नष्ट किया था।
दोनों भाइयों की वीरता की कहानियां हर दौर में दोहराई जाएंगी। लखनऊ शहर के फेमस हिस्टोरियन रवि भट्ट ने कहा कि कीलर भाईयों ने जो कारनामा किया था वह हमारे शहर की युवा पीढ़ी के लिए मिसाल बन गया था। दोनों भाई हमारे शहर के नायक हैं और उनका नाम और काम कभी मिट नहीं सकता।

 

दूसरे भाई ने भी उड़ा दिया सेबर जेट

इसके कुछ ही दिनों बाद चाविंडा सेक्टर में एक बार फिर नैट्स को लड़ाकू विमानों को एस्कॉर्ट करने की जिम्मेदारी दी गई और इस बार नेट्स के एक सेक्शन को लीड कर रहे थे ट्रेवर कीलर के बड़े भाई डेन्जिल कीलर। जैसे ही ये लड़ाकू विमान चाविंडा पहुंचे उनका स्वागत विमानभेदी तोपों से किया गया। ये विमान बहुत नीचे उड़ रहे थे इसलिए तोपों के गोले उनके ऊपर फट रहे थे। तभी 2000 फीट की ऊंचाई पर चार सेबर्स को आते देखा गया। ये सेबर्स सरगोधा से आए थे। कीलर सेबर के पीछे जाने की कोशिश कर ही रहे थे कि उन्हें देख लिया गया और चारों सेबर रक्षात्मक ब्रेक में चले गए। नैट्स ने भी अपने आप को दो हिस्सों में बांटा। जब डेन्जिल सेबर का पीछा कर रहे थे उस समय उनके साथी से उनका साथ छूट गया। अब वो दो सेबर्स के सामने अकेले रह गए थे। अचानक उन्होंने देखा कि एक सेबर भाग निकलने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने अपना नैट उसके पीछे लगा दिया। सेबर नैट को नहीं देख पाया और सेबर डेन्जिल की फायरिंग रेंज में आ गया। सेबर को डेन्जिल का बर्स्ट लगा। उसमें से धुआं निकलने लगा और वो तेजी से नीचे जाने लगा। कीलर तब तक बहुत नीचे आ चुके थे और पेड़ की ऊंचाई पर उड़ रहे थे। जब डेन्जिल कीलर के नैट ने लैंड किया तो उसका टायर फट गया जिसकी वजह से पूरा रन वे ब्लॉक हो गया। डेन्जिल को इस बहादुरी के लिए वीर चक्र दिया गया।

केनोपी उड़ने के बाद कराई सेफ लैंडिंग

डेंजिल कीलर का जन्म दिसंबर 1933 में और ट्रेवर कीलर का जन्म दिसंबर 1934 को लखनऊ में हुआ था। दोनों भाईयों की पढ़ाई लखनऊ के सेंट फ्रांसिस और ला मार्टिनियर कॉलेज से हुई है। 27 अप्रैल 2002 को ट्रेवर कीलर ने आखिरी सांस ली थी और हाल ही में डेन्जिल कीलर जो काफी समय से गुयुग्राम में थे वहीं उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। मई 1954 में भारतीय वायुसेना में शामिल हुए डेंजिल कीलर कीर्ति चक्र से भी सम्मनित हुए और यह कारनामा भी एक मिसाल ही है। दरअसल मार्च 1978 में डेन्जिल काफी ऊंचाई पर टाइप 77 विमान उड़ा रहे थे, तो इसकी ‘कैनोपी’ उड़ गई थी। ऐसे में उन्हें वायु विस्फोट का सामना करना पड़ा। इस घटना में उनकी आंखें, कान के परदे और बाएं हाथ पर चोट लग गई, जिससे उनके लिए विमान को नियंत्रित करना मुश्किल हो गया। इन हालात में विमान को छोड़ना ही सबसे बेहतर उपाय था लेकिन अपने साहस और कौशल के बल पर विमान पर दोबारा नियंत्रण पाया और कीलर विमान को वापस बेस पर ले आए और इस आपात स्थिति में सुरक्षित उतारने में सफल रहे।

दोनों भाई हमारे शहर के नायक हैं

लखनऊ शहर के फेमस हिस्टोरियन रवि भट्ट उस दौर को याद करते हुए कहते हैं कि मुझे याद है और मेरे सामने की ही बात है जब हिंदुस्तानी फौज के साथ पूरे मुल्क में ट्रेवर कीलर और डेन्जिल कीलर की वीरता के चर्चे हो रहे थे। उस समय ना सोशल मीडिया था और ना खबरों के लिए ज्यादा  साधन। लेकिन इतना जरूर याद आता है कि वॉर के समय सुबह के अखबार में युद्ध् के दोनों नायक छाए रहते थे। लोग रेडियो को कान से लगाए रहते थे और जंग में शामिल लखनऊ के दो जाबांजों के कारनामें एक दूसरे को बताया करते थे। जब वह वापस शहर लौटे तो ऐसा लग रहा था जैसे पूरा शहर जश्न मना रहा हो। पूरे शहर में दोनों भाईयों के नाम की धूम मची थी। आज जब डेन्जिल कीलर की डेथ की खबर पढ़ी तो जैसे वह जमाना आखों के सामने आ गया।

 कीलर भाईयों ने जो कारनामा किया था वह हमारे शहर की युवा पीढ़ी के लिए मिसाल बन गया था। मेरे एक रिश्तेदार जो कि भारतीय फौज में ही थे उनका कहना था कि कीलर बुधंओं की जाबांजी के चर्चे सुनने के बाद युवाओं में एक जोश सा भर गया, और वायुसेना में लखनऊ के युवा बड़ी मात्रा में भर्ती हो रहे थे। फिल्मी नायक मनोरंजन के लिए काम करते हैं लेकिन रियल लाइफ हीरो की बात करें तो ट्रेवल कीलर और डेन्जिल कीलर जैसे जाबांज सेनानियों का जिक्र ही भाता है। यह रियल लाइफ हीरो हैं जिनका नाम और काम कभी मिट नहीं सकता। जब भी भारतीय सेना की बहादुरी की चर्चा होगी इनका जिक्र भी जरूर होगा।

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