चुनाव के पहले चरण में ही बीजेपी के अंदर उत्साह की कमी उजागर हो गई। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि कुल 102 निर्वाचन क्षेत्रों में से वे दस स्थान जहाँ सबसे कम लोगों ने मतदान किया, पिछले दस वर्षों से खुले थे। यह प्रधानमंत्री मोदी के प्रति जनता की नाराज़ी का स्पष्ट संदेश है। सच तो यह है कि लोग मोदी जी के भाषण सुन-सुनकर थक चुके हैं, इसलिए सबसे पहले तो मीटिंग हॉल में आते ही नहीं और जो किराये पर लाए जाते हैं, उनमें उत्साह नहीं होता, क्योंकि प्रधानमंत्री का रिकॉर्ड अब बज-बजकर घिस चुका है। ग्रामोफ़ोन के घिसे-पिटे रिकॉर्ड की सुई अपनी जगह से खिसक जाती और उसके बाद भोंपुओं से नीरस आवाज़ें आने लगती थीं। ऐसा ही मामला प्रधानमंत्री के साथ हो रहा है। बाँसवाड़ा के हालिया भाषण में इस बात का प्रदर्शन हुआ कि वे क्या कह रहे हैं, इस बात का उन्हें खुद पता नहीं होता।
चुनाव के पहले चरण में बीजेपी के अंदर उत्साह की कमी प्रकट हो गई है, जो प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ जनता की नाराज़गी का स्पष्ट संदेश है। मोदी जी के भाषण सुनने से लोग थक गए हैं और उनके रिकॉर्ड की सुई खिसक गई है।
मोदी जी के भाषण में, वे काँग्रेस को भारत की संपत्ति घुसपैठियों में बाँटाने का आरोप लगाते हैं। मोदी जी ने बाँसवाड़ा में मुसलमानों के लिए कुछ नहीं किया, जबकि समाजवादी पार्टी ने मुसलमानों के लिए काम किया है।
मोदी जी ने अपनी पत्नी जसोदा बेन की जिंदगी बर्बाद करने वाले तीन तलाक़ के ख़िलाफ़ क़ानून बनाने का ज़िक्र किया है। मोदी जी ने उन हज़ारों महिलाओं के लिए बिना ‘महरम’ के हज पर जाने की अनुमति देने का ज़िक्र करते हुए हज़ारों ऐसी बहनों की दुआओं का ज़िक्र किया जिन्हें हज करने का सौभाग्य मिला, लेकिन वह बिलक़ीस बानो और ज़किया जाफ़री की बद-दुआओं को भूल गए, जो उनके अत्याचारों की शिकार बनीं।
सरकार ने जम्मू-कश्मीर में शांति नहीं स्थापित की, लेकिन लद्दाख़ में एक बड़ा आंदोलन शुरू हो गया है। मोदी सरकार के प्रति बढ़ते असंतोष का साफ़ संकेत मिलता है। 2019 की तुलना में पूरी तरह से संतुष्टलोगों की दर 3 प्रतिशत घटकर 23 प्रतिशत हो गई। पाँच साल पहले कुछ हद तक संतुष्ट लोग 39 प्रतिशत थे लेकिन अब यह 34 प्रतिशत हैं। यहाँ भी 5 प्रतिशत का नुक़सान हुआ। कुछ हद तक असंतुष्ट 12 प्रतिशत से 7 प्रतिशत बढ़कर 19 प्रतिशत हो गया जबकि पूरी तरह से असंतुष्ट 2 प्रतिशत से बढ़कर 29 प्रतिशत हो गया।
उक्त भाषण में उन्होंने कहा था कि अगर काँग्रेस सत्ता में आ गई तो वह भारत की संपत्ति उन घुसपैठियों में बाँट देगी जो ज़्यादा बच्चे पैदा करते हैं। मोदी के इस वाक्य में इस बात की स्वीकारोक्ति है कि काँग्रेस सत्ता में आ सकती है, वरना अगर बीजेपी 400 के पार जाने वाली है तो लोगों को काँग्रेस से डराने की ज़रूरत ही क्या है? ऐसे स्वर में वही बोलते हैं जो डरते हैं और सच तो यह है कि मोदी जी डरे हुए हैं। उन्होंने बाँसवाड़ा में कहा, “जब वे (काँग्रेस) सत्ता में थे तो वे कहते थे कि संसाधनों पर पहला हक़ मुसलमानों का है। वे तुम्हारा सारा धन इकट्ठा कर लेंगे और उन लोगों में बाँट देंगे जिनके अधिक बच्चे हैं। वे इसे घुसपैठियों को बाँट देंगे।” इतना कहने के बाद मोदी ने पूछा, “क्या आप चाहते हैं कि आपकी मेहनत की कमाई घुसपैठियों को दी जाए? क्या आप इसे स्वीकार करेंगे?” इस तरह के घटिया लहजे में देश का प्रधानमंत्री तो दूर सड़कछाप छोटा नेता भी नहीं बोलता।
जब लंबे समय तक चलने वाले रिकॉर्ड की सुई खिसक जाती थी, तो उसे दोबारा उठाकर अपनी जगह पर रख दिया जाता था। यही मोदी के साथ भी हुआ। बाँसवाड़ा के बाद अगले दिन प्रधानमंत्री अलीगढ़ पहुँचे और मुसलमानों की भलाई का दिखावा करने लगे। उन्होंने कहा कि काँग्रेस और समाजवादी पार्टी ने मुसलमानों के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए कभी कुछ नहीं किया। उन्होंने कहा, “जब मैं पिछड़े मुसलमानों की समस्याओं के बारे में सुनता हूँ तो सिहर जाता हूँ।” अपनी पत्नी जसोदा बेन की जिंदगी बर्बाद करने वाले मोदी जी जब तीन तलाक़ का ज़िक्र करते हुए कहते हैं कि उन्होंने न जाने कितनी बेटियों का जीवन बर्बाद होने से बचाने के लिए तीन तलाक़ के ख़िलाफ़ क़ानून बनाया, तो सुनकर हँसी आती है। मुस्लिमों पर किए गए ‘उपकारों’ का ज़िक्र मोदी इस तरह करते हैं कि पहले हज यात्रियों को हज कोटे को लेकर काफ़ी दिक़्क़तें होती थीं, इसमें भी रिश्वतख़ोरी का इस्तेमाल किया जाता था, जिसके कारण हर किसी को हज पर जाने का मौक़ा नहीं मिलता था। उन्होंने सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस से न केवल मुस्लिम भाई-बहनों के लिए हज कोटा बढ़ाने की अपील की, बल्कि वीज़ा नियमों को भी आसान बनाने की अपील की।
मोदी जी ने उन हज़ारों महिलाओं के लिए बिना ‘महरम’ (पति या फिर वे क़रीबी रिश्तेदार जिनसे निकाह निषिद्ध है) के हज पर जाने की अनुमति देने का ज़िक्र करते हुए हज़ारों ऐसी बहनों की दुआओं का ज़िक्र किया जिन्हें हज करने का सौभाग्य मिला, लेकिन वह बिलक़ीस बानो और ज़किया जाफ़री की बद-दुआओं को भूल गए, जो उनके अत्याचारों की शिकार बनीं। वैसे तीस्ता सेतलवाड़ और संजीव भट्ट की पत्नी और बेटी भी मोदी के प्रकोप का उदाहरण हैं। केजरीवाल की पत्नी ने मोदी पर अपने पति की जेल में हत्या कराने का आरोप लगाया है। हेमन्त सोरेन और संजय सिंह की पत्नी और बहनों पर सितम किसने ढाए? यह अजीब बात है कि अगर विपक्ष मुसलमानों के लिए कुछ अच्छा करता है तो वह हिंदू विरोधी हो जाता है और अगर वह सत्ता पक्ष ख़ुद ऐसा करे तो उसे राष्ट्रवाद कहा जाता है। यह कहाँ का न्याय है? अलीगढ़ के अन्दर जब प्रधानमंत्री ने देखा कि मुसलमानों पर ‘उपकारों’ का ज़िक्र श्रोताओं को खल रहा है, तो दुम फिर नलकी से बाहर आ गई और दोबारा पाकिस्तानी सीमा, आतंकवाद, जम्मू-कश्मीर और धारा-370 का पिटारा खुल गया।
उन्होंने कहा कि पहले देश की सीमा पर अक्सर गोलीबारी होती थी, जिसमें हमारे जवान शहीद होते थे और उनके शव तिरंगे में उनके घर जाते थे, जो आज बंद हो गया है। मोदी जी की याददाश्त कमज़ोर है, उन्हें नहीं पता कि गलवान में किसके समय में लाशें आईं और वे चीन के ख़िलाफ़ बोलने की हिम्मत भी नहीं कर सके। प्रधानमंत्री कहते हैं कि पहले आतंकवादी बम विस्फोट करते थे, सिलसिलेवार विस्फोट होते थे, जिससे देश की जनता सुरक्षित महसूस नहीं करती थी, लेकिन योगी और मोदी का चमत्कार है कि ये होने बंद हो गये? लेकिन पुलवामा का मामा किसके समय में हुआ? अब तो ये तथ्य भी सामने आ गए हैं कि इसमें ख़ुद सरकार का हाथ था, यही वजह है कि आज तक न तो कोई जाँच हुई और न ही किसी को सज़ा हुई।
जम्मू-कश्मीर का ज़िक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि पहले अलगाववादी धारा 370 के नाम पर शान से रहते थे और हमारे जवानों पर पत्थरबाज़ी करते थे, जिसे रोक दिया गया है। जम्मू-कश्मीर में तो शांति स्थापित नहीं हुई है, लेकिन लद्दाख़ में एक बड़ा आंदोलन शुरू हो गया है, जिसे इस सरकार ने नज़रअंदाज़ कर दिया है। मणिपुर में एक साल से ख़ाक और ख़ून की होली खेली जा रही है। छत्तीसगढ़ में पिछले तीन महीने में नक्सलियों के नाम पर 80 लोगों की हत्या कर दी गई। क्या यह राजकीय आतंकवाद नहीं है? मोदी जी ने कहा कि पहले हमारी बहनें-बेटियाँ घर से नहीं निकल पाती थीं और अब योगी सरकार में किसी में हिम्मत नहीं है कि नागरिकों की सुख-शान्ति छीन सके। यह बात हाथरस रोड पर कही गई, जहाँ दलित महिलाओं के साथ सबसे ज़्यादा क्रूरता हुई और परिवार की इच्छा के ख़िलाफ़ प्रशासन ने पीड़िता के शरीर को मिट्टी का तेल डालकर जला दिया। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा के मामले में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है। हद तो यह है कि एक महिला जज ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर मरने की इजाज़त माँगी और यह केवल मोदी और योगी की डबल इंजन सरकार में ही संभव है।
प्रतिष्ठित सीएसडीएस के हालिया सर्वे से मोदी सरकार के प्रति बढ़ते असंतोष का साफ़ संकेत मिलता है। 2019 की तुलना में पूरी तरह से संतुष्ट लोगों की दर 3 प्रतिशत घटकर 23 प्रतिशत हो गई। पाँच साल पहले कुछ हद तक संतुष्ट लोग 39 प्रतिशत थे लेकिन अब यह 34 प्रतिशत हैं। यहाँ भी 5 प्रतिशत का नुक़सान हुआ। कुछ हद तक असंतुष्ट 12 प्रतिशत से 7 प्रतिशत बढ़कर 19 प्रतिशत हो गया जबकि पूरी तरह से असंतुष्ट 2 प्रतिशत से बढ़कर 29 प्रतिशत हो गया। इस संतुष्टि के बावजूद 39 प्रतिशत लोग इस सरकार को दोबारा सत्ता में आने का मौक़ा नहीं देना चाहते, जबकि सिर्फ़ 44 प्रतिशत लोग चाहते हैं कि यह सरकार दोबारा आए। यह बीजेपी के लिए अच्छी ख़बर है, लेकिन जिन 17 प्रतिशत लोगों ने अपनी राय नहीं दी है, अगर उनका बहुमत बीजेपी के ख़िलाफ़ हो जाए तो फिर से सरकार बनाना मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि पिछले पाँच वर्षों में जिस प्रकार यह संतुष्टि बढ़ी है उसके अन्दर चुनाव अभियान के दौरान तेज़ी आ सकती है। चुनाव के पहले चरण में इसका प्रदर्शन हो चुका है।
इस सर्वे में क्या होगा? इसके पीछे के कारणों को भी जानने की कोशिश की गई है। सर्वे के दौरान जब जनता से इस सरकार को दोबारा चुनने का कारण पूछा गया तो पता चला कि 42 प्रतिशत बीजेपी समर्थकों ने इसके प्रदर्शन को महत्व दिया और 18 प्रतिशत ने सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की सराहना की। इसके बाद सिर्फ़ 10 प्रतिशत लोग ही ऐसे हैं जिनके लिए वजह मोदी जैसे महान नेता का होना है। मोदी के पिछलग्गू नीतीश कुमार, उनसे किनारा करने वाले योगी आदित्यनाथ और उन्हें भगवान का अवतार बताने वाली कंगना रानौत को समझ लेना चाहिए कि जनता की नज़र में प्रधानमंत्री की महानता तीसरे नंबर पर है। इसके बाद राम मंदिर 8 प्रतिशत, कश्मीर की धारा 370 की समाप्ति 6 प्रतिशत, देश की वैश्विक छवि 4 प्रतिशत और हिंदुत्व भी 4 प्रतिशत पर है। अगर बीजेपी के वोटरों के लिए ही यह क्रम है तो विरोधियों और आम लोगों का क्या होगा, यह समझना मुश्किल नहीं है। इस वजह से संघ परिवार में मोदी के प्रति गहरा असंतोष है और इससे प्रधानमंत्री का मानसिक संतुलन बिगड़ गया है। इस वजह से वे बाँसवाड़ा में बहकी-बहकी बातें करते हैं और अलीगढ़ आकर उसका प्रायश्चित करने की असफल कोशिश करते हैं।
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