प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 3 जुलाई 2024 को संसद भवन में राष्ट्रपति के संबोधन पर धन्यवाद प्रस्ताव का जवाब देते हुए मणिपुर की हिंसा पर विपक्ष की बहस की मांग को अनदेखा कर कश्मीर का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि कश्मीर में अब आतंकवाद के खिलाफ जंग अन्तिम चरण में है और बहुआयामी रणनीति से आतंकवाद का नेटवर्क तबाह किया जा रहा है। मोदी ने दावा किया कि पिछले 10 वर्षों में आतंकवाद की घटनाएँ कम हुई हैं आतंकवाद और अलगाववाद ख़त्म हो रहा है और जम्मू-कश्मीर के नागरिक अब इस लड़ाई का नेतृत्व कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री के भाषणवाले दिन आर्मी चीफ़ जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने जम्मू-कश्मीर में लाइन ऑफ़ कंट्रोल पर सुरक्षा की स्थिति और फ़ौजियों की ऑपरेशनल तैयारियों का जायज़ा लिया। जनरल द्विवेदी ने उच्च सैन्य अधिकारियों सहित पुंछ में फ़ील्ड कमांडरों के साथ मीटिंग करने के साथ आगे के इलाक़ों का हवाई अवलोकन करके 93 इनफ़ेंटरी ब्रिगेड के पूर्व सैनिकों के साथ बातचीत की। उनके दौरे का मक़सद आतंकवादी गतिविधियों को नाकाम बनाना और अमरनाथ यात्रा के दौरान जम्मू के क्षेत्र में आतंकवाद के ख़िलाफ़ कार्रवाइयों को तेज़ करना बताया गया। इन बड़े-बड़े दावों और जायज़ों के मात्र दो दिन बाद 8 जून को जम्मू-कश्मीर के कठुआ ज़िले में जंगजू और फ़ौज के जवान एक दूसरे से भिड़ गए। इस हमले में फ़ौज के 4 जवान मारे गए और 6 ज़ख़्मी हो गए। जम्मू-कश्मीर का कठुआ ज़िला पंजाब के पठानकोट से मिला हुआ है। सैन्य अधिकारियों के मुताबिक़ यह घटना कठुआ शहर से 150 किलोमीटर दूर लोहाई मल्हार के बदनोटा गाँव में उस समय घटी जब फ़ौज की कुछ गाड़ियाँ इलाक़े में सामान्य रूप से गश्त पर थीं।
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने कठुआ जिले में फौजी काफिले पर हमले की कड़ी निंदा की। उन्होंने जम्मू में आतंकवाद बढ़ने पर चिंता जताई और घात लगाकर किए गए हमले पर दुख व्यक्त किया, साथ ही घायलों के लिए प्रार्थना की। हाल के दिनों में कठुआ और आसपास के इलाकों में आतंकवादी हमलों में वृद्धि हुई है। कोलगाम में एक मुठभेड़ में सुरक्षा बलों ने 6 आतंकवादियों को मार गिराया, जिसमें 2 सैनिक भी शहीद हुए। 9 जून को रियासी में तीर्थयात्रियों की बस पर फायरिंग से 9 लोग मारे गए और 41 घायल हुए। हमलों का यह सिलसिला 10 जून 2024 को तीसरी बार शपथ ग्रहण के साथ ही शुरू हुआ है। पुलवामा पर सन्दिग्ध हमले की रौशनी में शक की सूई जम्मू-कश्मीर में चुनावी तैयारी की ओर घूम जाती है।
चुनावी अभियान के दौरान व्यस्त गृह मंत्री अमित शाह ने कश्मीर घाटी का दौरा करने के लिए दो दिन की छुट्टी लेकर सभी को चौंका दिया। मई के मध्य में श्रीनगर जाकर, उन्होंने कोई जनसभा नहीं की थी। बीजेपी ने इसे गैर-राजनीतिक दौरा बताते हुए अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा पर चर्चा का उद्देश्य बताया था। चुनाव के बाद कश्मीरी हिंसा घाटी से जम्मू कैसे पहुंची? शपथ ग्रहण के 72 घंटों में हिंदू बहुल क्षेत्रों में 3 बड़े मिलिटेंट हमले हुए, जिनमें 9 श्रद्धालु, एक सीआरपीएफ जवान मारे गए और 35 यात्री तथा 5 सुरक्षा बल घायल हुए। कठुआ में जवाबी कार्रवाई में एक अनजान जंगजू भी मारा गया।
डोडा के छत्रगल्ला इलाके में आधी रात अस्थायी ऑपरेटिंग बेस पर हमला हुआ, जिसमें 5 सुरक्षा कर्मी घायल हुए। कठुआ के हीरा नगर में सुरक्षा बलों और मिलिटेंटों के बीच मुठभेड़ में एक जंगजू और सीआरपीएफ जवान मारे गए, जबकि एक नागरिक घायल हुआ। रियासी में तीर्थयात्रियों की बस पर फायरिंग से राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाते हुए लिखा था कि , “बधाई सन्देशों का जवाब देने में व्यस्त नरेंद्र मोदी को जम्मू-कश्मीर में बेदर्दी से मारे गए श्रद्धालुओं के परिजनों की चीख़ें तक सुनाई नहीं दे रही हैं। रियासी, कठुआ और डोडा में 3 दिनों के अंदर 3 अलग-अलग आतंकवाद की घटनाएँ घटी हैं, लेकिन प्रधानमंत्री जश्न मनाने में मगन हैं। देश जवाब माँग रहा है, आख़िर बीजेपी सरकार में आतंकवादी हमलों की योजना बनानेवालों को पकड़ा क्यों नहीं जाता?”
कांग्रेस ने कहा था कि "जम्मू-कश्मीर में शांति और सामान्य स्थिति के खोखले दावों का पर्दाफाश हो गया है। बीजेपी का कश्मीर घाटी में चुनाव न लड़ना उनकी 'नया कश्मीर' नीति की नाकामी का सबूत है।" योगा दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जम्मू-कश्मीर दौरे को विधानसभा चुनाव की तैयारी के रूप में देखा गया। मोदी ने वादा किया कि जल्द ही नई सरकार का चुनाव होगा और राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा। श्रीनगर में उन्होंने कहा, "जम्मू-कश्मीर के लोग स्थानीय प्रतिनिधि चुनकर अपनी समस्याओं का हल ढूंढते हैं, इससे बेहतर क्या हो सकता है?" प्रधानमंत्री ने संसद में जम्मू-कश्मीर के वोटरों को संविधान पर विश्वास के लिए बधाई दी।
प्रधानमंत्री का बयान सुनकर लगता है जैसे पहली बार वहाँ चुनाव हुए हैं, जबकि कश्मीर में हमेशा चुनाव होते रहे हैं। पिछले 6 वर्षों में मोदी सरकार वहाँ राज्य चुनाव नहीं करा सकी, इसलिए प्रधानमंत्री को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख़ के लोगों से माफी माँगनी चाहिए। प्रधानमंत्री ने कश्मीर में पर्यटन गतिविधियों के बढ़ने का ज़िक्र किया, लेकिन 6 साल पहले ये चरम पर थीं। राजनीतिक लाभ के लिए शाह ने संविधान की धारा 370 को खत्म कर दिया और राज्य का दर्जा भी छीन लिया। आज़ाद भारत के इतिहास में ऐसी नाइंसाफी सिर्फ़ जम्मू-कश्मीर के हिस्से में आई। वहाँ के लोगों को जिन मुसीबतों का सामना करना पड़ा, उसे अब नए आपराधिक कानून में ढाँपकर पूरे देश पर लागू कर दिया गया है। मोदी जी ने पहले पाँच वर्षों में बीजेपी को जम्मू-कश्मीर की सरकार में शामिल किया। दूसरे कार्यकाल में धारा 370 को निरस्त कर पुलिस स्टेट बना दिया और तीसरी बार सरकार बनाकर पूरे देश को प्रशासन के हवाले कर दिया। क्योंकि मोदी है तो कुछ भी मुमकिन है।
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