आज का संस्करण
नई दिल्ली, 20 मार्च 2024
अमिताभ श्रीवास्तव
दो तीन दिन पहले मेरी चिड़िया का जोड़ा ज़ोर ज़ोर से लड़ रहा था। एक दूसरे के पंख नोच रहा था।
मुझ जैसे इंसान से घरेलू हिंसा देखी नहीं गयी और मैंने दोनों को अलग अलग पिंजरों में कर दिया।
आज सुबह देखा तो अजब नज़ारा था।
एक चिड़िया ने ना जाने कैसे अपना पिंजरा खोला और दूसरे चिड़िया के पिंजरे पर बैठ कर दोनों आपस में गुफ़्तगू कर रही थीं।
मैंने भी पिंजरा खोला और उन्हें साथ साथ कर दिया।मियाँ बीबी राज़ी तो क्या करें श्रीवास्तव जी।
उनकी बातें तो समझ नहीं आयीं लेकिन उनकी बॉडी लैंग्विज को गूगल में सर्च किया तो पता चला की मुद्दा घरेलू हिंसा का था ही नहीं।
बहस इस बात को लेकर थी कि क्या २०२४ के चुनाव में नितिन गड़करी मोदी से अच्छे प्रधानमंत्री बन सकते हैं और बात तू तू मैं मै से हिंसा पर आ गयी।
आज दोनों मिल कर बतिया रही थीं कि जब गड़करी जी को ख़ुद अपने ऊपर विश्वास नहीं है तो हम क्यों लड़े मर रहे है?
और हाय रे इंसानी बुद्धि जिसने एक बौद्धिक टीवी डिबेट को दहेज की लड़ाई समझ कर उसे घरेलू हिंसा का दर्जा दे दिया और दोनों को अलग रहने का फ़रमान जारी कर दिया।
बस स्त्री धन वापस करने की प्रक्रिया बाक़ी थी।
लेकिन अपने आँगन में 'पिंजरा तोड़' आंदोलन की शुरुआत से कुछ घबराहट सी हो रही है।
ना जाने क्यों।
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श्रणिका
तुम्हारी फ़ाइलों में
गाँव का मौसम गुलाबी है l
मगर ये आँकड़ें झूठे हैं
ये दावा किताबी है ll
-अदम गोंडवी
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