इज़्राईल ने अब संयुक्त राष्ट्र के सेक्रेटरी जनरल एंटोनियो गुटेरेस का इस्तीफ़ा तलब कर लिया है। इज़्राईली विदेश मंत्री कोहन ने गुटेरेस के साथ दो तरफ़ा वार्ता रद्द कर दी और संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों को वीज़ा देने से इनकार कर दिया। घमंडी इज़्राईली अधिकारियों की इस हरकत को देखकर पुरानी हिन्दी फिल्मों का विलेन याद आता है जो आम तौर से ज़मींदार की बिगड़ी हुई औलाद होता था। वह सारे गाँव पर अपने बाप की सरपरस्ती और मातहत ग़ुंडों की मदद से ज़ुल्मो-सितम ढाता था। उसको अपने ख़िलाफ़ एक शब्द सुनना गवारा नहीं होता था और अगर कोई बुज़ुर्ग नसीहत के लिए आगे आता तो वह भी उसके ज़ुल्मों का शिकार हो जाता। इज़्राईल दरअसल तथाकथित सभ्य पश्चिमी दुनिया की बिगड़ी हुई नाजायज़ औलाद है। उनकी निरंकुश पुश्तपनाही ने उसका दिमाग़ ख़राब कर रखा है क्योंकि इज़्राईल की सारी बर्बरता को यूरोप और अमेरिका उचित ठहरा देते हैं। उसके ख़िलाफ़ स्वीकार होनेवाला हर प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र में वीटो कर दिया जाता है। सारी ज़्यादतियों के बावजूद उसे हर तरह की मदद मिल जाती है। यही वजह है कि उसके अंदर आलोचना बर्दाश्त करने का माद्दा ख़त्म हो गया है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र के सेक्रेटरी जनरल का एक जुमला उसे इतना नागवार गुज़रता है कि वह उनके इस्तीफ़े की माँग करने से भी नहीं हिचकिचाता। यह घमंड और ग़ुरूर की इंतिहा है। इज़्राईली अधिकारियों को अपने ही इतिहास में झाँककर ‘अना रब्बुकुमुल आला’ (मैं तुम्हारा सबसे बड़ा रब हूँ) का नारा लगानेवाले फ़िरऔन और ख़ुद उनका क़त्ले-आम करनेवाले हिटलर का अंजाम देख लेना चाहिए।
इज़्राईल यह महा अपराध पश्चिमी ताक़तों की पुश्तपनाही के बलबूते पर कर रहा है। इन ताक़तों की आलोचना करते हुए क़तर के अमीर शैख़ तमीम-बिन-हम्द आले-सानी ने वैश्विक शक्तियों से ग़ज़्ज़ा में इज़्राईली आक्रामकता को ख़त्म कराने की माँग करने के बाद कहा कि दुनिया फ़िलस्तीनियों की ज़मीन पर इज़्राईल के क़ब्ज़े को नज़रअंदाज़ करने के बाद अब क़त्ले-आम पर भी ख़ामोश है। इस आपराधिक चुप्पी की वजह से इज़्राईल को क़त्ले-आम की खुली इजाज़त मिल गई और वह नंगी आक्रामकता का प्रदर्शन करते हुए ग़ज़्ज़ा पर वहशियाना बमबारी कर रहा है। यह बात उस वक़्त कही गई जब इज़्राईल ने दो दिनों के अंदर पंद्रह सौ से ज़्यादा लोगों को शहीद कर दिया, क्योंकि उसे वैश्विक उपनिवेशवाद से क़त्लो-ग़ारतगरी का खुला लाइसेंस मिला हुआ है। शैख़ तमीम-बिन-हम्द आले-सानी ने कहा कि वह इज़्राईली आक्रामकता पर चुप नहीं रह सकते, क्योंकि महिलाओं और बच्चों सहित मासूम शहरियों को निशाना बनाया जा रहा है। लाखों लोग बे-घर हो चुके हैं। इस नाज़ुक सूरतेहाल में ग़ज़्ज़ा को भेजी जानेवाली मदद से संबन्धित एंटोनियो गुटेरेस ने यह माना है कि ग़ज़्ज़ा की तबाही को देखते हुए वहाँ भेजी जाने वाली मदद समुद्र में बूँद के बराबर है। वैश्विक शक्तियों को इस मामले पर आगे बढ़कर बिना शर्त और बिना पाबंदियों के फ़िलस्तीनियों की मदद करनी चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस के मुताबिक़ 7 अक्तूबर को इज़्राईल पर ‘हमास’ के हमले का कोई औचित्य तो पेश नहीं किया जा सकता, मगर उन ‘हमलों’ की सज़ा मजमूई तौर पर आम फ़िलस्तिनियों को दी जा रही है। इसपर संयुक्त राष्ट्र में इज़्राईल के राजनयिक गिलाद एर्दान ने गुटेरेस से इस्तीफ़े की माँग करते हुए अपने ‘एक्स’ (पूर्व) ट्विटर पेज पर यह लिख दिया कि ‘संयुक्त राष्ट्र के सेक्रेटरी जनरल, जिन्होंने आतंकवाद और क़त्लो-ग़ारत की तरफ़दारी का प्रदर्शन किया है, संयुक्त राष्ट्र का नेतृत्व करने के योग्य नहीं हैं’ तो गुटेरेस डर गए। वह तुर्किया के राष्ट्रपति की तरह यह नहीं कह सके कि ‘हमास’ एक आज़ादी पसंद प्रतिरोधी आन्दोलन है। वह आतंकवादी संगठन नहीं, बल्कि अपनी सरज़मीन की सुरक्षा के लिए जंग लड़नेवाला गिरोह है। अर्दगान ने इज़्राईल और ‘हमास’ के दरमियान जंग रोकने में संयुक्त राष्ट्र की ‘अयोग्यता’ पर निराशा का प्रदर्शन करने के बाद पश्चिमी शक्तियों को ग़ैर-इलाक़ाई देशों का नाम देकर इज़्राईल का समर्थन करने और आग में तेल डालना बंद करने से रोका। पायदार अम्न और जंगबंदी के लिए मुस्लिम देशों को मिलकर पहल करने पर फ़िलस्तीनी पक्ष के लिए ज़मानत लेने का प्रस्ताव रखा।
इस तरह का दोटूक स्टैंड अपनाने के बजाय एंटोनियो गुटेरेस ने अपने स्पष्टीकरण में आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि उन्होंने स्पष्ट रूप से इज़्राईल में आतंकवाद की निन्दा की थी। संयुक्त राष्ट्र में इज़्राईल के राजनयिक गिलाद एर्दान ने इस बयान को रद्द करते हुए कहा कि “सेक्रेटरी जनरल ने अपने शब्द वापस नहीं लिए और माफ़ी तक नहीं माँगी।” यानी इज़्राईल के ख़िलाफ़ अगर कोई कुछ बोल दे तो उसे माफ़ी माँगने के बाद शब्द वापस लेने चाहिएँ वर्ना उसकी ख़ैर नहीं। ऐसी दादागीरी का प्रदर्शन शायद संयुक्त राष्ट्र में पहले कभी नहीं हुआ होगा और यह ऐसा देश कर रहा है जो दो दिन की जंग में अमेरिका के आगे मदद का हाथ फैलाने के लिए मजबूर हो गया था। वैसे एंटोनियो गुटेरेस कोई मामूली आदमी नहीं हैं। वह जनवरी 2017 से संयुक्त राष्ट्र के सेक्रेटरी जनरल के पद पर आसीन हैं। पुर्तगाल के इस पूर्व प्रधानमंत्री ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद अध्यापन का काम किया। 1974 में पुर्तगाली सोशलिस्ट पार्टी की पंक्तियों में शामिल होने के बाद 1976 में चुनकर 17 साल लोकसभा सदस्य रहे। 1991 से 2002 तक पुर्तगाली कौंसिल ऑफ़ स्टेट के सदस्य रहे और 1995 से 2002 तक पुर्तगाल के प्रधानमंत्री की हैसियत से सेवाकार्य किया। इज़्राईल को उनके इस्तीफ़े की माँग करने से पहले उनकी इस हैसियत को सामने रखना चाहिए था।
विश्व राजनीति में एंटोनियो गुटेरेस का क़द ख़ासा ऊँचा है। 1981 से 1983 तक वह कौंसिल ऑफ़ यूरोप की लोकसभा असेंबली के सदस्य थे। इस दौरान उन्होंने पलायन करके आए शरणार्थियों से सम्बन्धित कमेटी की अध्यक्षता की। सोशलिस्ट डेमोक्रेटिक पार्टियों के एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन सोशलिस्ट इंटरनेशनल के उपाध्यक्ष की हैसियत से वह अफ़्रीक़ी आयोग और संगठन में विकासशील कमेटी की सह-अध्यक्ष रहे। दुनिया-भर के पूर्व डेमोक्रेटिक प्रेसिडेंट्स और प्रधानमंत्रियों के गठबन्धन ‘क्लब ऑफ़ मैड्रिड’ के भी वह सदस्य रहे हैं। 2005 से 2015 तक शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र के हाई कमिशनर की ज़िम्मेदारी अदा करते हुए उन्होंने विद्रोह और विवादों से प्रभावित इलाक़ों में काम को बेहतर किया। शाम (सीरिया) और इराक़ में विवाद और दक्षिणी सूडान, मध्य अफ़्रीक़ी देश और यमन के संकटों के दौरान यूएनएचसीआर की सरगर्मियों में नुमायाँ भूमिका निभाई। यह विडंबना है कि इसके बावजूद विवाद, ज़ुल्मो-सितम और जंग के कारण बे-घर और शरणार्थियों की संख्या जो 2005 में तीन करोड़ 80 लाख थी वह मई 2023 में 11 करोड़ हो गई। ग़ज़्ज़ा की बमबारी ने इसमें बेशुमार बढ़ोतरी कर दी है इसलिए वह जंगबंदी और पुनर्वास पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। यही चीज़ इज़्राईल और उसके मित्रों की आँख का काँटा बन गई है।
यूक्रेन विवाद में उनपर रूस का पक्ष लेने का इल्ज़ाम लगा था और अब ‘हमास’ के समर्थन का ‘इल्ज़ाम’ लगाया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र में इस्तीफ़ा कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस तरह किसी को त्यागपत्र देकर जाने के लिए दबाव बनाना हैरतअंगेज़ है। इस साल मार्च में ख़ुद एंटोनियो गुटेरेस ने भ्रष्टाचार का इल्ज़ाम लगने पर एक अधिकारी का इस्तीफ़ा क़ुबूल किया। इससे पहले 2017 में संयुक्त राष्ट्र की अधिकारी रीमा ख़ल्फ़ ने इज़्राईल की नस्ल-परस्ती के ख़िलाफ़ संयुक्त राष्ट्र की ईएससीडब्ल्यू इनामी वेबसाइट पर एक लेख प्रकाशित किया था। गुटेरेस ने रीमा को रिपोर्ट हटाने पर मजबूर किया तो उन्होंने विरोध में इस्तीफ़ा दे दिया। यह इज़्राईल समर्थन भी उनके काम नहीं आया, क्योंकि वह एक नमक-हराम मुल्क है। सूडान के संयुक्त राष्ट्र विशेष राजनयिक को सूडानी हुकूमत के आग्रह पर चार साल पहले इस्तीफ़ा देने पर मजबूर किया गया। यह काम भी गुटेरेस के हाथों हुआ। उन्होंने इस दौरान सोचा भी नहीं होगा कि इसकी गाज ख़ुद उनपर भी गिर सकती है। गुटेरेस के आगमन से पहले 2014 में अरब देशों में विवादों को सुलझाने में नाकामी के बाद विश्व विख्यात विशेष राजनयिक लख़दर बराहीमी भी इस्तीफ़ा देकर चले गए थे। उन्होंने अफ़्ग़ानिस्तान में अपनी सेवाएँ दी थीं, मगर शाम (सीरिया) में नाकामी के बाद मायूस होकर इस्तीफ़ा दे दिया था, लेकिन किसी को एंटोनियो गुटेरेस की तरह मजबूर करने की कोशिश नहीं की गई।
इज़्राईल की नज़र में सेक्रेटरी जनरल का क़ुसूर यह है कि 24 अक्तूबर को अपनी तक़रीर में एंटोनियो गुटेरेस ने इस महीने की 7 तारीख़ को ‘हमास’ के हमले की निन्दा के साथ यह भी कहा कि वह हमला ख़ला में नहीं हुआ। इस तरह गोया उन्होंने हमले की बुनियादी वजह को 56 सालों से फ़िलस्तीनी सरज़मीन पर नाजायज़ क़ब्ज़े और गम्भीर मानवीय सूरतेहाल से जोड़ दिया। यही वह जुमला था जिससे आग बगूला होकर संयुक्त राष्ट्र में इज़्राईल के स्थायी प्रतिनिधि ने एंटोनियो गुटेरेस से इस्तीफ़ा देने की माँग कर दी। क्या यह संयुक्त राष्ट्र के सेक्रेटरी जनरल का मुख्य कर्तव्य नहीं है कि वह ग़ज़्ज़ा में होनेवाले वैश्विक क़ानूनों के खुले उल्लंघनों का पर्दाफ़ाश करके मानवीय बुनियादों पर फ़ौरी जंगबंदी की माँग करें? क्या संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद की बैठक को संबोधित करते हुए सेक्रेटरी जनरल का यह कहना कोई महापाप है कि ग़ज़्ज़ा में फ़ौरी तौर पर मानवीय बुनियादों पर जंगबंदी की जाए, क्योंकि वहाँ अन्तर्राष्ट्रीय क़ानूनों का खुला उल्लंघन हो रहा है। क्या उनका यह तर्क ग़लत है कि ‘हमास’ को बुनियाद बनाकर फ़िलस्तीनियों को सामूहिक सज़ा देने का कोई औचित्य पैदा नहीं होता और न ही उसकी इजाज़त दी जानी चाहिए। क्या उनका ग़ज़्ज़ा में होनेवाले मानवाधिकारों के उल्लंघन पर गहरी चिन्ता का इज़हार करना ग़लत है और उन्हें फ़ौरी तौर पर रोकने के लिए कोशिश करना जुर्म है? ये सब तो बहुत सही बातें हैं मगर वह घमंडी जो उनको सुनने का आदी ही न हो वह उसे कैसे बर्दाश्त कर सकता है? ऐसे में वैश्विक ताक़तों को चाहिए कि अब वह अपना रवैय्या ठीक करें वर्ना ‘हम तो डूबे हैं सनम तुमको भी ले डूबेंगे’ की तरह इज़्राईल के साथ पश्चिम की श्रेष्ठता का सूरज भी डूब जाएगा।
——(अनुवादक : गुलज़ार सरहाई)
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